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कविता संग्रह >> हरापन बाकी है

हरापन बाकी है

देवेन्द्र सफल

प्रकाशक : दीक्षा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16019
आईएसबीएन :000000000

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श्री सफल चाहे 'आपबीती' कहें या 'जगबीती' लिखें, लोक-संपृक्ति उनकी विशिष्ट पहचान बनी रहती है

अपनी बात

सभी मानते हैं कि काव्य की सर्वोत्तम उपलब्धि गीत है। मेरे काव्य-गुरु स्मृति-शेष प्रो. रामस्वरूप सिन्दूर के कथनानुसार 'गीत का कवि कालातीत, अनन्तता का कवि होता है। समयातीत होकर भी, गीत समय-शन्य नहीं होता। वह समय में रहकर, समय का अतिक्रमण करता है।' सर्वमान्य आलोचक डॉ. नन्द दुलारे बाजपेयी ने भी स्वीकार किया है कि 'युगीन जीवन में जितनी ही बौद्धिकता और भौतिकता बढ़ेगी, हृदय की पुकार की, गीतों के प्रणयन की, उतनी ही अधिक आवश्यकता होगी।

शहरीकरण, गाँव से पलायन, संस्कारों का क्षरण, पारिवारिक विखण्डन, आर्थिक समृद्धि की चकाचौंध ने हमारे दैनन्दिन जीवन को बहुत प्रभावित किया है। नीति-नियामकों की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियाँ, भ्रष्टाचार, जाति-वर्ग, भाषा, क्षेत्रीय संकीर्णता ने भारतीय जनमानस को झकझोर दिया है।

भूमण्डलीकरण, उपभोक्तावादी अपसंस्कृति, उदारीकृत विश्व बाजार की परिकल्पना और इलेक्ट्रानिक मीडिया, सूचना तकनीकी के विस्तार के साथ ही औद्योगिकीकरण व पूँजीवादी व्यवस्था के दबाव ने सबसे ज्यादा मानवीय संवेदनाओं को छति पहुँचाई है। आज का गीत भी वर्तमान परिवेश से गहराई से प्रभावित हो रहा है।

पाँचवें दशक से अब तक गीत की संरचना में भाषा, कथ्य, बिम्ब-प्रतीकों में अन्यतम युगीन परिवर्तन होता चला आ रहा है। आज का गीत अपनी मुखर भाव-भंगिमा और नवीन कथ्य-शिल्प के द्वारा जीवनानुभूतियों को बहुत ही मार्मिकता एवं प्रखरता से व्यक्त करने में सक्षम हुआ है। भाषायत रूढ़ियों से भी अवमुक्त होकर आज का गीत अनेक भाषाओं के दैनन्दिन जीवन में प्रयोग होने वाले शब्दों का प्रचुर मात्रा में समावेश कर रहा है, जिससे गीत-नवगीत के भाव-विस्तार को विस्तृत फलक प्राप्त हुआ है।

मेरे पूर्व प्रकाशित चार गीत-नवगीत-संग्रह प्रथम 'पखेरू गंध के' (1098) द्वितीय 'नवान्तर' (2007) तृतीय 'लेख लिखे माटी ने' (2010) चतर्थ (सहमी हुई सदी' (2012) जिन्हें सुधी पाठकों, गीत-मर्मज्ञ साहित्यकारों ने अपने स्नेह से अभिसिंचित-उपकृत किया है। अब मेरा पाँचवा नवगीत संग्रह "हरापन बाकी है" आपके सम्मुख प्रस्तुत है जिसमें जीवन की विभिन्न मनोदशाओं, स्थितियों और छवियों का अंकन हुआ है। मुझे विश्वास है कि पर्व की भाँति इस नवगीत कृति को भी आपका स्नेह प्राप्त होगा।

अग्रज नवगीत-कवि श्री अवध बिहारी लाल श्रीवास्तव जी जिन्होंने अपनी अन्यतम व्यस्तताओं के अनन्तर समय निकाल कर अपना अभिमत समय से प्रेषित किया। मैं उनकी इस कृपा के लिए हृदय से कृतज्ञ हूँ। वरिष्ठ नवगीत-कवि श्री नचिकेता जो कि अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त थे। फिर भी उन्होंने मेरे पास अपना अभिमत समय से भेजकर कृतार्थ किया। मैं उनका भी आभार व्यक्त करता हूँ। संकल्प रथ पत्रिका के सम्पादक वरिष्ठ गीतकार श्रद्धेय श्री रामअधीर जी ने कवि और गीतों पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी भेजकर उपकृत किया, मैं उनका भी आभारी हूँ।

यदि इस गीत-नवगीत संग्रह 'हरापन बाकी है' की कुछ पंक्तियाँ भी सुधी पाठकों-मनीषियों के अभ्यन्तर को छूने में सफल हुईं तो मैं अपने को धन्य समझूगा।

-- देवेन्द्र सफल

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
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