लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> पवित्र पाप

पवित्र पाप

सुशोभित

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15912
आईएसबीएन :9789392228254

Like this Hindi book 0

स्त्री और पुरुष के सम्बन्धों पर इस संसार में जितना चिन्तन, मनन, लेखन इत्यादि हुआ है, उतना किसी दूसरे विषय पर नहीं हुआ होगा। इस क्षेत्र के लगभग सभी आयाम अनन्त बार छू लिये गये हैं। तब प्रश्न उठता है, इस विषय पर और एक पुस्तक किसलिए ?

इसके उत्तर में लेखक इतना ही कहेगा कि जितनी तेज़ी से युगचेतना का चक्र चला है, उसने परिप्रेक्ष्यों को भी उतनी ही तीब्रता से बदला है और वैसे में सदियों पुराने प्रश्नों पर भी विमर्श के नए कोण उभर आए हैं। मनुष्य-जाति के इतिहास में इससे पहले इतने सारे लोगों को सार्वजनिक रूप से अपने विचार रखने की स्वतन्त्रता और अवसर कभी नहीं मिले थे। विचारों के घटाटोप ने परिप्रेक्ष्यों को धूमिल किया है और घात-प्रतिघातों के आवेश ने संवाद को इधर निरन्तर कठिन बनाया है। वैसे में यह पुस्तक एक नये सिरे से, स्त्री-पुरुष के बीच बुनियादी महत्त्व के अनेक प्रश्नों- जिममें प्रेम, विवाह और यौनेच्छा केन्द्र में हैं-पर एक प्रासंगिक, साहसी, मेधावी, समकालीन और किंचित प्रोवोकेटिव बहस की प्रस्तावना पाठकों के सम्मुख रखती है और जिन प्रश्नों से उनके अन्तर्मन का रात- दिन का संघर्ष बना रहता है, उन पर खुलकर बात करने के लिए उन्‍हें न्योता देती है।

विधागत रूप से इसे मैं स्त्री-विमर्श की पुस्तक कहूँगा। इसके बहुतेरे लेख स्त्री के दृष्टिकोण से लिखे गये हैं। पुरुष का दृष्टिकोण भी प्रस्तुत हुआ है, किन्तु उसका सम्पूर्ण विस्तार कदाचित्‌ पृथक से एक पुस्तक का विषय हो। पुस्तक का मूल स्वर वार्ता, विमर्श और वृत्तान्त का है। उसकी प्रविधि मनोवैज्ञानिक और व्यक्तिवादी है और वह पाठकों को जिरह में सम्मिलित होने के लिए पुकारती है। विभिन्‍न पुस्तकों, फ़िल्मों, परिघटनाओं और दन्तकथाओं को एक दृष्टान्त की तरह सामने रखकर भी कुछ लेख गूँथे गये हैं। कुछ लेखों में निजी संस्मरणों की छापें हैं। किन्तु सभी लेखों को एक सूत्र में पिरोने वाली भावना वही है, जो इस पुस्तक का घोष-वाक्य है-स्त्री-पुरुष सम्बन्ध के समीकरणों पर संवाद। पुस्तक में अवैध सम्बन्ध, व्यभिचार, समलैंगिकता, बलात्कार, ईव-टीज़िंग, सहमति, परित्याग, विवाहेतर सम्बन्ध, इंटरफ़ेथ मैरिज, उम्र का बन्धन, सम्बन्ध विच्छेद, प्रणय निवेदन जैसे जटिल और विवादित विषयों पर पर्याप्त मनोवैज्ञानिक गम्भीरता से विचार प्रस्तुत किये गये हैं।

– भूमिका से

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book