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रहस्य-रोमांच >> कानून की दहशत

कानून की दहशत

समय

प्रकाशक : रायल पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15335
आईएसबीएन :0

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कानून किसी अपराधी की सहायता नहीं लेता है…

कानून की दहशत

न्यायाधीश महोदय पैन उठाते हुए बोले-"पुलिस हिरासत में तुमने एक आदमी का खून किया है।"

"वो आदमी नहीं था, हिजड़ा था-हिजड़े के लिए मुझे मौत की सजा दी जायेगी, जो अबे इस दुनिया में भी नहीं है।” भामा शाह चिंघाड़ने लगा-"ज़िसने सैकड़ों बेकसूर लोगों को मारा, हजारों घर उजाड़े, जो कानून को हर कदम पर कुचलता रहा। अगर कानून के रखवालों को कानून ही मौत देने लगेगा तो कानून की रखवाली करने के लिए कोई माँ अपने बेटे को कानून का रखवाला नहीं बनायेगी जज साहब, इस शहर की भलाई के लिए मैं अपनी जिन्दगी की आपसे भीख माँग रहा हूँ अगर आपने मेरे गले को फाँसी के फंदे के हवाले कर दिया तो यह शहर तबाह हो जायेगा जज साहब।"

"कानून किसी अपराधी की सहायता नहीं लेता है भामा शाह, कानून के पास बहुत ताकत होती है, ये तो तुमको मालूम ही है।”

"तो कानून अपनी ताकत से निगल ले अपने बच्चे को, मार डाले मुझे तो कानून सुनाये अपने बच्चे को मार डालने का फैसला सुनने के लिए मैं तैयार हैं, लेकिन मैं फाँसी के फंदे पे नहीं लटकूंगा, मैं भाग जाऊंगा, कानून की सलाखें मुझको नहीं रोक सकेंगी। जेल से फरार होकर मैं मुजरिमों की फौज से लडूंगा।”

"सारे सुबूतों और गवाहों के बयानात पर अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि मुजरिम भामा शाह को ताजी-रात-ए-हिन्द दफा 302 के तहत मौत की सजा सुनाती है।”
“खुश हुआ जज साहब, मैं खुश हुआ, कानून का मुँह देखकर मैं खुश हुआ, अगर मुझे पहले मालूम होता कि कानून का ऐसा मुँह होता है जो अपने ही बच्चे को निगल जाता है तो मैं कानून से नफरत करने लगता और जुर्म का रास्ता अपना लेता, लेकिन अब मैं कानून का साथ नहीं दूंगा, क्योंकि कानून का साथ मैंने अब तक दिया और कानून ने मुझको ही निगलने की कोशिश की है।"

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