लोगों की राय

सामाजिक >> कल्पना चकमा

कल्पना चकमा

सलाम आजाद

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1593
आईएसबीएन :81-7315-527-5

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

52 पाठक हैं

एक विदेशी पत्रकार सिसिलिया सैम्सन बँगलादेश सरकार से अनुमति लेकर ...

Kalpana Chakma

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

उपन्यास की कथाभूमि चटगाँव एवं उसका पर्वतीय अंचल है। एक विदेशी पत्रकार सिसिलिया सैम्सन बँगलादेश सरकार से अनुमति लेकर चटगाँव के पर्वतीय क्षेत्रों का सामाजिक अध्ययन करती है। पहाड़ी युवतियों पर पाकिस्तानी सेना के जवानों द्वारा कैसा पाशवी अत्याचार होता रहा है और यह सब सरकार के इशारे पर होता रहा है आदिवासियों के साथ जम्मू समुदाय ने इसका किस प्रकार पुरजोर विरोध किया इसका सम्यक् एवं खोजपरक विश्लेषण इस उपन्यास में किया गया है।

कल्पना चकमा

पहला अध्याय

बँगलादेश में सिसिलिया सैम्सन की नवनियुक्ति हुई। इस देश में आने से पहले उन्होंने इसके बारे में सभी
तथ्यों का भली-भाँति अध्ययन कर लिया था। जिस गैर सरकारी संस्था की ओर से वे ढाका आए, उसका शहरी कार्यालय गुलशन पर स्थित है, जो ढाका के धनाढ्य इलाकों में से एक है। उसी इलाके में कार्यालय की ओर से उनके लिए एक फ्लैट की व्यवस्था की गई। गारो जाति का एक स्थानीय युवक उनका ड्राइवर है। यह गारो युवक दो पीढ़ी पहले कैथोलिक बना था। इसके अलावा इसी गारो जाति की दो अन्य युवतियाँ उनके लिए भोजन बनाना और अन्य दूसरे काम कर देती थीं। वे दोनों भी ईसाई धर्म की ही हैं, मगर वे कैथोलिक नहीं बल्कि प्रोटेस्टेंट हैं। वे दोनों युवतियाँ उनके स्टाफ के अन्तर्गत हैं।

यद्यपि ड्राइवर का वेतन कार्यालय से ही आता है, मगर दोनों युवतियों का वेतन उन्हें ही देना पड़ता है। इस शहर में उनके चार महीने पूरे होने वाले हैं। इन चार महीनों में उन्होंने दोनों को जो वेतन दिया है, वह उनके एक सप्ताह के वेतन से भी कम है।

एक बार रात में नींद नहीं आ रही थी, तभी उन्हें दोनों युवतियों की बात याद आई, जो उनके पास के कमरे में ही सो रही थीं। स्वयं नारी होने के नाते उन दोनों युवतियों के प्रति वैषम्यता उन्हें स्पर्श कर गई थी। उनके अपने देश कनाडा में इतने कम वेतन पर काम करनेवाले लोगों का मिलना सपने की बात है।

वह तो स्वयं भी नारी है, अंतर केवल यही है कि उसका जन्म, शिक्षा-दीक्षा-सभी कनाडा में संपन्न हुई। मगर वे दोनों युवतियाँ इतनी शिक्षा प्राप्त करने में सफल नहीं हुई थीं। अगर वे भी किसी विदेशी विश्वविद्यालय की सर्वोच्च डिग्री ले सकतीं तो क्या वे दोनों भी उनके स्तर की नौकरी पाने में सफल होतीं ? शायद उन्हें नहीं मिलती। उन्हें स्थानीय स्टाफ के अनुसार रूपय में वेतन मिलता, डॉलर में नहीं।

इस तरह के कुछ युवक-युवतियाँ उनके दफ्तर में स्थानीय स्टाफ के रूप में कार्यरत थे, जिन्हें विश्वविद्यालय की सर्वोच्च डिग्री प्राप्त है, फिर भी उन्हें डॉलर में वेतन नहीं मिलता। रूपये में जो वेतन उन्हें मिलता है, वह सिसिलिया के वेतन का दसवाँ हिस्सा ही नहीं है। यद्यपि देखा जाए तो सिसिलिया के पास उनसे अधिक कोई उच्च डिग्री नहीं है।

