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उपन्यास >> बनारसी बाई

बनारसी बाई

विमल मित्र

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :193
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15841
आईएसबीएन :9788180316975

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…मुझे याद है कि इस मामले के इन्वेस्टिगेशन का भार मुझ पर ही पड़ा था। रिश्वतखोरी पकड़ने की नौकरी में कुछ ही साल था मैं। अनेकों तरह की अभिज्ञताएँ हुई थीं उस नौकरी में। उनमें यह समर और कनक की भी घटना थी। कनक और समर आज भी कलकत्ते में एक फ्लैट में रहते हैं। प्रायः मिलना होता है। सुखी जीवन है उनका। मैंने बस उनका नाम-धाम बदल दिया है। नहीं तो सब सच है।…

और मिसेज दास ? उनका पता नहीं चला। वह शायद किसी और शहर में जाकर अभी भी यही धन्धा चला रही हैं।…

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