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विश्व के महान वैज्ञानिक उपन्यास

शक्ति त्रिवेदी

प्रकाशक : ज्ञान गंगा प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1607
आईएसबीएन :81-85829-16-0

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विश्व के महान वैज्ञानिकों उपन्यास...

Vishva ke mahan vaigyanik upanyas

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो शब्द

आज विज्ञान का युग है। विज्ञान तो पहले भी था, पर आज मानव ने उसे निश्चित क्रियात्मक रूप दे दिया है। हम दैनिक कार्यकलापों में जन्म से मरण तक विज्ञान के अनेक पक्षों से गुजरते हैं। आज हमारे भाँति-भाँति के कौतूहलों को तृप्त करने में सक्षम हो रहा है। इसी के बल पर हम चंद्रमा पर उतरे और मंगल व शुक्र ग्रह की खोज भी कर सके। इसके अदभुद प्रयोगों से प्राप्त सफलताओं ने हमें नित नये संकल्प दिये। विज्ञान की इन्हीं चमत्कारिक गतिविधियों ने हमारे कवि, लेखक और उपन्याकारों को कल्पना की नई-नई संचेतनाएं दीं और उन्होंने अद्भुद रचनाओं का सजृन किया।

विश्व के महान् वैज्ञानिक उपन्यासों के हिन्दी रूपान्तरण इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं। सात विश्व-विख्यात उपन्यासकारों की वैज्ञानिक कथाओं पर आधारित कुरीतियाँ–जो रहस्य, रोमांच, विज्ञान, भूगोल, भौतिक, रसायनशास्त्र और अन्य अनेक विधाओं से जुड़ी है- इस संकलन में चुनी गई हैं। इस छोटे-से कलेवर में सागर में गागर भरने का प्रयत्न किया गया है।
19वीं शताब्दी में यूरोप और अमेरिका के अनेक प्रतिभासम्पन्न वैज्ञानिकों, विद्वानों, लेखकों तथा गम्भीर विचारकों ने जीव-विज्ञान, नौसेना-विज्ञान, शास्त्र-विज्ञान, रसायन-विज्ञान और आन्तरिक-विज्ञान से सम्बन्धित खोजों की विकट समस्याओं पर आधारित अनेक रोचक, रोमांचक व कौतूहलपूर्ण उपन्यास लिखे। प्रकाशित होते ही उपन्यास प्रसिद्धि की चोटी पर पहुँच गये। आज पाठकों के बीच उनकी छवि और महत्ता ज्यों-की-त्यों बनी है। फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक जुले वर्न अपने समय के विख्यात अन्वेषी और वैज्ञानिक सूझ-बूझ कथाकार थे। उनका उपन्यास ‘फ्राम अर्थ टू द मून’ की जितनी प्रतियाँ छपती, हाथों-हाथ बिक जातीं। मानव जब चन्द्रमा पर पहुँचा तो जिन सिद्धांतों और परिभाषओं का इस उपन्यास में प्रतिपादन हुआ था, और जो कल्पनाएं की गई थीं ज्यों-की-त्यों सच हुई। जुले वर्न के ‘चांद का चक्कर’, ‘पुच्छल तारे पर दो वर्ष’, ‘पृथ्वी के गर्भ में’ तथा ‘रहस्यमयी द्वीप के सार’ को प्रस्तुत संस्करण में जोड़ दिया गया है।

जीव-विज्ञान विषय के ख्याति-प्राप्त अंग्रेजी उपन्यासकार एच०जी० वेल्स का नाम वैज्ञानिक कथा- साहित्य में अमर है। आज हर भाषा का कथा-पाठक उन्हें जानता है। उनके उपन्यास ‘द वार ऑफ द वर्ल्ड्स’, ‘फुड ऑफ गॉर्ड्स’ तथा ‘इनविजिवल मेन’ लाखों की संख्या में बिके। विश्व की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में इसका रूपान्तरण हुआ। वेल्स की ये कृतियाँ 19वीं शताब्दी के श्रेष्ठतम उपन्यासों में से हैं जिन्हें पाठक एक बार शुरू करके खत्म किए बिना नहीं रह सकता।
अंग्रेजी के विख्यात कवि शैली की पत्नी मेरी डब्ल्यू. शैली ने भी रसायन-शास्त्र पर एक काल्पनिक उपन्यास लिखकर विज्ञान-साहित्य में खलबली मचा दी थी। फ्रेंक्रन्स्टीन (पिशाच का प्रतिशोध) पिशाच की काम-वासना पर आधारित एक भयावह मगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखा गया रोचक उपन्यास है।