इन चार महीनों में ढाका शहर से बाहर उनका वैसे कभी जाना ही नहीं हुआ था। एक बार वह कॉक्स बाजार गई थीं, उन्हें समुद्री किनारा पसंद नहीं आया। समुद्र-किनारे जिस तरह धूप-स्नान करने की व्यवस्था होती है उस प्रकार वहाँ भी व्यवस्था है, पर सिसिलिया को सुरक्षा की दृष्टि से वह स्थान पसंद नहीं आया। दो दिन बाद ही वे वहाँ से वापस आ गईं।
एक बार वे सातरवीरा प्रस्थान के उद्देश्य से सड़क मार्ग से रवाना हुईं। अपनी ही संस्था के सहयोग से विकसित एक एन. जी. ओ. (गैर-सरकारी संगठन) के कामकाज का निरीक्षण करने के लिए वहाँ जाते समय उन्हें बँगलादेश का ग्रामीण अंचल दीख पडा, जिसका अवलोकन उन्होंने आनंदपूवर्क किया। किसी भी देश को देखना उसके गाँव को देखे बिना अधूरा ही रहता है।

किसी भी देश के तीन आयाम उसके लिए बहुत महत्त्व रखते हैं। देश के ग्रामीण जन वह ग्राम्यांचल, उस देश का नारी समुदाय एवं अल्पसंख्यक समुदाय। ये तीनों अगर समर्थ व संपन्न होते हैं तो वह एक विकसित देश माना जाना चाहिए, पर बँगलादेश में चार महीनें प्रवास करने के बाद का उनका अनुभव अच्छा नहीं है। यहाँ उन्हें एक वर्ष आठ महीने और प्रवास करना है। दो वर्षों के अनुबंध पर यहाँ उनका आना हुआ था।

जिस योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी लेकर वे ढाका आई हैं, उस योजना से संबंधित इलाके में वे अभी तक नहीं जा पाई हैं। उस इलाके में जाने से पहले उन्हें बँगलादेशी गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी। परंतु एक महीना बीत जाने पर भी उन्हें इसकी अनुमति प्राप्त नहीं हुई। फिर भी उनकी योजनावाले इलाके के स्थानीय लोगों से ढाका में कई बार उनकी मुलाकात एवं बातचीत हुई है। उस अंचल हेतु सरकार का एक अलग मंत्रालय है। उस मंत्रालय से संबंधित कर्मचारियों के साथ उन्होंने बैठकें की हैं। जो लोग चटगाँव के पर्वतीय इलाके के बारे में विचार करते हैं, जिन्होंने उनपर काम किया है, विचार-विमर्श किया है या कुछ लिखा है उन सभी से सिसिलिया की पहले ही बात हो गई है।

वर्तमान में वह मंत्रालय की अनुमति के इंतजार में हैं, जो प्राप्त होने के बाद वे शीघ्र ही वहाँ प्रस्थन की तैयरी करेंगी और चटगाँव के पर्वतीय अंचलों का सर्वेक्षण भी करेंगी। वह वहाँ कुछ दिनों के लिए ठहरना चाहती हैं तथा स्थानीय लोग से विचार-विमर्श करना चाहती है, विशेषकर वहाँ के स्त्री-पुरुषों से, साथ ही प्रशासन से और जनप्रतिनिधियों एवं स्थानीय राजनीतिक नेताओं से भी।

एक महीना पूरा होने के लगभग छह दिन पूर्व ही उन्हें बँगलादेशी ग्रह मंत्रालय की अनुमति मिल गई। उनका एक बँगलादेशी कर्मचारी उन्हें अनुमति-पत्र थमा गया। हालाँकि अनुमति-पत्र में कहीं भी कुछ विशेष ब्योरा नहीं था, फिर भी उस स्थानीय कर्मचारी ने चटगाँव के पर्वतीय अंचल की एक उचित रूप रेखा प्रस्तुत की, जिसके बारे में सिसिलिया को पहले ही जानकारी थी, फिर भी उन्होंने उस व्यक्ति की बातों को सुना।
उस व्यक्ति के जाने के बाद सिसिलिया अपने बॉस के कक्ष में अनुमति-पत्र लेकर दाखिल हुईं। बॉस ने वह अनुमति-पत्र पढकर सिसिलिया को बधाई दी।

