लोगों की राय

आलोचना >> यह प्रेमचंद हैं

यह प्रेमचंद हैं

अपूर्वानंद

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :406
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15784
आईएसबीएन :9789389830880

Like this Hindi book 0

यह भाषा वह नहीं लिख सकता जिसके लिए लिखना ही आनंद का ज़रिया न हो। वह समाज को दिशा दिखलाने के लिए, उपदेश देने के लिए, उसके लिए नीति निर्धारित करने के लिए नहीं लिखता। वह लिखता है क्योंकि लिखने में उसे मज़ा आता है। यह ज़रूर है कि साहित्य वही उत्तम है जो मनुष्य को ऊँचा उठाता हो। अगर वह उसे उसकी अभी की सतह से ऊपर उठने में, औरों को समझने में, उनसे बराबरी और समझदारी का रिश्ता बना पाने में मदद नहीं करता तो प्रेमचंद की निगाह में उसकी कोई वक़त नहीं।

– इसी पुस्तक से

प्रेमचंद का पूरा साहित्य मनुष्यता की संभावना के ऐसे प्रमाणों का दस्तावेज है। इंसान हुआ जा सकता है, इंसाफ की आवाज़ सुनी जा सकती है, मोहब्बत मुमकिन है और बहुत मुश्किल नहीं, अगर कोशिश की जाए। मनुष्यता का यह अभ्यास करना ही होगा और उस अभ्यास में हमें हौसला बँधाते हमारे बगल में हमेशा प्रेमचंद खड़े मिलेंगे।

– भूमिका से

चौथी कक्षा में ईदगाह के लगने के बाद से स्कूल की पाठ्य पुस्तकों में प्रेमचंद का पीछा दसवीं में ग़बन लगने के बाद ही छूटा। गनीमत है कि ग्यारहवीं में भगवती चरण जी ने ‘भूले-बिसरे चित्र’ में शरण दी नहीं तो आखिरी साल में भी बचना मुश्किल था। पता नहीं कविता और नाटक को क्‍यों बख्शा गया लेकिन हर दूसरी विधा-कहानी, निबंध, उपन्यास-में महोदय मौजूद। मेरी तरह हिंदी के ऐसे हजारों पाठक होंगे जिनको छोटी उम्र में ही प्रेमचंद नामक कैदखाने में कड़ी सज़ा भुगतनी पड़ी। सज़ा इसलिए कि पाठ्यपुस्तकों और परीक्षाओं की अद्भुत जुगलबंदी जुलाई के जीवंत विषय को मार्च के आने तक निर्जीव तथ्यों का कंकाल बना देती है। सप्रसंग व्याख्या, लघु निबंध, टिप्पणी और चरित्र चित्रण लिखते-लिखते हम भी सीख गये कि सवाल चाहे जो भी हो, जवाब कितने महान थे वाली शैली में ही लिखना है।

लंबी भूमिका इसलिए कि जिस लेखक पर पाठ्यपुस्तकों के जरिये दशकों से महानता का रोडरोलर चलाया गया हो, उसके लेखन और शख्सियत को सपाट सतहीपन से उबारना आसान नहीं। अपूर्वानंद जी इस कठिन काम को सहजता से, प्रेमचंद की भाषा की तरह अपने श्रम और हुनर को छिपाते हुए, कर दिखाते हैं। साहित्य के अध्येताओं की बात मैं नहीं कर सकता लेकिन हिंदी यह पुस्तक प्रेमचंद पर ही नहीं, मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों पर लिखी कुछ उन गिनी-चुनी पुस्तकों में से है, जिसको पढ़ना हर एक के लिए अनिवार्य होना चाहिए। यह पुस्तक प्रेमचंद का एक सटीक विश्लेषण ही नहीं, हमारे समाज और आत्मा पर एक गहरा चिंतन है। अपने उज्ज्वल प्रकाश से यह कृति मूल्यों को केंद्रित

करती है।

– प्रताप भानु मेहता

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book