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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 6 :

 

ऊपर की मंजिल पर कमला और उसकी मां में तिलक के विषय में विचार होने लगा था। चन्द्रावती लड़की को लेकर पृथक् कमरे में चली गयी। शीलवती को भी वह साथ ले गयी। दोनों को समझाने के लिये सेठानीजी ने स्वयं उनके सामने बैठ कहा, "कमला। सूरदास को तिलक लगाती हो?''

''हां मां।"

''क्यों?''

''मेरा मन कहता है।''

''पर यह तो ठीक नहीं। लड़कियां अपनी सगाई के समय अपने होने वाले पति को तिलक लगाती हैं।''

"मैं भी यही समझती हूं।''

''क्या समझती हो?"

''मैने अपनी सगाई के अनुरूप ही तिलक लगाया है।''

''कब से लगा रही हो?'' चन्द्रावती के माथे पर त्योरी चढ़ गयी थी। इसको शीलवती और कमला दोनों देख रही थीं। शीलवती तो भयभीत थी, परन्तु कमला मुस्करा रही थी। उसने कहा, "मन में निश्चय किये तो कई महीने हो गये हैं। मैं उनको वर चुकी हूँ। हाथ से तिलक आज ही लगाया है।"

''हम यह स्वीकार नहीं कर सकते।"

''पर मां, मैंने उनको वरा है। तुम्हारे स्वीकार करने न करने की आवश्यकता है क्या?''

''परन्तु तुम अभी अल्प-व्यस्क हो। तुम अपनी इच्छा से विवाह नहीं कर सकतीं।''

''कब तक व्यस्क हो सकूंगी?''

''यह तुम्हारे पिताजी से पूछ कर बताऊंगी।''

''तो पूछ लो मां! मैं तब ही विवाह करूँगी।''

''और तब तक उनको तिलक नहीं लगाना।"

''पर मेरा जी करता है।"

"जी की बच्ची! विवाह कोई गाजर-मूली की बात है जो खेत से उखाड़ी और खा ली।''

इस पर शील ने कह किया, "माता जी! अब तो खेत में से भी कोई उखाड़ने नहीं देता।"

''हाँ, देखो तुम अब नीचे सरदास के कमरे में नहीं जाया करोगी।"

''यत्न करूंगी।''

''किस बात का यत्न करोगी?'' शीलवती ने पूछ लिया।

''मां का कहा मानने का। मेरा जब मन करता है तो मैं उनके दर्शन करने चली जाती हूँ।"

''तो सूरदास को इसका ज्ञान है?"

"किस बात का मां?"

"यही कि तुम उसके दर्शन की लालसा करती रहती हो?"

''मेरा विचार है कि उनको ज्ञात है। अब तो उनको ज्ञान अवश्य ही हो गया होगा।"

"अब कब से?''

''आज तिलक करने के उपरान्त। मेरे तिलक लगाते ही उनके मुख पर कुछ ऐसी चेतना हुई प्रतीत होती थी कि वह किसी पहली बात से उसका सम्बन्ध जोड़ने लगे थे।"

''किस पहली बात से?"

''कमला ने उत्तर नहीं दिया, परन्तु उसके मुख पर किसी अलौकिक अनुभूति के लक्षण दिखायी देने लगे थे। मां इसका अर्थ नहीं समझी। इस कारण उसने पुन: पूछा, "चुप क्यों कर गयी हो? कौन सी पहली बात को स्मरण करने लगा था वह?''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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