बॉस- ‘‘कब जाना चाहेंगी ?’’
सिसिलिया-‘‘एक सप्ताह बाद जाना चाहूँगी, शायद अगले सोमवार तक।’’
‘‘अनुमति-पत्र जब आपके हाथ में है तो फिर अगले सोमवार को क्यों जाना चाहती हो ?’’
‘‘कुछ काम पूरे करने अभी शेष हैं, उन्हें करके ही जाना चाहती हूँ। इसके अतिरिक्त वहाँ जाने से पहले अपनी ओर से कुछ होम वर्क करके जाना चाहती हूँ।’’

‘‘ठीक है फिर भी रवाना होने से पहले समयानुसार ऑफिस को सूचना भेजना न भूलना।’’
‘‘अगर आप इसे अधिकारिक तौर पर सूचित करें तो बेहतर होगा।’’
‘‘ठीक है मैं कल ही यह सूचना भेज देता हूँ। सोमवार को किस समय जाएँगी, पहला पड़ाव कहाँ होगा- खागड़ाझड़ी या रांगामाटी या बांदरबान ?’’

‘‘सोमवार को सुबह सात बजे मैं ढाका से प्रस्थान करूँगी और सर्वप्रथम खागड़ाझड़ी पहुँचने की इच्छा है।’’
‘‘आपके साथ जानेवाला कोई अन्य व्यक्ति है ?’’
‘‘जी, संजीव मेरे साथ जाएगा।’’
‘‘कहाँ ठहरोगी ?’’

‘‘पर्यटन विभाग के एक छोटे होटल में ठहरना चाहती हूँ, इसलिए आज ही बुकिंग करवाना चाहती हूँ।’’
‘‘ठीक है कितने दिनों तक इस बार रहना चाहेंगी ?’’
‘‘अभी मैं निश्चित तौर पर कुछ बता नहीं सकती, पर मैं आपसे लगातार संपर्क बनाए रखूँगी।’’
‘‘ठीक है।’’

कहीं भी किसी भी स्थान के लिए रवाना होने से पहले कुछ सामान व्यवस्थित करने पड़ते हैं। सिसिलिया के साथ भी वही हुआ। ढाका में पर्यटन विभाग के दफ्तर में उन्होंने बुकिंग करवा दी। खागड़ाझड़ी में पर्यटन विभाग का एक छोटा होटल शुरू किया गया है- लगभग एक साल पहले, जनवरी में। देशी-विदेशी पर्यटकों, सभी के लिए यहाँ 25 प्रतिशत छूट की व्यवस्था थी। सिसिलिया ने दो कमरे बुक करवाए थे अपने लिए- एक ए.सी. रूम. और ड्राइवर के लिए नॉन ए.सी. रूम।

एक दिन एक रिपोर्टर चटगाँव के पर्वतीय इलाके की रिपोर्ट तैयार करके उनके ऑफिस आया। उनके साथ चटगाँव के पर्वतीय इलाके की भूमि के विषय में सिसिलिया ने विचार किया था। उस संवाददाता से उन्हें यह सूचना मिली कि ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ‘पर्वतीय चटगाँव शासन विधि 1900’ नाम से एक कानून पारित हुआ था। इस कानून के पारित होने की वजह से जुम्म जनजातियों के कई अधिकार कम हो गए। फिर भी पहाड़ के वासियों की प्रथागत, सामूहिक और वैयक्तिक भूमि स्वामित्व की व्यवस्था को इस शासन-विधि में स्वीकार किया गया। इस शासन-विधि के अंतर्गत पर्वतीय आदिवासियों की जो संज्ञा बताई गई है, उसमें पर्वतीय चटगाँव के स्थायी वासियों के रूप में पर्वतीय आदिवासियों का ही निर्दिष्ट उल्लेख है। इसमें पर्वतीय अंचल के भूमि-स्वामित्व हस्तांतरण पद्धति के संदर्भ में इलाके के हेडमैन की रिपोर्ट एवं जिला प्रशासन द्वारा इसका अनुमोदन करना आदि बातों का निर्धारण किया गया है।

