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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> मानस प्रवचन भाग-14

मानस प्रवचन भाग-14

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : रामायणम् ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :139
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15262
आईएसबीएन :0

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प्रस्तुत है मानस प्रवचन माला का चौदहवाँ पुष्प - सबके प्रिय सबके हितकारी...

आइये! उस सम्वाद पर एक दृष्टि डालने की चेष्टा की जाय जो महर्षि वाल्मीकि तथा भगवान् श्रीराम के मध्य सम्पन्न हो रहा है। प्रभु जब महर्षि वाल्मीकि से प्रश्न करते हैं कि मैं कहाँ रहूँ? तब महर्षि ने यही कहा कि वैसे तो आप सर्वत्र विद्यमान हैं इसलिये ऐसा कहना कि आप यहाँ निवास कीजिये उपयुक्त तो नहीं हैं। किन्तु जब आपने मुझसे प्रश्न किया ही है तो मैं यह बताना चाहूंगा कि आपके निवास के लिये सर्वोत्कृष्ट भूमि भक्तों का हृदय ही है। महर्षि ने प्रभु की निवास-भूमि के लिये चौदह स्थान बताये। | चौदह स्थान बताने का तात्पर्य यह है कि संसार में सभी व्यक्ति एक जैसी योग्यता वाले नहीं होते हैं। इसलिये यदि महर्षि वाल्मीकि यह कह देते कि प्रभु के निवास के लिये उपयुक्त भूमि केवल ऐसी ही होनी चाहिये तो अनगिनत व्यक्ति निराश हो सकते थे। उन्हें यह लगता कि हमारा हृदय तो ऐसा है नहीं। इसलिये महर्षि वाल्मीकि ने जो चौदह स्थान बताये उनकी विशेषता यह है कि उसमें साधना के विविध पक्ष विद्यमान हैं। यदि किसी की कथा श्रवण में रुचि हो तो उसके हृदय में प्रभु निवास करेंगे। यदि कोई उनके गुणों का गायन करता है तो प्रभु उसके हृदय में निवास करेंगे। अगर कोई व्यक्ति भगवान् की विधिवत् पूजा करता है तो भी वे उसके हृदय में निवास करने के लिये प्रस्तुत हैं।
चौदह में से एक स्थान बताते हुए महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि प्रभु! जिन भक्तों के हृदय में काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, क्षोभ तथा द्रोह की वृत्तियाँ नहीं है

काम कोह मद मान न मोहा।।
लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥ २/१२६/१

और सबके अन्त में उन्होंने तीन बातें जोड़ दीं। वे हैं -
जिन्हके कपट दंभ नहिं माया।
तिन्हके हृदय बसहु रघुराया॥

जिनके हृदय में न तो कपट है, न दम्भ है और न माया है, आप उनके हृदय में निवास कीजिये। इन पंक्तियों में जिन तीन विशेष दुर्गुणों कपट, दम्भ तथा माया को साथ में जोड़ दिया गया है जरा उन पर एक दृष्टि डालने की चेष्टा करें!
कपट के अर्थ का संकेत इस शब्द की रचना पर दृष्टि डालने से प्राप्त होगा। इसमें दो अक्षर वाले ‘पट' से पहले ‘क’ और जुड़ा हुआ है। इस तरह इन तीन अक्षरों के द्वारा इस शब्द की सृष्टि की गयी। हमारे साहित्य में जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उनमें कुछ निहित संकेत रहते हैं। साधारण व्यक्ति उसे उस दृष्टि से नहीं देखता पर यदि उस शब्द का मर्म हम समझना चाहें तो उसे देखने की अपेक्षा है।

यह जो ‘पट' शब्द है उससे आप सब भली भाँति परिचित हैं। पट' का अर्थ है वस्त्र। अगर वस्त्र के सम्बन्ध में विचार करें तो इस ‘पट' शब्द का प्रयोग कई दृष्टियों से किया जा सकता है, तथा किया जाता है। एक तो यह कि अगर वस्त्र शरीर पर न हो तो व्यक्ति निर्वस्त्र होगा और फिर जो दृश्य उपस्थित होगा वह मर्यादा के विरुद्ध होगा। इस अर्थ में वस्त्र मर्यादा का प्रतीक माना जाता है। पर वस्त्र धारण करने में यह ध्यान रखने की चेष्टा की जाती है कि हम इस रूप में सामने आयें कि हमारा व्यवहार शारीरिक व मानसिक रूप में अमर्यादित न हो। रामचरितमानस में इस प्रकार का एक संकेत श्रीहनुमान्जी तथा रावण के संवाद में आता है।

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