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आदर्श भोजन

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1499
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...

24. पानी का महत्त्व

पानी पीना भी भोजन का ही एक अंग है। यदि हम यह कहें कि हम मछलियों की भाति पानी में ही रहते हैं तो इस पर हँसना नहीं चाहिए क्योंकि हमारे शरीर में 7० प्रतिशत जल है और शरीर की बनावट में पानी का बड़ा महत्त्वपूर्ण भाग है। पानी से हमारे शरीर की सफाई होती है। भोजन के साथ तथा वैसे भी हम शुद्ध पानी बहुत मात्रा में पीते हैं, जो मल, मूत्र, पसीना और सांस के साथ हमारे शरीर की बहुत-सी गंदगी को लेकर बाहर निकलता है। तब भी बहुत-सा पानी का भाग भाप के रूप में हमारी चमड़ी के छिद्रोंसे निकलता है। यदि चर्म-कूपों के द्वारा इस प्रकार पसीना न उड़े तो शरीर की गरमी नहीं निकल सकती। इस तरह भाप बनकर साधारण मनुष्य की चमड़ी पर से लगभग तीन पाव पानी नित्य उड़ जाता है। यह उस पसीने के अतिरिक्त है जो दिखाई देता है। जिन मनुष्यों की चमड़ी साफ नहीं रहती, चर्मकूप बन्द रहते हैं उन्हें चमड़ी के अनेक रोग लग जाते हैं। पसीने के अतिरिक्त स्वस्थ पुरुष के शरीर से प्रतिदिन सवा सेर से कुछ ही कम पानी पेशाब के द्वारा निकल जाता है। जो पानी हम पीते हैं वह शरीर में घूमता हुआ सब मैल को एक रास्ते से ले जाकर बाहर निकाल देता है। पानी की कमी से रक्ताल्पता के रोग हो जाते हैं, जो प्राय: 90 प्रतिशत मनुष्यों में किसी न किसी रूप में बने ही रहते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों की सम्मति है कि स्वस्थ पुरुष को दिन-रात में डेढ़ या दो सेर साफ-शुद्ध पानी अवश्य पीना  चाहिए।

पानी पीने की रीति

पानी एकबारगी ही नहीं पीना चाहिए। घूंट-घूंट करके पीना चाहिए। पीने के समय पानी को कुछ देर मुंह में रखने से उसकी प्राणशक्ति शरीर को प्राप्त हो जाती है। चुल्लू से पानी पीना अत्यन्त हितकर है।  लिखने-पढ़ने वाले जनों को अपनी मेज पर साफ पानी का एक गिलास निरन्तर अपने पास रखना चाहिए तथा थोड़ी-थोड़ी देर में एक-एक घूंट पानी निरन्तर पीते रहना चाहिए। खड़े-खड़े एक साथ ही बहुत पानी नहीं पीना चाहिए, हानिकारक है।

भोजन के साथ पानी

भोजन के साथ थोड़ा-सा पानी बीच-बीच में पीना चाहिए। वास्तविक बात यह है कि भोजन के पचाने वाले
अम्ल रस, जो पाचन-यन्त्रों में भोजन जाते ही बनते तथा भोजन पर अपनी प्रतिक्रिया करते हैं, अधिक पानी पीने से पतले हो जाते हैं तथा पानी की कमी से भोजन परिमित रीति पर पतला न होगा तो पाचक-यन्त्र के अम्ल रस में वह ठीक-ठीक न घुल सकेगा। इसलिए भोजन से कुछ पूर्व पानी पीना चाहिए, फिर थोड़ा-थोड़ा भोजन के साथ। इसके बाद भोजन खाने के अन्त में। तब कुल्ला करना चाहिए। फिर 1 घंटे बाद एक-एक घण्टे में एक-एक गिलास पानी पीना चाहिए। जब तक शरीर में पानी की प्यास रहेगी, पानी स्वादिष्ट लगेगा।

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