राजस्व-संग्रह का दायित्व व्यवसायी हेडमैन, सर्कल चीफ और जिला प्रशासकों को दिया गया, अर्थात् साधारण पहाड़ी जनता से राजस्व-वसूली व्यवसायी लोग करेंगे। वे वसूल कर हेडमैन को देंगे और वह उसे राजस्व सर्कल चीफ को देगा। राजा या सर्कल चीफ इसे जिला प्रशासक तथा सरकार को प्रदान करेंगे। इस शासक-विधि के अनुसार इकट्ठे हुए राजस्व से हेडमैन व राजा-किसकी कितनी भागीदारी होगी, इसका सुनिश्चित उल्लेख प्रारूप में किया गया है।

यह कहना निरर्थक होगा कि सामूहिक अधिकार पर्वतीय चटगाँव की भूमि के ऊपर उस इलाके के स्थायी वासियों के स्वामित्व को स्वीकृति मिलने पर भी पर्वतीय चटगाँव की मुख्य भूमि उनके अधिकार के अंतर्गत नहीं थी।

भारतीय उपमहाद्वीप विभाग के प्रारम्भिक चरणों में ‘भारतीय स्वाधीनता कनून 1947’ नाम से ब्रिटिश संसद द्वारा जो कानून पारित हुआ था, उस कानून के अंतर्गत मुसलिम-बहुल क्षेत्र लेकर पाकिस्तान और गैर-मुसलिम क्षेत्रों को लेकर भारत गठन का प्रस्ताव रखा गया था। इसके अंतर्गत 97.5 प्रतिशत गैर-मुसलिम पर्वतीय चटगाँव का विलय भारत में कराने की माँग वहाँ के निवासियों ने की थी, लेकिन पाकिस्तान में इसका विलय हो जाने के कारण आरंभ से ही उस क्षेत्र के नागरिक पाकिस्तान सरकार के प्रबल रोष में थे। पाकिस्तान की सरकार यहाँ के निवासियों को आरंभ से ही पाकिस्तान-विरोधी की संज्ञा देने लगी। ’50 और ’60 के दशकों में भारत में आए कई हजार बँगलादेशी शरणार्थियों को पर्वतीय चटगाँव की शासन-विधि का उल्लंघन कर उन्हें उस क्षेत्र में रहने की जगह दी गई।

इसके अतिरिक्त सन् 1960 में पर्वतीय चटगाँव का शस्त्र-भंडार कहे जानेवाले चौवन हजार एकड़ जमीन को काप्ताई बाँध-निर्माण के उद्देश्य से पानी में निमग्न कर दिया गया। साथ ही उस क्षेत्र के एक लाख जुम्म-वासी शरणार्थी बना दिए गए, जिनमें से कई को आज भी पुनर्वास नहीं मिला है। जनरल जियाउर्रहमान के शासनकाल में राजनीतिक भावना से प्रेरित होकर सन् 79 में पर्वतीय चटगाँव शासक विधि की अनेक धाराएँ संशोधित की गईं और 79 से इन आठ सालों में लगभग पचास हजार बंगाली मुसलिमों को बँगलादेश के विभिन्न अंचलों से पर्वतीय चटगाँव में शामिल किया गया। इन पचास हजार मुसलमानों को पूरी तरह सरकारी संरक्षण प्रदान करने एवं राबेता जैसा मध्य-पूर्व उद्गमवाले गैर-सरकारी संगठन की आर्थिक सहायता के बल पर पुनर्वास कराने के नाम पर जुम्म जनजातियों की पैतृक संपत्ति, खेती योग्य भूमि पर जबरदस्ती अधिकार करके आदिवासियों को अपनी ही भूमि से अलग कर दिया गया ।

