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प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी

सारंग त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15367
आईएसबीएन :0

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५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….

श्री सारंग त्रिपाठी हिन्दी के जाने-माने कवि हैं। आरक्षण-विरोधी आन्दोलन से समय-समय पर देश पीड़ित एवं दोलित होता रहा है। वर्ण-पूजा के सामने गुण-पूजा और प्रतिभा-कौशल को हमने पैरों से ठुकरा दिया है। फलस्वरूप फूल कुम्हलाने लगे हैं और शूल चुभन पैदा करने लगे हैं। इससे देश की गुणात्मक शक्ति कुंठित हो रही है और कुशलता पंगु बनती जा रही है। यह व्यक्ति, समाज और देश के लिए चिन्ता का विषय है। यह उन्नति का अवरोधक भी है।

कवि सारग त्रिपाठी ने ५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता को बड़े सुन्दर एवं सहज ढंग से प्रस्तुत कर कवि भूषण की बावनी की छटा प्रस्तुत कर दी है। प्रत्येक चार पदी छन्द में नई बात, नई चेतना और नई दिशा प्रस्तुत करने में कवि को बड़ी सफलता मिली है।

भाषा सरल, सबल एवं प्रभावपूर्ण है। भाव मार्मिक एवं गर्भित हैं, जिन पर वास्तविकता की खोल चढ़ी है। काश इसे पढ़-सुन कर दलगत राजनीति के वर्ण के दाम्भिक पुजारियों की आँखे खुल जाती, तो देश को अधिक स्वस्थता प्राप्त होती। सुना है कि इस पुस्तक का गुजराती अनुवाद हो गया है।

हम पुस्तक और इसमें निहित विचारों का बहु प्रचार चाहते हैं। इस प्रयास के लिए सादर अभिनन्दन।
(अक्टूबर ८५)

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