गार्डनर एफ० फाक्स अमेरिका के प्रसिद्ध उपन्याकार हुए है। उनके उपन्यास ‘द क्वीन ऑफ शेवा’ ने विश्वभर में धूम मचा दी थी। इसी उपन्यास में ईसा के कई शताब्दी पूर्व का इतिहास हैं, जिसमें वैज्ञानिक- धनुष के बल पर इजरायल के सम्राट सुलेमान ने शेवा की रानी से मिलकर विश्व-विजय का सपना सँजोया था। शस्त्र-विज्ञान पर आधारित यह उपन्यास इतिहास, भूगोल और रोमांच से भरपूर है। कहानी धनुष की खोज से आरम्भ होकर धनुष से लड़ गए युद्ध के साथ समाप्त होती है। इसी दृष्टि से वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित इस महान् रोमांचक और भौगोलिक उपन्यास को ‘वैज्ञानिक धनुष’ के नाम से संकलित किया गया है।

यदि हम विश्व के पाँच श्रेष्ठ उपन्यासकारों का नाम सोचें तो उनमें 19वीं शताब्दीं के महान् फ्रांसीसी उपन्यासकार विक्टर ह्यू गो का नाम सहसा मस्तिष्क में आ जाता है। विक्टर ह्यू गो उस शताब्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उन्हें अपने मौलिक व क्रान्तिकारी विचारों के कारण गुर्नसी टापू में वर्षों का निर्वासन भोगना पड़ा था। उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘टायलर्स ऑफ द सी’ में एक गरीब मछुआरे को भयंकर समुद्र में खड़ी दो नृशंस चट्टानों से संघर्ष करने में सफल दिखाया गया है। लगभग आधा उपन्यास तो नैका अभियन्त्रण विज्ञान से ही भरा हुआ है। इसी दृष्टि से इस कृति को संग्रह में लिया गया है। वैज्ञानिक संघर्ष की कहानी अन्त में दुखान्त होकर समाप्त होती है और पाठकों के हृदय पर गिलियात के अलौकिक त्याग और प्रेम की अमिट लकीर खींच देती है।

ब्रिटेन के लेखक सर आर्थर कानन डौयल पेशे से स्वयं डाक्टर थे और उपन्यास के भी शौकीन थे। उनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘डौडस ऑफ द वास्कर विल’ का हिन्दी रूपान्तरण ‘घाटी रहस्य’ नाम से संकलित है।
नेपोलियन बोनापार्ट के जमाने से प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक एलेक्जैंडर डूयूमा के प्रसिद्ध उपन्यास ‘काउन्ट आफ मांटे क्रिस्टो’ हमने यहाँ ‘प्रतिशोध नाम देकर जोड़ा है। अत्यंन्त आस्तिक प्रवृत्ति पर आधारित यह उपन्यास रसायन व चिकित्सा-विज्ञान के दृष्टिकोण से लिखा गया है।
इस प्रकार प्रस्तुत संकलन में हम विभिन्न माटी से जुड़े शीर्षस्थ लेखकों के विख्यात उपन्यासों को प्रस्तुत कर रहे हैं। विश्वास है कि हिन्दी कथा-साहित्य के सुधी पाठकों को ये कृतियाँ आत्माविभोर करेंगी।

