लोगों की राय

कविता संग्रह >> अंबुधि में पसरा है आकाश

अंबुधि में पसरा है आकाश

जोशना बैनर्जी आडवानी

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :312
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15974
आईएसबीएन :9789355180643

Like this Hindi book 0

‘‘हिन्दी में कुछ बांग्ला भाषियों ने कविता लिखी हैं पर उनमें से अधिकांश की कविता में बांग्ला अन्तर्ध्वनित नहीं होती। जोशना बैनर्जी आडवानी की हिन्दी कविता में बांग्ला संवेदना और भाषा रसी बसी है और यह उसे दुर्लभ आभा से उदीप्त करती है। उसमें कभी ‘‘एकान्त में दुबकी हुई कान्तिमय जगह’’ है जिसमें ‘‘पृथ्वी के बीचों-बीच एक खिड़की पाटी’’ जाती है और ‘‘अस्ताचल के समय पूरे संसार को व्यस्त छोड़’’ प्रेमी मिलने आते हैं। ‘‘मैं एक सिलाईखुले कपड़े का उधड़ा हुआ हिस्सा हूँ’’, ‘‘ढाई अक्षर की ध्वनि सुनने के लिए ढाई सौ कोस की भी यात्रा कम पड़ी मुझे’’, ‘‘इस जगह पर असंख्य उदयन और प्रियदर्शिकाओं की आत्माओं का वास है’’, ‘‘मैं घटित और अघटित के मध्य एक संवेदना का काम कर रही हूँ/तोड़ रही हूँ दिन का पत्थर/ठोंक रही हूँ रात का लोहा चबा रही हूँ समय का चना’’ आदि पंक्तियाँ स्पष्ट करती हैं कि एक नयी काव्यभाषा की तलाश हो रही है और वह सघनता के साथ आकार ले रही है। घर-पड़ोस, प्रकृति-संसार और जब तब ब्रह्माण्ड से भी बिम्ब लिए गये हैं। कविता सौन्दर्य, ललक और उदासी, सम्बन्धों के खुलाव तनाव आदि को समेटती हैं और उनका मर्मस्पर्श कराती हैं।’’

– अशोक वाजपेयी

‘‘जोशना बैनर्जी अद्भुत कवि हैं, जिनकी विलक्षण कविताएँ मुझे इनकी विरल कल्पना शक्ति और शब्द संयोजन से चकित करती रही हैं। प्राचीन सन्दर्भो को ये आधुनिक मानस में गूँथ कर समकालीन कविता को पुनःपरिभाषित करती हैं। विशेष यह भी कि स्त्री प्रश्नों से जूझते हुए भी जोशना पुरुष के प्रति कटखनी नहीं होतीं अपितु उसे उसके उचित स्थान पर बैठा अपनी अभिव्यक्ति में आगे बढ़ जाती हैं।’’

– ममता कालिया

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book