सरकारी संरक्षण के अंतर्गत सेटलर कार्यकर्ताओं द्वारा इन जनजातियों की संपत्ति और भूमि पर जबरदस्ती कब्जा करने के परिणामस्वरूप वे सिर्फ बेसहारा ही नहीं हुए, वरन् उनकी इस भूमि-समस्या ने विशाल रूप धारण कर लिया। पर्वतीय चटगाँव का क्षेत्रफल बँगलादेश के संपूर्ण क्षेत्रफल का दसवाँ भाग है। फिर भी बँगलादेश के अन्य क्षेत्रों की तरह पर्वतीय चटगाँव में खेती योग्य भूमि का अभाव है, पर दूसरी ओर से अवलोकन करने पर जनसंख्या का घनत्व वास्तव में अन्य क्षेत्रों की तुलना में यहाँ ज्यादा है। उस संवाददाता ने सिसिलिया के समक्ष पर्वतीय चटगाँव की भूमि की रूपरेखा का विशद् विवरण प्रस्तुत कर दिया। यह उन्होंने अपनी बात को प्रभावशाली सिद्ध करने हेतु किया था।

पर्वतीय चटगाँव की भूमि के अंतर्गत लगभग 3.7 प्रतिशत भूमि लगभग सभी कार्य हेतु उपयोगी है इस भूमि की सीमा लगभग 1,24,108 एकड़ होगी। तत्पश्चात् कृषि या बागबानी हेतु उपयोगी भूमि की सीमा लगभग 2.7 प्रतिशत है, अर्थात 1,10,080 एकड़ के लगभग। बागवानी तथा वन-विस्तार हेतु उपलब्ध भूमि का अनुमानतः 14.7 प्रतिशत, अर्थात 5 93,120 एकड़। सिर्फ बागवानी हेतु उपयोगी भूमि का क्षेत्रफल 74.9 प्रतिशत, अर्थात् 39,43,360 एकड़। वन- विस्तार हेतु उपयोगी भूमि तैयार करने के बाद बागवानी हेतु उपयोगी भूमि 51.740 एकड़ या 1.3 प्रतिशत तथा सेटलेमंट और पानी 2.14.400 एकड़ या 4.3 प्रतिशत।

उस संवाददाता ने सिसिलिया को पर्वतीय चटगाँव की भौगोलिक तथा प्राकृतिक अवस्था, राजनीतिक उद्देश्य इत्यादि की जानकारी देते हुए यह यह स्पष्ट किया कि इन उपर्युक्त कारणों से जन-गोष्ठियों की सटीक पहचान नहीं हो पाई है। यहाँ तक की सन् 1981, 1991 एवं 2001 की जनगणना के अंतर्गत उनकी पहचान होने के बाद भी इसमें जुम्य जनजातियों का एक उल्लेखनीय अंश सम्मिलित नहीं हो पाया या नहीं किया गया। इस प्रकार की घटना इस देश के प्रायः प्रत्येक आदिवासी के साथ घटित हुई।

बँगलादेश में कुल आदिवासी जनसंख्या-समूह 45 के लगभग होगी, पर किसी भी जनगणना के आँकड़ों में 45 जनसमूहों का उल्लेख नहीं है। उनमें जिन कुछ जातियों का उल्लेख है, उनकी ठीक-ठीक संख्या की गणना भी नहीं की गई है। यह कहना उचित होगा कि वास्तविक जनसंख्या से काफी कम का आँकड़ा प्रदर्शित किया गया है। इसके पीछे अवश्य ही कोई राजनीतिक उद्देश्य है, यह बात ध्यान में रखकर ही पर्वतीय चटगाँव की जनसंख्या का एक आँकड़ा उन्होंने सिसिलिया के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। सन् 1892 में पर्वतीय चटगाँव की जनसंख्या उसमें से 85 हिन्दू तथा 197 मुसलमान हैं, बौद्ध धर्मानुयायियों की संख्या 68,607 तथा दूसरे लगभग 9,718 लोग हैं।

