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हजारीप्रसाद द्विवेदी : एक जागतिक आचार्य

श्रीप्रकाश शुक्ल

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :429
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15774
आईएसबीएन :9789389830613

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हजारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के स्तंभ हैं। साहित्य की विभिन्‍न विधाओं में उनकी सक्रियता एक सी रही है-चाहे आलोचना रही हो, निबंध रहा हो या इतिहास और उपन्यास। सभी क्षेत्रों में उन्होंने उत्कृष्ट और प्रचुर लिखा है। हिंदी के ऐसे विरल व्यक्तित्वों में एक हजारीप्रसाद द्विवेदी का समृद्ध-जटिल और अर्थबहुल रचना-संसार हमें आकर्षित भी करता है और अचंभित भी।

द्विवेदी जी का व्यक्तित्व अनेक प्रकार के द्वित्वों के समाहार से निर्मित हुआ था। जब वे साहित्य में सक्रिय हुए तब भारत औपनिवेशिक गुलामी के दौर में था, जब उनकी पुख्ता पहचान बनी साहित्यिक वातावरण में आधुनिकता और आधुनिकतावादी प्रवृत्तियों का विस्तार चरम पर था। इन सबसे और सबके बीच निर्मित द्विवेदी जी का मानस परंपरा, जातीय संस्कृति, समाज के कमजोर पक्षों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण भावदृष्टि, आत्म के विकास की चेष्टा, जिजीविषा से निर्मित होता है। आधुनिकता और आधुनिकतावादी प्रवृत्तियों से टकराने में इन्होंने अपनी रचनात्मक ऊर्जा खत्म नहीं की, बल्कि इन प्रवृत्तियों से उपर्युक्त तथ्यों का समाहार किया। इस संगुंफन ने ही द्विवेदी जी के व्यक्तित्व को गति भी दी, विविधता और विराटता भी।

द्विवेदी जी के विविध पक्षों को उद्घाटित करती यह पुस्तक अपनी संवादधर्मिता के कारण विशिष्ट है। संवाद कई स्तरों का है। पुनर्मूल्यांकन की कोशिश है अजय भी संवाद का एक स्तर है। इस पुस्तक के अधिकांश निबंध द्विवेदी जी के जन्म शताब्दी वर्ष में लिखे गये थे। साथ ही यह भी ध्यान देना चाहिए कि तब हिंदी के वरिष्ठ और युवाओं ने मिल कर जिस तरह द्विवेदी जी की रचनाओं का सघन मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन किया, वह एक ओर द्विवेदी जी के प्रति हिंदी बौद्धिकता की आश्वस्ति है, कृतज्ञता है, तो दूसरी ओर संवादधर्मी हिंदी बौद्धिकता में द्विवेदी जी की स्वीकृति और प्रासंगिकता का वाचक भी है। पुस्तक के संपादक श्रीप्रकाश शुक्ल ने जागतिक शब्द की जो प्रसंगात व्याख्या की है, वह इस द्वित्व के समाहार के कारण ही संभव हुआ है।

इस पुस्तक में द्विवेदी जी की रचनात्मकता के सभी पक्षों को समेटने की कोशिश की गयी है। आलोचक, उपन्यासकार, इतिहासकार, निबंधकार के रूप में तो वे यहाँ हैं ही, साथ ही उनकी संस्कृति-चिता को भी इस पुस्तक में विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। यह इस पुस्तक के आयाम को बढ़ाता है।

हमारा विश्वास है कि हजारीप्रसाद द्विवेदी के सृजन-संसार और दृष्टि को अनेक कोणों से स्पष्ट करने में तथा उनके साहित्यिक अवदान को समझने में यह पुस्तक उपयोगी होगी।

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