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कविता संग्रह >> चावल नये नये

चावल नये नये

सुषमा सिंह

प्रकाशक : हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16030
आईएसबीएन :000000000

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भावपरक कवितायें

अपनी बात


कविवर पंत का कहना है -

"वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान,
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजाना"


इससे पूर्व अंग्रेजी के रूमानी (Romantic) कवि कीट्स ने भी यही भाव व्यक्त किये थे "Our sweetest songs are those that tell of saddest thoughts." अर्थात् हमारे वही गीत सबसे मधुर होते हैं जिनमें चरम पीड़ा की अभिव्यक्ति होती है। उक्त उद्धरण इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं कि सूजन के क्षेत्र में पीड़ा बहुत बड़ी उत्प्रेरक शक्ति (driving force) का काम करती है।

विश्वविख्यात कवियों और विद्वानों के विचारों का मैं खंडन तो नहीं कर सकती किन्तु मेरे अनुभव कुछ भिन्न हैं। पिछले दिनों एक के बाद एक दैवी आपातों ने मेरी साहित्यिक गतिविधियों पर एक प्रकार से रोक सी लगा दी। इस संग्रह को इतने विलम्ब से पाठकों तक पहुँचाने का यही प्रमुख कारण है। चावल नये-नये जिन दो प्रियजनों को समर्पित है उनके जाने से मेरे जीवन और चिन्तन दोनों में एक ऐसी रिक्तता आ गयी है जिसे समय भी नहीं भर पा रहा है।

'चावल नये-नये' में मेरे गीत और ग़ज़ल दोनों संकलित हैं। सहज और स्वाभाविक भावाभिव्यक्ति तथा सरल एवं बोधगम्य भाषा ही इनकी विशेषता है। मैने कभी भी सायास कुछ लिखने का प्रयास नहीं किया। जब किसी घटना, दृश्य अथवा भावना ने आन्दोलित किया तो उसे गीत या गजल का रूप दे दिया। इसलिये आशा है कि पाठकों को मेरी रचनाएं  उनके अपने अनुभवों की याद दिलायेंगी।

मेरे लेखन को बढ़ावा देने में जिन विद्वान शुभचिन्तकों का आर्शीवाट और प्रोत्साहन मुझे मिला है उनके प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती है इस प्रसंग में मैं अपने अग्रजों स्व० (डा०) जगदीश गुप्त, श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, श्री प्रेमशंकर गुप्त, स्व० (श्री) नागेश्वर सिंह तथा श्री अनिरूद्ध सिंह के प्रति विशेष रूप से आभारी और श्रद्धावनत हूँ। मेरी हर रचना के प्रस्तुतीकरण पर मेरी पीठ थपथपाने वाले डा. जगदीश गुप्त की पुण्य स्मृति को बार-बार नमन करते हुए मैं यह संकलन आप सबके हाथों में दे रही हूँ। भाई हरिमोहन मालवीय तथा हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद के सचिव श्री अनिल कुमार सिंह के प्रति मैं विशेष आदर भाव व्यक्त करती हूँ जिनके सौहार्द के कारण ही यह संग्रह मैं आप लोगों तक पहुँचा पा रही हैं।

हिन्दी दिवस,  १४ सितम्बर २००२

- सुषमा सिंह



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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. काव्य-क्रम

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