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आदर्श भोजन

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1499
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...

2. मांसाहार

कुछ समय पूर्व तक पाश्चात्य वैज्ञानिकों का यह मत था कि मांस खाने से खून बढ़ता है क्योंकि इसमें प्रोटीन का सभी भाग है। साथ ही चर्बी का भाग भी है, जो शक्ति और चर्बी देता है-ऐसी दशा में मांसाहार से बढ़कर और क्या भोजन हो सकता था?

परन्तु गत युद्धों में जो नई-नई अनुभूतियां वैज्ञानिकों को हुईं उनमें मांसाहार के सम्बन्ध की अनुभूति मनुष्य के हित के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। युद्धकाल में जब नार्वे और स्वीडन के सैनिकों को भोजन तुलकर बंटने लगा तो एक विद्वान् डाक्टर का ध्यान इस बात की ओर गया कि हालैंड के सिपाहियों की खुराक में मांस बिलकुल नहीं दिया जाता।

उन्हें केवल गाय या बकरी का दूध और जई जैसे हलके अन्नों पर ही निर्भर रहना पड़ा, इससे उन मनुष्यों का मुटापा घटने लगा, तोंद चिपक गई और वे सूखकर दुबले होने लगे-परन्तु एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उनमें यह हुआ कि उनकी रोगी-संख्या और मृत्यु-संख्या बहुत कम हो गई और उनके जीवन का अनुपात भी बढ़ गया। रोग और कष्ट सहने की उनकी शक्ति भी बढ़ गई। इस प्रकार सारा देश रोगरहित और स्वस्थ हो गया। इस पर उस विचारशील चिकित्सक ने अपने नवीन अनुभव प्राप्त किए और उसे शीघ्र इस भेद का पता लग गया कि मांस से दो छटांक के लगभग प्रोटीन जो शरीर में किसी रूप में भोजन के साथ जाता है, उसे शरीर से बाहर खारिज करने में अधिक शक्ति खर्च करनी होती है तथा उस अतिरिक्त प्रोटीन से शरीर को कुछ शक्ति भी प्राप्त नहीं होती है। इसके अतिरिक्त उस प्रोटीन का मलकिल (फुजला) बहता है। उसमें जो चर्बी का भाग है वह शरीर की नाड़ियों में इस प्रकार रुक जाता है कि उसके घुलने और साफ होने में अधिक रगड़ पैदा होती है। इससे मस्तिष्क पर जो प्रतिक्रिया होती है, उससे मनुष्य की वृत्ति तामसिक हो जाती हे। रक्त नित्यप्रति दूषित और मलीन होता जाता है और उसका खराब से खराब प्रभाव दिमागी और मानसिक शक्ति पर पड़ता है। अर्थात् मनुष्य क्रोधी, असहनशील और चिड़चिड़ा हो जाता है। इसलिए वह विद्वान् डाक्टर इस निर्णय पर पहुंचे कि दो औंस प्रोटीन के लिए मांस क्यों खाया जाए, जो शरीर में अधिक सड़ांध और विजातीय द्रय उत्पन्न करता है? विशेषकर उस अवस्था में जबकि प्रत्येक अन्न में प्रोटीन उपस्थित है तथा उससे रक्त स्वच्छ और उत्तम बनता है।

विद्वानों ने हिसाब लगाकर यह भी मालूम किया है कि जौ, फल तथा सब्जी में उतनी ही ताकत मिलेगी जितनी पांच रुपये की कीमत के मांस खाने से मिलती है। मांस में प्रोटीन, लवण और चिकनाई तो है किन्तु शर्करा और स्टोर्च नहीं है। भोजन में शर्करा और स्टार्च की मात्रा प्रोटीन से तिगुनी होनी चाहिए। इसलिए मांस परिपूर्ण भोजन नहीं है।

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