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पिंजरे से पिंजरे तक

अशोक कुमार बाजपेयी

प्रकाशक : वी पी पब्लिशर एण्ड डिस्ट्रीव्यूटर प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :119
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16017
आईएसबीएन :9788190819060

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कवितायें

आत्म-कथ्य

आज आपके समक्ष अपने कविता संग्रह 'पिंजड़े से पिंजड़े तक' के साथ उपस्थित हूँ। यह मेरा पहला कविता संग्रह ही नहीं, बल्कि मेरी लंबी साहित्यिक यात्रा का पहला पड़ाव भी है। जीवन में तमाम उतार चढ़ाव आए। नौकरी और ट्रेड यूनियन के कार्यों का दबाव भी रहा। इसके बावजूद साहित्य का दामन कभी नहीं छोड़ पाया।

सन् 1969-70 की बात है। मैं अलीगढ़ आ गया था। वहाँ श्री जय गोपाल त्रिपाठी (मेरे मामा जी) जो अलीगढ़ में प्रोफेसर थे संरक्षण में रहा। वहाँ के साहित्यिक वातावरण ने जुड़ा। मेरे बालमन पर कुछ ऐसा प्रभाव डाला कि मेरे मन में भी कविता लिखने की इच्छा बलवती होती गई। मैंने लिखना शुरू कर दिया। मुझे तब नहीं मालूम था कि मैं क्या लिख रहा हूँ? लेकिन वहाँ होने वाली साहित्यिक गोष्ठियों में काफी सराहा जाता था। कवि सम्मेलनों में भी श्रोताओं से भरपूर प्रोत्साहन मिलता था। मैं तब इतना छोटा था कि मेरे कविता पाठ पर लोगों को ताज्जुब होता था कि कोई बच्चा ऐसी कविताएँ कैसे लिख सकता है। आज भी उन दिनों के बारे में सोचता हूँ तो मन के अंदर एक अजीब आनंद का अनुभव होता है।

कानपुर में नौकरी में आने के बाद समय का अभाव रहने लगा। ऐसे में प्रायः कवि सम्मेलनों का आमंत्रण स्वीकार करने में कठिनाई होती थी। इसके बावजूद जहाँ तक हो सका निर्वाह करने का प्रयास किया। 1978 में मैं पहली बार टी.वी. पर आया। लखनऊ दूरदर्शन पर 'सरस्वती' कार्यक्रम में मेरे द्वारा काव्य-पाठ का भरपूर स्वागत हुआ था। यही नहीं हिन्दी की तमाम स्तरीय पत्रिकाओं ने भी मेरी कविताओं को स्थान दिया। इनमें से अधिकांश कविताएं 'अशोक बाजपेयी' के नाम से सम्मानपूर्वक प्रकाशित हुईं।

मैं गाँव से जुड़ा हुआ आदमी हूँ। एक ऐसा गाँव जिसे धीरे-धीरे शहर ने निगल लिया। परिणाम यह हुआ कि आज वहाँ न गाँव की गंध है और न ही शहर का विकास। बाजार के दबाव में न जाने ऐसे कितने गांव शहर की भेंट चढ़ गए। मेरी कुछ कविताओं में इस बात की पीड़ा झलकती है।

लगातार कविताएं लिखने और प्रकाशित होने के कारण मेरे शुभचिंतकों एवं पारिवारिक सदस्यों में सर्वश्री शरत शर्मा, रमेश दीक्षित, रवि मिश्रा, बी.एम. शुक्ला, दिलीप बाजपेयी, शैलेन्द्र गुप्ता, गौरव बाजपेयी एवं श्रीमती मन्जू मिश्रा, श्रीमती आरती पाण्डे, श्रीमती सुधा बाजपेयी एवं श्रीमती गरिमा शुक्ला पुस्तक प्रकाशन हेतु मुझे प्रोत्साहित करते रहे।

मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे अपने जमाने के बहुत प्रसिद्ध और माननीय विद्वानों का सान्निध्य और मार्गदर्शन मिला जिनमें से प्रमुख रूप से स्वर्गीय उमाकांत मालवीय, स्वर्गीय डॉ. रवीन्द्र भ्रमर, स्वर्गीय देवराज दिनेश और स्वर्गीय डॉ. त्रिवेणी प्रकाश त्रिपाठी उल्लेखनीय हैं।
'पिंजड़े से पिंजड़े तक' आपके हाथ में है और यह फैसला तो अब आपको करना है कि मेरा प्रयास कहाँ तक सफल रहा है। अभी बस इतना ही...

- अशोक कुमार बाजपेयी

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