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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 9 :

 

प्रकाशचन्द्र को अब संसद का काम नीरस और निरर्थक प्रतीत होने लगा था। इस पर एक घटना और घटी।

एक दिन उसके पास कांग्रेस दल का सचेतक आया और कहने लगा, "प्रकाश बाबू! आप पांच मई को दिल्ली में ही रहने का प्रबन्ध कर ले।"

''क्या काम है?''

''संविधान में एक संशोधन होने वाला है। वह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि लोक सभा के आधे से अधिक सदस्य उपस्थित न हों और उपस्थित सदस्यों में से दो तिहाई संशोधन के पक्ष मै न हों। अत: कांग्रेस के सब सदस्यों का उपस्थित होना अत्यावश्यक है।''

''क्या संशोधन कर रहे हैं?"

''यही कि जब सरकार को किसी वस्तु अथवा सम्पत्ति की सार्वजनिक कामों के लिये आवश्यकता हो तो वह ले सके और उसको जो प्रतिकार सरकार दे, उस पर न्यायालय में आपत्ति न की जा सके।''

प्रकाशचन्द्र विचार करने लगा कि इस संशोधन का क्या प्रभाव होगा? जब उसे समझ आया तो वह कांप उठा। उसने प्रश्न किया, "यह कौन निश्चय करेगा कि अमुक वस्तु अथवा सम्पत्ति सार्वजनिक लाभ के लिए है?''

''जो सरकारी अधिकारी नियुक्त किया जायेगा।''

''और उसकी कीमत, जो सरकार को देनी होगी, वह कौन निश्चय करेगा?"

''यह भी कोई अधिकारी ही होगा।"

"और यदि वह भूल कर दे तो?"

''तो वह व्यक्ति जिसकी सम्पत्ति सरकार ने ली है, वह उसी विभाग के मन्त्री से प्रार्थना करे।"

''ऐसे। मंत्री से जो लाखों रुपये लोगों से मांग रहे हैं?''

"कौन मांग रहा है?"

''नाम नहीं बताऊंगा। मुझे किसी ने कहा है कि किसी कार्य के लिए अमुक मंत्री महोदय को पांच लाख रुपया चाहिए। यदि मैं उतना रुपया दे दूं तो मुझे ऐसा कार्य मिल जाएगा, जिसका इतना लाभ हो जायेगा।"

''देखिए प्रकाशजी! यह पृथक बात है। मैं और अधिक नहीं बता सकता। इतना कह देता हूं कि उस दिन आपको उपस्थित रहना चाहिए। अन्यथा ठीक नहीं होगा।''

''आप तो नाराज़ हो गये हैं।" प्रकाशचन्द्र ने कुछ डरकर बात कही, "जब मैं कुछ जानना चाहता हूं तो आपको मुझे समझाना नहीं चाहिए क्या?"

''आपको आपके प्राईवेट सेक्रेटरी मिस्टर सिन्हा समझा देंगे। यह काम मेरा नहीं है।"

इस धमकी ने तो प्रकाशचन्द्र के मस्तिष्क में उथल-पुथल मचा दी। संविधान में संशोधन उपस्थित हुआ और प्रकाशचन्द्र उस दिन लोक सभा में उपस्थित हो उसके पक्ष में मत दे आया। इस पर भी वह विचार कर रहा था कि इसी के लिए वह लाखों रुपये व्यय कर इस सभा का सदस्य बना है और क्या इन लोगों मैं ही बैठने के लिये वह सुख स्वप्न देख रहा था।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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