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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> मानस दर्पण भाग-4 शिव विवाह

मानस दर्पण भाग-4 शिव विवाह

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : रामायणम् ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :229
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15254
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प्रस्तुत है मानस दर्पण माला का चतुर्थ पुष्प - शिव विवाह

प्रथम प्रवचन

संकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।
निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु॥ १/९८

श्रीरामचरितमानस के प्रारम्भ में, बालकाण्ड में, दो विवाहों का बड़ा ही अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया गया है। पहले तो भगवान् शंकर और भगवती उमा का पाणिग्रहण और बाद में भगवान् श्रीराम और जनकनन्दिनी सीता का मंगलमय विवाह है। ये दोनों विवाह श्रीरामचरितमानस की विशिष्ट दार्शनिक धारणा का परिचय कराते हैं। पर इस समय भगवान् राम और जनकनन्दिनी जानकी के विवाह पर हम मुख्य रूप से विचार नहीं करेंगे यद्यपि तुलनात्मक रूप से दोनों ही चर्चाएँ आपके सामने आयेंगी। आज तो भूमिका के रूप में इस विवाह का तात्पर्य क्या है, इसी की ओर हम आपका ध्यान आकृष्ट करेंगे!

साधारण दृष्टि से पढ़ने पर भगवान् शंकर और पार्वती का विवाह व्यक्ति को बड़ा ही विचित्र सा तथा व्यंग्य और विनोद से भरपूर दिखायी देता है। उसको गहराई से न समझनेवालों ने तो कभी-कभी यहाँ तक पूछ दिया कि “क्या गोस्वामीजी इस विवाह के द्वारा भगवान् शंकर की हँसी उड़ाना चाहते थे?' यह जो भ्रम होता है वह पूरे प्रसंग की गरिमा को न समझ पाने के कारण ही होता है। सचमुच ही भगवान् शंकर और पार्वती का जो विवाह है उसका वर्णन बड़ी अद्भुत रीति से किया गया है। वह विलक्षण संकेत-सूत्रों से परिपूर्ण है। आइये! पहले उस पर एक दृष्टि डालें।

वैसे श्रीरामचरितमानस के मूल प्रतिपाद्य श्रीराम हैं और श्रीरामकथा के सन्दर्भ में श्रीराम एवं जनकनन्दिनी श्रीसीता के विवाह का वर्णन किया जाना सर्वथा स्वाभाविक है; लेकिन भगवान् राम और के विवाह का वर्णन करने से पहले, प्रासंगिक न प्रतीत होने पर भी, भगवान् शंकर और पार्वती के विवाह का विस्तृत वर्णन करना कुछ समझ में न आनेवाली सी बात है। यदि गोस्वामीजी चाहते तो कथा का श्रीगणेश यहाँ से भी कर सकते थे कि विवाह के पश्चात् हिमालय के कैलास शिखर पर भगवती उमा ने प्रश्न किया और उनके प्रश्न के उत्तर में भगवान् शंकर ने रामकथा सुनायी। इस तरह से भी रामचरितमानस का श्रीगणेश किया जा सकता था। लेकिन उसके पहले भगवान् शंकर और पार्वती के विवाह के वर्णन का क्या तात्पर्य है? फिर उस विवाह में एक विलक्षणता यह भी है कि जहाँ भगवान् राम और सीता के विवाह में जनकनन्दिनी श्रीसीता के एक ही जन्म का वर्णन किया गया है, वहाँ पर भगवान् शंकर और पार्वती के विवाह में यह प्रतिपादन किया गया कि पार्वती पूर्वजन्म में सती थीं और सती के रूप में वे भगवान् शंकर की संगिनी और प्रिया थीं। उन्हीं सती का पूर्वजन्म जब पार्वती के रूप में होता है तब भगवान् शंकर और पार्वती का पुनः परिणय सम्पन्न होता है। फिर उसमें यह भी विलक्षणता है कि यद्यपि भगवान् शंकर के साथ सती का काल बहुत लम्बा था, लेकिन यह वर्णन कहीं नहीं आता है कि भगवान् शंकर ने सती को कभी राम-कथा सुनायी थी। जो वर्णन आता है वह यह कि जब सती पार्वती के रूप में जन्म लेती हैं और जब उनका परिणय भगवान् शंकर के साथ होता है, उसके पश्चात् पार्वतीजी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् शंकर उन्हें राम-कथा सुनाते हैं। इस प्रकार भगवान् शंकर के विवाह में जो हृदयंगम करने योग्य सबसे महत्त्व का सूत्र है वह यह है कि सती के दो जन्म हैं-‘सती’ और ‘पार्वती' के रूप में, तथा पार्वती और शिव के मिलने के पश्चात् ही राम-कथा का प्राकट्य होता है। इसका तात्पर्य क्या है? | इसका मूल सूत्र यह है कि श्रीराम साक्षात् अखण्ड ज्ञानघन ईश्वर हैं और जनकनन्दिनी श्रीसीता मूर्तिमती भक्ति हैं -

सानुज सीय समेत प्रभु राजत परन कुटोर।
भगति ग्यानु बैराग्य जनु सोहत धरे सरीर। २/३२१

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