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उपन्यास >> उम्मीद है आयेगा वह दिन

उम्मीद है आयेगा वह दिन

एमिल जोला

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :494
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14354
आईएसबीएन :9788126714179

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उपन्यास एक तरह से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के यूरोपीय मजदूर आन्दोलन का एक लघु प्रतिरूप प्रस्तुत करता है।

यह उपन्यास मजदूर आन्दोलन में स्वतःस्‍फूर्तता की महत्ता स्पष्ट करते हुए संघर्ष में सचेतनता के आविर्भाव और क्रमिक विकास की जटिल और. मंथर प्रक्रिया को तथा संघर्ष की विभिन्न मंजिलों को इतने प्रभावी ढंग से दर्शाता है कि मजदूर आन्दोलन में सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिए आज भी यह एक जरूरी अध्ययन-सामग्री लगने लगता है। झोला ने इस प्रक्रिया का प्रभावशाली चित्रण किया है कि किस प्रकार अल्पविकसित चेतना वाले मजदूर नये विचारों के कायल होते हैं, किस प्रकार अपनी जीवन-स्थिति को नियति मानकर जीनेवाले मजदूरों के सोचने-समझने का ढंग हड़ताल के प्रभाव में बदलने लगता है और किस प्रकार वे आन्दोलन द्वारा उठाये गये सवालों को समझने और उनके हल के बारे में सोचने की कोशिश करने लगते हैं। उपन्यास मजदूरों की हड़ताल के दौरान कार्यनीति या रणकौशल (टैक्टिक्स) से जुड़े प्रश्नों पर भी विस्तार में जाता हे। मिसाल के तौर पर इसमें हड़ताल के दौरान तोड़फोड़ की कार्रवाई और 'फ्लाइंग पिकेट्‌स' की सम्भावित भूमिकाओं पर भी विचार किया गया है। 'फ्लाइंग पिकेट्‌स' की हड़ताल के दौरान एक विशेष भूमिका दर्शायी गयी है। यह इतिहास का तथ्य है कि फ्रांसीसी कोयला खदानों में इनकी स्थापित परम्परा रही थी और 1869 की ल्‍वार हड़ताल के दौरान इनका विशेष रूप से इस्तेमाल किया गया था। उपन्यास एक तरह से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के यूरोपीय मजदूर आन्दोलन का एक लघु प्रतिरूप प्रस्तुत करता है। खदान मजदूरों के एक छोटे से गाँव में तीन राजनीतिक धाराओं के सुस्पष्ट-सटीक प्रतिनिधियों की उपस्थिति हमें देखने को मिलती है। रासेनोर एक सुधारवादी है जो टकराव के बजाय वार्ताओं की राजनीति में विश्वास रखता है। सूवारीन अराजकतावादी है। एतिएन की अवस्थिति इन दोनों के बीच की बनती है। अनुभववादी ढंग से वह जुझारू वर्ग संघर्ष की सोच और क्रान्तिकारी जनदिशा की सोच की ओर आगे बढ़ता हुआ चरित्र है। पेरिस कम्यून के पूर्व, पहले इण्टरनेशनल में भी यही तीन राजनीतिक धाराएँ कमोबेश .प्रभावी रूप में मौजूद थीं।

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