लोगों की राय

आलोचना >> सूर साहित्य

सूर साहित्य

हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14302
आईएसबीएन :9788126700813

Like this Hindi book 0

श्री हजारीप्रसाद भक्ति-तत्त्व, प्रेम-तत्त्व, राधाकृष्ण-मतवाद आदि के सबंध में जो भी उल्लेख-योग्य, जहाँ कहीं से पा सके हैं, उसे उन्होंने इस ग्रथ में संग्रह किया है

"श्री हजारीप्रसाद भक्ति-तत्त्व, प्रेम-तत्त्व, राधाकृष्ण-मतवाद आदि के सबंध में जो भी उल्लेख-योग्य, जहाँ कहीं से पा सके हैं, उसे उन्होंने इस ग्रथ में संग्रह किया है और उस पर भाली-भांति विचार किया है, विचार का फलाफल उन्होंने स्पष्ट भाषा में ही लिखा है, इसका फल यह हुआ कि पुस्तक आराम के साथ, निश्चित, और आलास भाव से पढने लायक नहीं हुई है। पद-पद पर चिंता और विचार करने की जरूरत है। 'भारतीय धर्ममत के इतिवृत की आलोचना भी एक विपद है। एक, सब कुछ को अति प्राचीन सिद्ध करने की प्रवृति और दूसरी, सब कुछ को अति अर्वाचीन सिद्ध करने की जिद! दोनों तरफ के इन दो पाषाण-संकटों के भीतर तरंग संकुल खर-स्रोत धरा में से भी द्विवेदीजी जो नैया खेकर घाट पर भिड़ा सके हैं, यह उनके लिए कम प्रशंसा की बात नहीं है।"

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book