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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 4 :

 

कमला और प्रकाशचन्द्र कौड़ियामल्ल की दो ही सन्तान थीं। दोनों की आयु में दस वर्ष का अन्तर था। दोनों के बीच में सेठानी जी के पांच बच्चे हुए थे, परन्तु सब दों-तीन वर्ष की आयु के होकर चले जाते रहे थे। इन पांच की मृत्यु के उपरान्त एक लड़की के जीवित रहने पर बहुत प्रसन्नता अनुभव की गयी।

इस लड़की के पेट में आते ही इससे पूर्व हुआ बच्चा रुग्ण हो मर गया तो सेठानी को बहुत चिन्ता लगी। पति-पत्नी दोनों संत माधवदास के आश्रम में गये और वहां उनको साष्टांग प्रणाम कर अपने पर परमात्मा के कोप की बात कहने लपो। मेठजी ने बताया, "बच्चे उत्पन्न होते समय स्वस्थ और सुन्दर होते हैं, परन्तु कोई ही दो: वर्ष से बड़ा हो पाता है। कोई न कोई कारण हो जाता है कि उसे परमात्मा अपने घर में बुला लेता है।"

संतजी ने बात सुनी, फिर आंखें मूंद अन्तरध्यान हो विचार किया और कह दिया, "सेठजी। इस बार भगवान की कृपा रहेगी।''

किस बात का फल हुआ कि यह सन्तान लड़की हुई और फिर दिनानुदिन बढ़ने लगी, कहना कठिन है। पांच वर्ष व्यतीत हुत तो बहुत खुशियां मनायी गयी। हवेली में एक बड़ा यज्ञ किया गया और यज्ञ की पूर्णाहुति के दिन संतजी को बदायूँ में लाया गया। हाथी पर उनकी सवारी निकाली गयी और इस अवसर पर सेठजी ने बीस सहस्र रुपये की लागत का संतजी के आश्रम में अतिथिगृह निर्माण करने का संकल्प कर दिया।

लड़की के बड़ा होने के साथ-साथ सेठ कौड़ियामल्ल अधिक और अधिक धार्मिक प्रवृत्ति वाले होते गये। दान-दक्षिणा की मात्रा बढ़ने लगी और ईश्वर की कृपा से धन-सम्पत्ति भी बढ़ने लगी।

सेठजी ने बम्बई, कलकत्ता, कानपुर और लखनऊ में व्यापार केन्द्र खोल दिये। उत्तर प्रदेश और बिहार की कई चीनी मिलों के हिस्से खरीद लिये। इस समय व्यापार की स्थिति यह थी कि घर में रुपया बरसता था। करोड़ों की सम्पत्ति हो गयी थी। यह सब उन्नति कमला के जन्म के उपरान्त ही आरम्भ हुई थी। कमला का जन्म सन् 1939 में हुआ था और उसी समय जर्मनी से द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हुआ था और इसी से सेठजी दवा व्यापार चमकने लगा था। माता-पिता समझते थे कि सब उन्नति कमला के प्रताप से ही हो रही है और कमला सत माधवदास की कृपा का बरुत्र ही समझी जाती थी।

कमला माता-पिता की लाड़ची लड़की थी। उसे स्कूल में पढ़ो के रिनये नहीं भेजा गया। आरम्भ से ही उसकी शिक्षा-दीक्षा के लिए एक अध्यापिका रख दी गयी थी।

अध्यापिका का नाम था शीलवती। वह बदायूँ में एक स्कूल मास्टर की पत्नी थी। बहु संस्कृत एम. ए. और एल0 टी0 थी। उसके घर में कोई सन्तान नहीं हुई, अत: अध्यापिका का भी स्नेह कमला से प्रगाढ़ हो गया था और वह उसे अपनी लड़की मान ही उसे पढ़ाती थी। सेठजी ने अध्यापिका और उसके पति को रहने के लिये हवेली के पिछवाडे में दो कमरों का एक फ्लैट दे रखा था।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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