सन् 1941 में इस अंचल की संपूर्ण जनसंख्या लगभग 2,47.053 हो गई थी। उसमें से हिंदू समुदाय के लोग, मुसलमान तथा पहाड़ी लोग अर्थात् बंगाली तथा पहाड़ी लोग अर्थात् बंगाली तथा पहाड़ी। परंतु सन् 1991 की जनगणना में पूरा परिदृश्य ही बदल गया था।
बंगाली तथा पहाड़ी जनसमुदाय के आँकड़े लगभग एक समान ही थे। इस वर्ष की जनगणना के हिसाब को देखा जाए तो पर्वतीय चटगाँव की संपूर्ण जनसंख्या लगभग 9,41,445 में पहाड़ी जनसमुदाय एवं बंगाली समुदाय, यानी बंगाली प्रतिशत एवं बंगाली जनसमुदाय 49 प्रतिशत।

सिसिलिया जानना चाहती थीं- ‘‘वर्तमान स्थित कैसी है ?’’
संवाददाता ने बताया- ‘‘पर्वतीय चटगाँव के समझौते के बाद उस क्षेत्र में सेटलर्स नियुक्त करना कुछ दिन के लिए स्थगित कर दिया गया था, परंतु आठवीं संसद निर्वाचित होने पर फिर से सेटलर्स की नियुक्ति का कार्य प्रारम्भ हो गया। उन लोगों को देश के विभिन्न क्षेत्रों से चटगाँव लाना सुविधाजनक हो, इस हेतु खागड़ाझड़ी को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों द्वारा बस सेवा से जोड़ा गया। उत्तरी बंगाल के सेटलर्स को लाने हेतु खागड़ाझड़ी बगुडा बी. आर. टी. सी. बस सेवा चालू की गई है।’’
सिसिलिया- ‘‘यह तो समझौते के अंतर्गत है।’’

संवाददाता- ‘‘हाँ, बेशक।’’
सिसिलिया-‘‘फिर उस क्षेत्र की पहाड़ी जनसंख्या कितनी है ?’’
संवाददाता-‘‘सुना है पहाड़ी जनसंख्या-दर 20 प्रतिशत तक नीचे उतारकर लाने की परिकल्पना लेकर ही 70 के दशक में तत्कालीन सैनिक सरकार ने सेटलर्स लेने का काम शुरू किया। वैसे पहाड़ी जनसंख्या कितने प्रतिशत तक है, इसका कोई भी सटीक आँकड़ा इस समय देना संभव नहीं है। फिर भी, वास्तविक रूप से देखा जाए तो जुम्म जनगणना की दर वर्तमान में 30 प्रतिशत तक आ पहुँची है।’’

सिसिलिया-‘‘पर कहाँ तक सच है ?’’
संवाददाता- ‘‘पूरी तरह क्योंकि जुम्म जनसंख्या को मार्जिनलाइज्ड करना ही उनका प्रधान उद्देश्य रहा है।’’
भविष्य में इस विषय पर और विचार-विमर्श की संभावना है- इस आशा के साथ साथ सिसिलिया ने तब उस संवाददाता से विदा ली। उन सज्जन के चले जाने पर उसके द्वारा रखे गए बिजनेस कार्ड को उसने उठाया। एक तरफ बँगला में और दूसरी तरफ अंग्रेजी में नाम, पदवी, पता, ठिकाना आदि अंकित था। अंग्रेजी लिखे हुए शब्दों की ओर देखकर सिसिलिया ने उस सज्जन का नाम पढ़ा- स्पेशल कंसल्टेंट।
उस कार्ड को कार्ड-होल्डर में रखकर सिसिलिया अपने अन्य कार्यों में व्यस्त हो गई।

