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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन

आदर्श भोजन

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1499
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...

31. एनीमा लेने की विधि

एनीमा सदैव सायंकाल को लेना चाहिए। इसके लिए पानी इतना गुनगुना लीजिए जिसे हाथ सरलता से सह सके। पहले दिन में केवल डेढ़ पाव पानी चढ़ाकर पांच मिनट पेट में रोककर रखना चाहिए। दूसरे दिन तीन पाव पानी लेना चाहिए। इसके बाद एक दिन नागा करके एनीमा लेना चाहिए तथा सवा सेर पानी लेना चाहिए। फिर दो दिन नागा करके सातवें दिन डेढ़ सेर पानी से एनीमा लेना चाहिए। एनीमा लेने के प्रथम और बाद को भी पेट को खूब मलना चाहिए। इस क्रिया से एक ही सप्ताह में कब्ज़ दूर हो जाएगा

परन्तु इन दिनों में दूसरे समयों पर पाखाना नहीं आएगा। फिर भी ठीक समय पर पाखाना जाने की आदत को कायम रखने के लिए समय पर जाना अवश्य चाहिए। इसके बाद ठीक समय पर पाखाना जाइए और पानी खूब पीजिए तथा महीने में एक या दो बार एनीमा लेते रहिए।

ऐसी ही एक यौगिक क्रिया भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है, जिसे नेती-धोती कहते हैं। यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिकों का तो यह मत है कि एनीमा को नित्य कार्य में सम्मिलित कर लेना चाहिए। कुछ चिकित्सक वैज्ञानिकों ने ऐसा अनुभव किया है कि इसी प्रकार एनीमा द्वारा मलाशय की शुद्धि करने की प्रक्रिया से 70-80 वर्ष के वृद्धजन भी युवा की भांति स्फूर्तिमय और सशक्त हो गए तथा उनकी आयु बहुत बढ़ गई। ऐसे लोग जिनके शरीर में असाध्य रोगों ने घर कर लिया है और जिनका जीवन भार हो चला है, केवल एनीमा के द्वारा आंतों की शुद्धि करने से चुस्त, नीरोग और पुष्ट हो गए। यूरोप में इस क्रिया के लिए अनेक प्रकार के यन्त्रों का प्रचलन हो गया है। पर साधारणत: तामचीनी के मामूली एनीमा पात्र से काम चलाया जा सकता है।

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