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भारतीय संस्कृति में कर्मयोग

डॉ. प्रीति राठौर

प्रकाशक : आशा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15767
आईएसबीएन :978-93-81022-62-7

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भारतीय संस्कृति में कर्मयोग

भारतीय संस्कृति सदैव कर्म प्रधान रही है, जिसमें मानवीय संवेदना, मानवीय मूल्यों एवं मानव कल्याण का प्रसार है।

प्रस्तुत पुस्तक में कर्मयोग की अवधारणा, महत्त्व, कर्मफल पद्धति एवं मानव जीवन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का विस्तृत विवेचन किया गया है।

कर्तृत्व के अभिमान से तथा कर्मफल में आसक्ति रखकर किये गये कर्म बन्धन के कारण होते हैं परन्तु ईश्वर को कर्माध्यक्ष एवं कर्मफलदाता मानकर किये गये कर्म चित्त को शुद्ध कर मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस ईश्वरार्पणबुद्धि से कर्म करने का नाम ही कर्मयोग है।

वेद, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण, पुराण, रामायण, महाभारत आदि विभिन्न ग्रन्थों में कर्मयोग को ही मानव जीवन का आधार माना गया है। कर्म न केवल व्यक्ति को वर्तमान जीवन में जन्म से मृत्यु पर्यन्त दिशा निर्देशित करता है वरन् पुनर्जन्म पर भी कर्मयोग का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. समर्पण
  2. अनुक्रमणिका

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