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कविता संग्रह >> हम कविता जीते हैं

हम कविता जीते हैं

अशोक कुमार बाजपेयी

प्रकाशक : वी पी पब्लिशर एण्ड डिस्ट्रीव्यूटर प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :117
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16014
आईएसबीएन :9789384120160

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बाल कवितायें

आत्मकथ्य


'हम कविता जीते हैं...' आपके हाथ में है। इस संग्रह के बारे में ज्यादा कुछ क्या कहूँ । सच तो यह है कि मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि इतनी जल्दी मैं दूसरे संग्रह के साथ आपके बीच उपस्थित हो पाऊंगा। यह कटुसत्य है कि व्यक्ति के हाथ में कुछ नहीं होता। सब कुछ परिस्थितिजन्य है। दुर्घटना के कारण बिस्तर पकड़ने और फिर स्वस्थ होने में एक लंबा समय लग गया। सारी साहित्यिक गतिविधियां भी अचानक थम-सी गई। जीवन को अपनी रफ्तार में आने में लंबा समय लग गया। इस बीच 'हम कविता जीते हैं...' की पांडुलिपि पर कार्य करता रहा। धीरे-धीरे 63 कविताओं का यह गुलदस्ता आपके सामने प्रस्तुत करने में सफल हो पाया।

मैं अपने पूर्व के कविता-संग्रह 'पिंजड़े से पिंजड़े तक' में पहले ही कह चुका हूं कि कविता की इस यात्रा का आरंभ बहुत छोटी उम्र में ही शुरू हो गया था। अलीगढ़ में मेरे मामा श्री जय गोपाल त्रिपाठी के घर का वातावरण पूर्णरूप से साहित्यिक था जिससे मैं भी अछूता न रह सका। कविताएं गढ़ता, लोगों को सुनाता। तब शायद मैंने कल्पना भी नहीं किया था कि साहित्य की इस यात्रा का कोई ऐसा पड़ाव भी होगा जहां साहित्य के सुधी पाठकों से भेंट होगी।

नौकरी के साथ-साथ लगातार दो दशक से अधिक समय तक ट्रेड यूनियन में भी महामंत्री के पद पर रहकर अत्यधिक सक्रिय रहा। इस आपा-धापी में भी तनाव से मुक्ति का मार्ग यही साहित्य ही था।

मुझे 'हंस' के संपादक स्वर्गीय राजेन्द यादव का कथन याद आ रहा है- "ईमानदारी लेखन की अहम जरूरत है। ईमानदारी से जुड़ा हुआ दूसरा तत्त्व है साहस। लिखना उस रूप में अपनी ही शल्य-क्रिया है...' सच यही है। हर रचनाकार सारा जीवन अपनी ही संवेदनाओं, अनुभूतियों को शब्द देता रहता है। बस सवाल एक ही है- उसके प्रति ईमानदारी और निष्ठा की... मैंने उसे निभाने का हर हाल में प्रयास किया है।

 इसके पहले कि मैं अपनी बात समाप्त करूं उन्हें जरूर याद करना चाहूंगा जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मेरे रचनाकर्म को ऊर्जावान करते रहे। मैं सर्वश्री भूधर मिश्रा, राजेन्द्र तिवारी, अरुण शुक्ला, बी. एस. शुक्ला, दिलीप बाजपेयी, शैलेन्द्र पाण्डेय, अरविन्द शुक्ला, हर्षित बाजपेयी, आदित्य बाजपेयी, गौरव बाजपेयी, शैलेन्द्र गुप्ता, डॉ. लीना सिंह, डॉ. प्रिया जोजेफ, सुधा शुक्ला, गीता मिश्रा, बिन्दु दीक्षित, रीता शुक्ला, ममता तिवारी, सुधा बाजपेयी, गरिमा शुक्ला एवं डॉ. प्रीति बाजपेयी का विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित करने हेतु प्रोत्साहित किया।
 अंत में पूज्य बाबूजी (पिता) श्री प्रेमशंकर बाजपेयी एवं पूज्य | दिदिया (मा) श्रीमती विद्या बाजपेयी, के अजस आशीर्वाद की कामना के साथ और सभी साहित्यिक मित्रों की सद्भावना की कामना के साथ....

- अशोक कुमार बाजपेयी


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    अनुक्रम

  1. दो शब्द

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