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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> सुग्रीव चरित्र

सुग्रीव चरित्र

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : रामायणम् ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :93
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15255
आईएसबीएन :0

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प्रस्तुत है सुग्रीव के चरित्र का तात्विक विवेचन..

साहित्य और इतिहास में अनेक ऐसे श्रेष्ठतम पात्रों का दर्शन होता है, जिनसे हम केवल ग्रन्थों से परिचित होते है। कभी-कभी यह सोचकर मन संशय ग्रस्त हो जाता है कि क्या सचमुच ऐसे व्यक्ति धरती पर हुए होंगे या यह साहित्यकार की कल्पना है? पर साहित्य और इतिहास के माध्यम से ऐसे भी चरित्र चित्रण सामने आते हैं जिन्हें देखकर लगता है। कि हम उनसे पूरी तरह परिचित है। ऐसा लगने लगता है कि जैसे दर्पण में हम अपना ही प्रतिबिंब देख रहे हैं।

भगवान श्रीराम के संगठन में जो पात्र है, उनसे परिचय पाते समय भी कुछ ऐसी ही मिली जुली अनुभूति होती है। पात्रों का विभाजन दो रूपों में किया जा सकता है- यथार्थ और आदर्श। आदर्श के रूप में वे पात्र है जैसे श्रीभरत, हनुमान, लक्ष्मण इत्यादि। और यथार्थ के रूप में जिन पात्रों को हम अपने निकट पाते हैं वे हे सुग्रीव, विभीषण, मंथरा, कैकेई इत्यादि।

सुग्रीव का व्यक्तित्व अनेक विरोधाभासों से भरा है। उनके जीवन में सद्गुणों का दर्शन तो भगवान श्रीराम और जीवाचार्य के रूप में श्री हनुमान जी तो कर लेते है पर श्री लक्ष्मण जी को भी आश्चर्य होता है जब प्रभु श्रीराम सुग्रीव को इतना सम्मान देकर अपना मित्र बनाते हैं। यही नहीं भगवान श्री राम ने अपने सखा सुग्रीव को प्रधानमंत्री के प्रतिष्ठित पद पर आसीन किया। यह कोई अपने मित्र के प्रति पक्षपात नहीं था बल्कि भगवान श्री राम की नीति एवं प्रीति में जो अद्भुत समन्वय है उसका प्रमाण यह सुग्रीव प्रसंग है।

आदर्श प्रबंधन के प्रतीक के रूप में यदि हम भगवान श्रीराम के द्वारा स्थापित “राम राज्य को देखें, तो एक कुशल प्रबंधक के वे सारे सद्गुणों का दर्शन भगवान श्री राम के व्यक्तित्व में दृष्टिगोचर होते हैं। जो शाश्वत् आदर्श और अनुकरणीय है। प्रभु श्री राम के संगठन में सुग्रीव उन बिरले पात्रों में है जिन्हे स्वार्थ और परमार्थ दोनों की प्राप्ति हुई। किष्किन्धा के राज पद के साथ सुग्रीव को रामपद भी जो सुलभ हुआ, यह उसकी योग्यता का परिणाम नहीं, बल्कि सन्त (हनुमानजी) और भगवन्त (श्रीराम) की अहेतु की करुणा और कृपालुता, स्वाभाव और शील का प्रतिफल है। सुग्रीव के चरित्र में समस्त दुर्बलताओं का दर्शन होते हुए भी श्री हनुमान जी महाराज के प्रति उनकी निष्ठा और विश्वास अप्रतिम थी। यद्यपि वह डरपोक और पलायनवादी था पर प्रभु ने उनके इन दुर्गुणों का भी सदुपयोग कर लिया। और युद्ध में कुंभकर्ण के वध में सुग्रीव ही तो निमित्त कारण बना।
अतः सुग्रीव का चरित्र उन सबके हृदय में आशा का दीप जलाता है जो अपनी असमर्थता और गुणाभाव, के कारण हीनता और नैराश्य अनुभव करते हैं। प्रभु की कृपा केवल गुणी व्यक्ति को ही प्राप्त हो सकती है, इस भ्रान्ति का यहाँ निराकरण मिलता है। यदि सुग्रीव पर कृपा हो सकती है तो प्रभु की शरणागति ग्रहण करने वाले जीव मात्र पर प्रभु की कृपा सुनिश्चित होगी। ऐसा सन्देश सुग्रीव प्रसंग से प्राप्त होता है।

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