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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन

आदर्श भोजन

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1499
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...

26. उपवास

उपवास सात्तिवक आहार का एक अंग है। बिना उपवास के भोजन का सात्त्विक प्रभाव टिक नहीं सकता। उपवास से अनेक मानसिक और शारीरिक रोगों का भी शमन होता है। इसलिए हमारे देश में उपवास को इतना पवित्र माना गया है कि उसे धार्मिक रूप दिया गया है। बहुत से लोग धार्मिक भावना से त्योहार-पर्व आदि पर उपवास करते हैं।

परन्तु उपवास चाहे जब किया जाए, उसका सात्त्विक भाव तभी तक कायम रह सकता है जब तक उसके नियमों का ठीक-ठीक पालन किया जाए। उपवास के नियम सात्त्विक भाव की स्थापना करते हैं :

1. उपवास से एक दिन प्रथम फल या हलका अल्पाहार करो।

2. उपवास के दिन जल भरपूर पियो।

3. उपवास की समाप्ति पर लघु फलाहार करो।

4. उपवास के एक दिन बाद भी लघु आहार करो।

उपवास की समाप्ति ही उपवास का महत्त्वपूर्ण भाग है। यदि आप दो दिन के उपवास के बाद या दिन-भर उपवास करने के बाद भरपेट भोजन कर लेते हैं तो उससे उपवास का लाभ तो दूर रहा, उल्टे हानि होने की संभावना अधिक होगी। उपवास के बाद तो भोजन को धीरे-धीरे ही बढ़ाया जाना चाहिए।

सात दिन का उपवास

तीन दिन से कम के उपवास से तो कोई शारीरिक या मानसिक लाभ नहीं हो सकता। उपवास कम से कम सात दिन का करना चाहिए। उपवास का सिद्धान्त यह है कि उपवास-काल में स्नायु और नाड़ियों को काम नहीं करना पड़ता, इससे प्राणशक्ति का संचय होता है और उसी से सब शारीरिक कष्ट दूर होते हैं।

यदि एक दिन का ही उपवास किया जाए परन्तु एक दिन पहले और एक दिन बाद लघु आहार किया जाए तो उससे भी लाभ होता है।

परन्तु बहुधा उपवास के बाद लोग विविध गरिष्ठ फलाहारों, पकवानों, पदार्थों को बनाकर खाते जाते हैं,  जिससे उपवास का सारा श्रेय जाता रहता है।

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