शक्ति कुमार त्रिवेदी

विक्टर ह्यू गो


प्रतिभा के धनी विक्टर ह्यू गो ने 16 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय कविता लिखकर ख्याति के अंकुर संजो लिए। 25 वर्ष के होते-होते ह्यू गो युवा लेखक के रूप में फ्रांस भर में विख्यात हो गए। उनकी ख्याति उनकी आयु के साथ बढती ही गई और 1885 में जब उनकी मृत्यु हुई तो वे 83 वर्ष के थे; मगर उनकी अर्थी के पीछे इतना जनसमूह था कि फ्रांस में उस शताब्दी में किसी की अर्थी के पीछे इतनी भीड़ न थी। यह था उनकी शताब्दियों तक चलनेवाली ख्याति का एक प्रमाण।
विश्व के महान लेखकों में श्री ह्यू गो आज भी जीवित हैं। अटपटी घटनाओं और भावनाओं के 19वीं सदी के लेखकों में उनका तीसरा स्थान है। बाल्टर स्काट लार्ड बायरन की भाँति वे प्रसिद्ध रोमानी लेखक माने जाते हैं। कहानीकार, कवि, नाटककार और उपन्यासकार-वे क्या कुछ नहीं थे !

इस प्रतिभा का जन्म 1802 में फ्रांस में हुआ। 20 वर्ष की आयु में बचपन की प्रेमिका फॉसर से विवाह किया और 1827 में ‘कामवेल’, नाटक पर भारी ख्याति अर्जित की। 1831 में हंचबैक आफर नात्रे दम’ लिखकर उन्होंने विश्व के महान लेखकों में अपना स्थान बना लिया।

नेपोलियन तृतीय के तानाशाही व्यवहार के प्रति उग्रता प्रकट करने पर उन्होंने फ्रांस छोड़कर गुर्नसी टापू में 19 वर्ष बिताए और वहीं अपने जीवन की श्रेष्ठ और प्रिय रचनाएँ रचीं। गरीब और शोषितों के समाज के अन्याय के प्रति खाका खींचनेवाला उपन्यास ‘लास मिजरेबुलस’ मानव के निर्दय व्यवहार की कहानी-‘द मैन हू लाफ्स’, तथा समुद्री संघर्ष की वैज्ञानिक कहानी ‘टायलर्स आफ द सी’ उन्होंने इसी निर्वासन में लिखीं। 1870 में नेपोलियन के पतन के साथ ही इनके लाखों अनुयायियों ने इन्हें फ्रांस वापस बुला लिया। इस पुस्तक में इनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘टायलर्स आफ द सी’ का रूपांतरित ‘सार-संक्षेप ‘सागर-मन्थन’ संकलित है।

सागर-मंथन


19 वीं सदी में यौवन के उफान के संसार के सबसे बड़े लेखकों में से विक्टर ह्यू गो एक हैं। जिन्होंने अपने निर्वासन काल में ब्रिटिश गुर्नसी टापू में रहकर मानव की भावनाओं को छूने वाले तीन महान उपन्यास लिखे। ‘सागर-मंथन’ उन्हीं में से एक समाजी वैज्ञानिक उपन्यास है-जिसमें नायक गिलियातने अपनी प्रेयसी को पाने के लिए समुद्र से संघर्ष किया। इस उपन्यास में समुद्र विज्ञान और जलयान विज्ञान के बारे में बड़ी बरीक जानकारी दी गई है। उपन्यास की जान इस ‘क्लाइमेक्स’ में है कि नायक अपनी वैज्ञानिक और साहित्यिक सफलता के बाद अपनी घोषित मंगेतर ‘डेरुशी’ को ग्रहण करने से इन्कार कर समुद्र में जल समाधि ले लेता है और उस बेवफा प्रेमिका को उसी व्यक्ति से विवाह करने के लिए स्वर्णित अवसर छोड़ देता है, जिसे वह चाहती थी। मानव पक्ष के साथ-साथ विज्ञान के सभी पहलुओं का निर्वाह करते हुए लेखक ने मानवीय भावनाओं को इस उपन्यास मे जम कर छुआ है।


-सम्पादक


इंग्लिश चैनल में गुर्नसी टापू से 17 मील दूर समन्दर में दो चट्टानें थीं, जिनका नाम डोवर्स था। इन दोनों चट्टानों के बीच संकरा-सा रास्ता भी था। इसमें समुद्र की लहरें एक ओर से दूसरी ओर झपटती रहती थीं। बड़ी चट्टान का नाम मान था। इनके बीच कई छोटे जहाज और नाव फंस कर नष्ट हो चुके थे। सन् 1820 ई० की बात है। उस समय यूरोप में भाप से चलने वाले जहाज और छोटी-छोटी नावों का आविष्कार हुआ ही था।

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