लोगों की राय

उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 6 :

 

सेठजी ने जब धनवती का हाथ पकड़े हुए सूरदास को फुटपाथ पर चलते देखा तो प्रबल अन्तर प्रेरणा से वह लौट पड़ा। उस समय तो उसके मन मैं केवल यही भावना थी कि उसने कोई खोयी निधि पा ली है, परन्तु उसने जब धनवती को देखा तो समझ गया कि यह स्त्री सूरदास से किसी प्रकार का घनिष्ठ सम्बन्ध रखती है। यह बम्बई में रहती है और वस्त्रादि से किसी प्रकार के अभाव में प्रतीत नहीं होती। सूरदास पहले से अधिक पुष्ट एवं प्रसन्न प्रतीत होता था। वह वस्त्र भी पहले से अधिक अच्छे पहने-था। जूता भी अब पहले से बढ़िया था। धोती, कुर्ता सर्वथा रेशमी थे और बहुत ही बढ़िया रेशम के किसी कुशल दर्जी से सिले प्रतीत होते थे।

सूरदास ने सेठजी की आवाज पहचानी तो हाथ जोड़ कहने लगा पकड पाये हैं भगोड़े को?"

''हां, परन्तु तुम भागे क्यों?" सेठजी ने पूछा।

''यह एक लम्बी कहानी है। साथ ही कहानी किसी अन्य की है। वह ही बतायें तो बतायें। आप किधर रहते हैं?"

''तुम किधर जा रहे हो?"

''मैं तो दो-तीन मील पैदल घूमने के लिए आया करता हूँ। माता धनवती मेरे पर कृपा कर मेरा हाथ पकड़ पथ-प्रदर्शन करती हैं।"

''तो अभी और घूमना है?''

''भ्रमण पूरा तो नहीं हुआ, परन्तु यदि आप माताजी के घर चलें तो मैं भी लौट सकता हूं?"

''मैं तो अब तुम्हें बदायू ले चलूंगा। वहाँ पूर्ण परिवार तुम्हारी प्रतीक्षा मं  है।''

''प्रकाश बाबू भी?"

''उसके विषय में तो नहीं कह सकता, परन्तु वह अब मेरे परिवार का अंग नहीं रहा।''

''यह आपने ठीक नहीं किया।"

"राम! मैंने कुछ नहीं किया। सब कुछ उसकी अपनी करनी का फल है। पर यहां नहीं। आओ, मेरे पास मोटर गाड़ी है। उसमेँ आ जाओ।"

"किधर चलेंगे?"

"बदायूं।''

''मोटर गाड़ी में ही?" सूरदास ने मुस्कराते हुए पूछा।

"नहीं। इतनी दूर मोटरगाड़ी में जाने से बहुत कष्ट होगा। हम हवाई जहाज में चलेंगे।''

''परन्तु पिताजी! यहौ एक माताजी हैं। आप उनसे मिल लीजिये।"

''तो चलो। पहले उनके यहां ही चलें।"

''माताजी।" सूरदास ने धनवती को सम्बोधन कर कहा, "सेठ जी को बड़ी माताजी के पास ले चलिये।''

तीनों समीप ही खड़ी मोटर में जा बैठे। सेठजी ने धनवती और सूरदास को पीछे की सीट पर बैठा क्यिा और स्वयं ड्राईवर के हास बैठ धनवती से पूछने लगा, "बताइये, बहिनजी! किधर चलें?"

''धोबी तालाब। बुमैन्स कार्नर।"

गाड़ी दुकान के सामने पहुंची तो धनवती दोनों पुरुषों को दुकान की सीढ़ियों में लगी "लिपट'' में तीसरी मंजिल पर ले गई। वहां वह उन दोनों को सूरदास के कमरे में ले गयी। सूरदास ने सेठजी को बैठने के लिए कहा और बताया कि माताजी इस समय पूजा में होंगी। आपको तनिक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book