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आदर्श भोजन

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1499
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...

11. चबाने का महत्त्व

मनुष्य के लिए पुरानी कहावत है कि उसे दांत का काम आंत से नहीं लेना चाहिए। वास्तव में हमें अपना भोजन मुंह में ही पचा डालना चाहिए। पीछे उसे पाचन-यंत्रों को

देना चाहिए। इसके लिए एक आसान रीति यह है कि एक कौर को इतनी बार चबाइए कि जितने आपके मुंह में दांत हैं। भोजन मुंह में इतना घुल जाना चाहिए कि वह पानी की घूंट की भांति निगला जा सके। यह कभी न भूलना चाहिए कि भोजन में जो स्टार्च है, वह मुंह के लुआब में घुलकर ही शर्करा का रूप धारण करता है। वह अन्य किसी रीति से पच नहीं सकता। प्राय: बच्चे धीरे-धीरे भोजन करते हैं। पर हम उन्हें जल्दी खाने के लिए धमकाते हैं, यह ठीक नहीं है। मुंह में अच्छी तरह भोजन को चबाने से उसके एक-एक कण की प्राणशक्ति मुंह के स्नायु-छेदों से शरीर को प्राप्त होती है। जब भोजन ठीक-ठीक मुंह में घुल जाता है तो उसका स्वाद खत्म हो जाता है और वह स्वयं ही हलक में उतर जाता है। यदि आप अच्छी तरह भोजन को चबाएंगे तो भोजन से आपको दुगनी-तिगुनी प्राणशक्ति मिलेगी। साथ ही बिना पचे भोजन को शरीर से बाहर निकालने में जो शक्ति खर्च होती है, वह भी बच रहेगी। वास्तव में जो भोजन ठीक-ठीक मुंह में घुल गया वही हमारे अंगों में लगता है। हमें यह चेष्टा करनी चाहिए कि कम से कम भोजन में से अधिक से अधिक खुराक प्राप्त करें।

12. प्रातःकाल का नाश्ता

प्रातःकाल नाश्ते की बिलकुल आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उस समय हम बिलकुल थके नहीं होते विश्राम करके उठे होते हैं। भोजन की प्राणशक्ति से थकावट को दूर किया जा सकता है। यह सोचना कि हम रात-भर के भूखे हैं, इसलिए प्रातःकाल हमें नाश्ता मिलना चाहिए, सर्वथा गलत है। नाश्ते की भूख नहीं लगती; वह केवल एक आदत है, जो पेट में दर्द और अपच होने पर भी नाश्ता मांगती है। अफसोस की बात तो यह है कि वह नाश्ता भी सर्वथा अस्वाभाविक पदार्थों का बना होता है? जैसे चाय, अंडा, नमकीन, मिठाई आदि। ये सब हानिकर हैं।

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