दूसरा अध्याय

पर्वतीय चटगाँव के बारे में सिसिलिया ने थोड़ा-बहुत अध्ययन किया था। ढाका आने से पहले जितना अध्ययन उन्होंने किया था, उसकी तुलना में वहाँ उनका अध्ययन भली-भाँति हुआ। अपने देश में रहते हुए जब ढाका में उनकी नियुक्ति हुई, तब बँगला भाषा के कुछेक शब्दों को उन्होंने सीखा। यहाँ आकर भाषा सीखने हेतु उन्होंने पाँच हजार रूपये मासिक पर एक शिक्षक रखा। भाषा सीखने के प्रति उनका प्रबल आग्रह था- एक नवीन बोली, विशेष रूप से जिस देश में जाना है वहां की बोली, उसी देश के वासियों के साथ उसे काम करना है, अतः उस देश की बोली जाने बिना विभिन्न प्रकार की असंगति दिखाई दे सकती है। इसके पहले कुछ काम से उन्हें दिल्ली में ठहरना पड़ा था। वहाँ वह दो वर्ष तक ठहरीं, तब उन्होंने हिंदी भाषा सीख ली। दिल्ली से वापस वह अपने देश गईं। वहाँ उन्होंने एक साल कंसल्टेंसी की। तत्पश्चात् उन्होंने ढाका में नियुक्ति ली। पर्वतीय चटगाँव के विकास का दायित्व उनपर था।

जिस क्षेत्र के विकास का दायित्व लेकर सिसिलिया यहाँ आई हैं, उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की एक रूपरेखा उन्होंने उस देश में रहने के समय ही ले ली थी। परंतु ढाका आने के बाद इस विषय की विस्तृत जानकारी लेने की आवश्यकता उन्हें फिर अनुभव हुई, यह जानने को उत्सुकतावश ही वह अध्ययन करने हेतु सचेष्ट हुईं। पर्वतीय चटगाँव में जो विभिन्न भाषा-भाषी ग्यारह जाति समुदाय निवास कर रहे थे, उनमें चकमा लोगों की संख्या सर्वाधिक थी, परंतु किसी समय उन लोगों का निवास पर्वतीय चटगाँव के बाहर कॉक्स बाजार इलाके में था। कॉक्स बाजार में आरकान राजा मेंग राजश्री उर्फ सलीय शाहर (1553-1612) के हाथों पराजित होकर बांदरबान के लामा तथा आलीकदम इलाके में प्रवेश किया।

वे चटगाँव के विभिन्न इलाकों, जैसे-रांगूनिया, राऊझान, फरिकहाड़ी और पर्वतीय चटगाँव के विभिन्न स्थानों में जाकर बस गए। भारतवर्ष जब ब्रिटिश शासन के अधीन था तब चकमा लोगों की राजधानी पर्वतीय चटगाँव के रांगूनिया थानांतर्गत राजा नगर नामक स्थान पर थी। सन् 1784 में बर्मा के राजा बोधपोया द्वारा आकारन शासन-भार सँभालने पर आराकान का एक समूह बांदरबान, दूसरा सीताकुंड, फिर वहाँ से धीरे-धीरे रामगढ़, मनिकहाड़ी, रांगामाटी आदि क्षेत्रों में जा बसा। पर्वतीय चटगाँव में चकमा लोगों के अतिरिक्त दूसरे जाति-समूह बर्मा से आकर यहाँ बस गए, लेकिन त्रिपुरा संप्रदाय त्रिपुर राज्य से आया। पर्वतीय चटगाँव का संपूर्ण इलाका इन जाति समुदाओं के आने से पहले पूरी तरह वानाच्छादित था, साथ ही वहाँ निवास करने योग्य जगह नहीं थी।

मुगलों ने आर को पराजित कर चटगाँव पर कब्जा करने के उपरांत चकमा समुदाय से उन्होंने राजस्व-वसूली की माँग की। चकमा राजा द्वारा राज-कर न दिए जाने पर दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ने के कुछ दिनों बाद ही चकमा राजा शेर मुस्तखान मुगलों को कर देने पर सहमत हुए और इस प्रकार दोनों पक्षों में संधि हुई। चकमा लोगों ने मुगलों को कर के रूप में कपास देना शुरू किया। उन दिनों चकमा राज्य में कपास का उत्पादन ज्यादा होने की वजह से वह क्षेत्र ‘कपास महल’ नाम से भी जाना जाने लगा था। सन् 1762 में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में हैकी ने जब चटगाँव का शासन-भार सँभालकर चकमा समुदाय को कर देने हेतु बाध्य किया, तब करदाताओं के अस्वीकार करने पर दोनों पक्षों में युद्ध शुरू हो गया। चकमा लोगों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के युद्ध-अभियान का जवाब गुरिल्ला युद्ध से दिया। एक बार चकमा राजा जानबक्श खान ने स्वयं ही कलकत्ता में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ विचार-विमर्श का प्रस्ताव किया।

