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आदर्श भोजन

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1499
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...

28. दुग्धपान

पहले दिन केवल एक बार, दूसरे दिन दो बार फलों का रस लेना चाहिए। तीसरे दिन दोनों समय एक-एक पाव दूध बिना चीनी डाले पीना चाहिए। चौथे दिन चार बार। परन्तु संतरा या नीबू साथ में अवश्य खाना चाहिए। दूध पीने से आधा घंटा पहले ये फल खाने चाहिए। इससे दूध के पचने में सहायता मिलेगी। बाद में दूध पीने का समय घटाकर हर आधा घंटा किया जा सकता है, परन्तु यह भूख खुलने पर ही निर्भर है। ज्यों-ज्यों भूख खुलती जाए, दूध की मात्रा बढ़ा दी जाए। परन्तु एक बार में एक पाव से अधिक नहीं लेना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि इस प्रकार उपवास करने के बाद आठ-आठ, दस-दस सेर तक दूध पिया जा सकता है और उससे इन्द्रियों की शक्तियां एकदम विकसित होकर शरीर पुष्ट और समर्थ हो जाता है। यह स्वाभाविक है कि ज्यों-ज्यों दूध की तादाद बढ़ती जाएगी, पेशाब अधिक होता रहेगा। पेट में पानी आंतों को साफ करता या गड़गड़ाता सुनाई देगा। ऐसी हालत में दस्त यदि पतला, पिचकारी की धार की भांति आए तो भय की बात नहीं है।

29. अन्नाहार का प्रारम्भ

दूध के बाद अन्नाहार पर लौटने के समय भी बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। यह कार्य एकाएक नहीं होना चाहिए। पहले दोपहर में दूध में उबला छुहारा खाना चाहिए। पहले दिन दोपहर में वही छुहारा; मूंग का पानी या केले का झोल भी देना चाहिए। तीसरे दिन गेहूं का दलिया या उबले हुए आटे की रोटी देनी चाहिए। फिर धीरे-धीरे स्वाभाविक भोजन पर आना चाहिए। इस प्रकार इस उपवास-व्यवस्था में एक मास का समय लग जाता है।

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