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सुधियों की चाँदनी

निर्मलेन्दु शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15865
आईएसबीएन :978-1-61301-697-8

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विलक्षण गीतकार के गीत, छंद


निर्मलेन्दु शुक्ल : सुधियों की चाँदनी में..

 


साहित्यिक सफ़र की शुरुआत से ही लखनऊ मेरे लिये सूबे के साथ- साथ दिल की राजधानी रहा और आज भी है, जहाँ बड़े भाई मुनेन्द्र शुक्ल जैसे अनुपम व्यक्तित्व के प्रगाढ़ स्नेह के साथ ही अद्भुत गीतकार अनुज देवल आशीष मिला और अनेक कवि मित्रों से परिचय हुआ। उनमें अनायास ही कुछेक से मित्रता घनिष्ठ होती चली गई। उन मित्रों में देवल के बाद अकस्मात, असमय बिछुड़ जाने वाले निश्छल गीतकवि भाई निर्मलेन्दु शुक्ल का नाम सबसे पहले आता है। कई दशकों के अन्तरंग संग के कारण, उनका नाम लेते ही अनेक चर्चाओं, कवि सम्मेलनी यात्राओं, अद्भुत परिहासी घटनाओं की स्मृति के असंख्य चित्र उभर आते हैं, जो बयान से बाहर हैं। 

इंतिहाई संजीदगी वाली गहराई के साथ मस्ती और मुहब्बत की उछाल मारती मौजों वाले दरिया जैसा दिल था उनका, जिसे मैंने दीर्घकालीन अन्तरंगता और सानिध्य के क्षणों में भरपूर महसूस किया है। मेरे लिए यह विशेष प्रसन्नता की बात है कि उनकी बेटी की इच्छानुरूप मुनेन्द्र भाई द्वारा निर्मलेन्दु शुक्ल का काव्य संग्रह 'सुधियों की चाँदनी' प्रकाशित हो रहा है जिसमें मुझे कुछ लिखने का सौभाग्य मिला है।

हमेशा मुस्कुराते चेहरे की विशिष्ट पहचान लिये निर्मलेन्दु भाई, जिन्हें हम सब प्यार से भगवन् कहते थे, के बारे में कहूँ तो ख़ुलूस, ख़ुद्दारी, ज़िन्दादिली, बेबाकी, मस्ती, मुहब्बत और शोख़ियों को यकजा करके ही उनकी तबीयत और गीतों की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। निर्मलेन्दु भाई बेजोड़ गीतकार तो थे ही लेकिन उनकी ग़ज़लों के इशारों से पता चलता है कि उन्हें ग़ज़ल से भी दिली मुहब्बत थी और उनमें भरपूर सलाहियत भी थी।

संग्रह के गीतों का विवेचन व मूल्यांकन तो गीत के मनीषी विद्वत्जन करेंगे, क्योंकि मैं गीतों का कोई अधिकारी विद्वान नहीं हूँ, हाँ... ग़ज़ल की ग़ोताखोरी के बीच यदा-कदा गीत की गंगा में भी सिर्फ़ डुबकी मार लेता हूँ बस.. परन्तु निर्मलेन्दु भाई के गीतों का प्रशंसक इसलिए हूँ कि तमाम गीतान्दोलनों, नामों की चर्चाओं से विरत, एक समर्पित, रागधर्मी गीत-कवि की भाँति, उनके गीतों की मौलिकता, नवता, सहजता और सरल स्वाभाविक भाषा  गीतों की अपनी विशिष्ट पहचान है। दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि मुझे उनके गीतों में भी वही सब कुछ दिखाई देता है जो सब कुछ निर्मलेन्दु भाई के भीतर था। मेरी दृष्टि में शायद व्यक्तित्व और गीतों की यह एकरूपता व निश्छल पारदर्शिता ही निर्मलेन्दु भाई के गीतों का प्राणतत्व और उनकी अर्थवत्ता की शक्ति भी है।

विश्वास है कि सुधी पाठक गीतों से आनन्दित होंगे और संग्रह का स्वागत करेंगे। अनन्त मंगलकामनाओं तथा निर्मलेन्दु भाई की स्नेहिल स्मृतियों को नमन सहित....


- राजेन्द्र तिवारी
तपोवन - 38 बी,
गोविन्द नगर, कानपुर
मो. 8381828988

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