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हास्य-व्यंग्य >> दि पण्डित जी

दि पण्डित जी

राजेन्द्र पण्डित

प्रकाशक : रवि पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16041
आईएसबीएन :81-7789-521-4

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हास्य-व्यंग्य कथाएँ

इसी पुस्तक से...


एक दिन भाग के नशे में पण्डित जी और रावत साहब के शराबी लड़के से हैण्ड पम्प के पानी को लेकर विवाद हो गया, भांग की ठुनकी और शराब का ओज आमने-सामने था, देखते ही देखते मौखिक युद्ध भौतिक युद्ध में परिवर्तित हो गया, पण्डित जी की आयु अधिक थी और रावत के लड़के का नशा, अंतत: नशे ने आयु को पराजित कर दिया, मोहल्ले के लोगों ने जब किसी तरह युद्ध समाप्त कराया, तब तक पण्डित जी अपने एक पैर से हाथ धो चुके थे।

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थोड़ी देर तकरीर बर्दाश्त करने के बाद नूर मोहम्मद को एहसास हुआ कि मौलाना की धार्मिक तकरीर में तकरीर कम, तकरार ज्यादा है। इस पर इस्लाम नहीं सवार है बल्कि यह स्वयं इस्लाम पर सवार है। अगर इसकी सब बातें यथावत मान ली जाएं तो जन्नत हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं है। उन्हें लगे हाथों इस बात का भी एहसास हुआ कि अगर वह इनके हाँथ लग गया तो ये कमर में बम बंधवाकर किसी भी दिन बहत्तर हूरों से रूबरू करा देगा। मौलाना साहब की बातों से उन्हें यह ज्ञान भी हासिल हुआ कि कोई किसी को बिना कारण के नहीं मारता बल्कि मारने के लिए भी तमाम प्रयास करने पड़ते हैं। मौलाना की तकरीर का यदि अर्क निकाला जाए तो यह बात सामने आ रही थी कि मर जाना व्यक्ति की बुनियादी जरूरत है।

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शिव मंगल सिंह चौहान के हाथ में पुत्रों की तो कई रेखाएं थीं, लेकिन पत्नी की रेखा नहीं थी। उन्होंने पाँच बार विवाह की कोशिश की जिसमें चार बार सफल भी हुए, किन्तु बुढ़ापे तक वो पत्नी विहीन ही हो गए। उन्हें लगने लगा कि पति-पत्नी के सात जन्मों तक साथ निभाने वाली बात कोरी अफवाह है। उनकी कोई पत्नी सात साल तक नहीं चल पायी। तीन पत्नियां प्रभु को प्यारी हो गयीं और एक प्रभु दयाल रस्तोगी को।

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. कहाँ क्या है ?

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