ईस्ट इंडिया कंपनी इसके लिए सहमत हुई। तत्पश्चात् काफी विचार-विमर्श के पश्चात् दोनों पक्षों के मध्य एक समझौता हुआ, जिससे पच्चीस वर्ष पुराने युद्ध की समाप्ति हो गई, परंतु इस युद्ध के कारण चटगाँव के विभिन्न इलाकों, जैसे- रांगूनिया रावजान, फटिकहाड़ी तथा दूसरे क्षेत्रों से चकमावासी पूरी तरह पलायन कर गए। सन् 1850 में अंग्रेजों ने चकमा राज्य पर कब्जा करने के बाद चटगाँव से अलग कर पृथक् पर्वतीय चटगाँव बनाया तथा इस क्षेत्र के शासन हेतु एक सुपरिंटेंडेंट की नियुक्ति की। पर्वतीय चटगाँव को विभाजित करते वक्त बांगूनिया, राऊझान, फटिकहाड़ी आदि को चटगाँव के अंतर्गत शामिल किया गया। यद्यपि उस समय चकमा राजा कार्यालय रांगूनिया के राजा नगर में था।

सन् में अंग्रेजों ने टैक्स-वसूली और प्रशासनिक सुविधा के अंतर्गत पर्वतीय चटगाँव को तीन सर्किलों- चकमा सर्कल, बोमांग सर्कल तथा मंग सर्कल में बाँटा। सन् में अंग्रेजों द्वारा लुसाई पहाड़ के अधिग्रहण के बाद पर्वतीय चटगाँव का महत्त्व कम हो गया। तब पर्वतीय चटगाँव जिले को उन्होंने एक महकमा बनाने हेतु प्रयत्न किया। साथ ही यहाँ की शासन-व्यवस्था का दायित्व एक सहकारी कमिश्नर के हाथों सौंपा गया। उसके पूर्व में पर्वतीय चटगाँव का जिला शहरी कार्यालय चंद्रघोना से रांगामाटी ले जाया गया। सन् 1892 में ब्रिटिश लोगों ने पर्वतीय चटगाँव हेतु रूल्स फॉर दि एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चिटागांग, हिल्स, ट्रैल्स जारी किया। इस विधि के अंतर्गत पर्वतीय चटगाँव को चार भागों- आरक्षित वनांचल, बोभांग सर्कल, चकमा सर्कल तथा मांग सर्कल में विभक्त किया गया।

प्रशासनिक कार्य में सुविधा हेतु पर्वतीय चटगाँव को उन्होंने तैतींस ब्लॉकों में बाँटा। उसका नाम ‘तालुक’ रखा गया। तालुक समूहों को तत्पश्चात् मौजार में बाँटा गया। हरेक मौजार का आयतन दो वर्ग मील से कम था। यह निश्चित किया गया कि इसका आयतन दस वर्ग मील से ज्यादा न रखा जाए। सन् 1900 में गवर्नर जनरल के अनुमोदन पर पर्वतीय चटगाँव की शासन- विधि जारी की गई, जिसका नाम ‘पर्वतीय चटगाँव मैन्युअल’ रखा गया।

इतना कुछ जान लेने के बाद सिसिलिया ठहर गईं। उन्हें चाय पीने का मन हुआ। पास ही के कमरे में दोनों युवतियाँ सो रही थीं। वे दोनों दिन भर परिश्रम किया करती हैं, अतः रात को उन्हें विश्राम की आवश्यकता है- यह सोचकर वह खुद ही रसोईघर में गई और चाय की प्याली लेकर पढ़ने की मेज पर आ बैठी। पर्वतीय चटगाँव के मैन्युअल का अध्ययन उसने पहले भी किया था, पर एक बार और अध्ययन कर लिया जाए।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book