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राधाचरण गोस्वामी रचना संचयन

रामनिरंजन परिमलेंदु

प्रकाशक : साहित्य एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :416
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15946
आईएसबीएन :9788194030065

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राधाचरण गोस्वामी (25 फ़रवरी 1859 ई. – 12 दिसंबर 1925 ई.) राष्ट्र-चिंतक, भारतभक्‍त और लोकजागरण के महानायक थे। वे ब्रज की ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य की विभूति थे। देशोपकार अर्थात्‌ भारतोद्धार उनके संपूर्ण गद्य लेखन का मूलमंत्र था। उन्होंने जनजागरण और नवजागरण के बीजों का छिड़काव किया जो कालांतर में पल्लवित-पुष्पित हुए। गोस्वामी जी का लेखन-काल 1876-1925 तक था। वे हिंदी के प्रथम समस्यामूलक उपन्यासकार, ऐतिहासिक नाटकों के रचयिता; एकांकीकार, राष्ट्रचेता पत्रकार, निबंधकार और सुकवि के अतिरिक्त प्रखर क्रांतिकारी समाज-सुधारक भी थे और उन्होंने राष्ट्रीयता के नवनिर्माण में अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया। उन्होंने हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि के लिए आम जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त किया था। उन्‍नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हिंदी के किसी अन्य बहुविज्ञापित साहित्यकार से यह संभव नहीं हो सका था। देशोन्नति, समाज-संशोधन और स्त्री स्वातंत्र्य में उनकी अखंड निष्ठा थी। किसी लाभ और लोभ के कारण अपने हृदय की स्वतंत्रता और अपने मंतव्य का परित्याग करना उनकी प्रकृति के विरुद्ध था। भारत के राजनीतिक क्षितिज पर महात्मा गाँधी के अभ्युदय के बहुत पूर्व स्वदेशी स्वीकार और विदेशी बहिष्कार की प्रखर राष्ट्रीयता के फलस्वरूप उनके प्रयत्नों से विदेशी चीनी की बोरियाँ वृंदावन की यमुना में विसर्जित कर दी गई थीं। अपने हिस्से की शारदीया धूप का भरपूर सदुपयोग उन्होंने मनुष्यत्व के नवनिर्माण, हिंदी भाषा और साहित्य, समाज और राष्ट्र के समग्र कल्याण के लिए ही किया।

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