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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


‘विवाह को मैं सामाजिक समझौता समझता हूँ और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है न स्त्री को। समझौता करने के पहले आप स्वाधीन हैं, समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते हैं।’

‘तो आप तलाक के विरोधी हैं, क्यों?’

‘पक्का।’

‘और मुक्त भोग वाला सिद्धान्त?’

‘वह उनके लिए है, जो विवाह नहीं करना चाहते।’

‘अपनी आत्मा का सम्पूर्ण विकास सभी चाहते हैं; फिर विवाह कौन करे और क्यों करे?’
‘इसीलिए कि मुक्ति सभी चाहते हैं; पर ऐसे बहुत कम हैं, जो लोभ से अपना गला छुड़ा सकें।’

‘आप श्रेष्ठ किसे समझते हैं, विवाहित जीवन को या अविवाहित जीवन को?’

‘समाज की दृष्टि से विवाहित जीवन को, व्यक्ति की दृष्टि से अविवाहित जीवन को।’
धनुष-यज्ञ का अभिनय निकट था। दस से एक तक धनुष-यज्ञ, एक से तीन तक प्रहसन, यह प्रोग्राम था। भोजन की तैयारी शुरू हो गयी। मेहमानों के लिए बँगले में रहने का अलग-अलग प्रबन्ध था। खन्ना-परिवार के लिए दो कमरे रखे गये थे। और भी कितने ही मेहमान आ गये थे। सभी अपने-अपने कमरों में गये और कपड़े बदल-बदलकर भोजनालय में जमा हो गये। यहाँ छूत-छात का कोई भेद न था। सभी जातियों और वर्णों के लोग साथ भोजन करने बैठे। केवल सम्पादक ओंकारनाथ सबसे अलग अपने कमरे में फलाहार करने गये। और कामिनी खन्ना को सिर दर्द हो रहा था, उन्होंने भोजन करने से इनकार किया। भोजनालय में मेहमानों की संख्या पच्चीस से कम न थी। शराब भी थी और मांस भी। इस उत्सव के लिए राय साहब अच्छी किस्म की शराब खास तौर पर खिंचवाते थे? खींची जाती थी दवा के नाम से; पर होती थी खालिस शराब। मांस भी कई तरह के पकते थे, कोफते, कबाब और पुलाव। मुर्ग, मुर्गियाँ, बकरा, हिरन, तीतर, मोर, जिसे जो पसन्द हो, वह खाये।

भोजन शुरू हो गया तो मिस मालती ने पूछा–सम्पादकजी कहाँ रह गये? किसी को भेजो राय साहब, उन्हें पकड़ लाये।

राय साहब ने कहा–वह वैष्णव हैं, उन्हें यहाँ बुलाकर क्यों बेचारे का धर्म नष्ट करोगी। बड़ा ही आचारनिष्ठ आदमी है।

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