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अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 10 :

 

भोजन समाप्त हुआ तो चन्द्रावती भागीरथ के साथ उस कमरे में चली गयी, जिसमें वह ठहराया गया था। शील और कमला बैठक घर में जा बैठीं। कमला ने बैठक घर में बैठते ही अध्यापिका से कह दिया, "बहनजी। मैं तो विवाह कर चुकी हूं। अब इस मूर्ख से बात करनी व्यर्थ है।"

"विवाह कर चुकी हो? कब और किससे?"

"आपके भैया राम से। मन में निश्चय किये तो दो वर्ष हो चुके है; परन्तु जब वह भैया के साथ लखनऊ गये हुए थे तो मां ने किसी अन्य विषय पर बात करते हुए कहा था कि मैं अठारह वर्ष की हो रही हूँ। इसे कारण मैंने अपने को सज्ञान मान उनके लखनऊ से लौटने पर उनके तिलक कर दिया था। तबसे मै अपने को उनको विवाहित पत्नी मानती हूं।"

शीलवती मुख देखती रह गयी। कमला मुस्कराती हुई सामने दीवार पर लगा नयनाभिराम का चित्र देख रही थी।

शीलवती यह तो समझ रही भी कि भागीरथलाल कमला के लिये उपयुक्त पति नहीं है और वह कमला को उसे मूर्ख कहने पर सन्तोष अनुभव करती थी। वह यह भी जानती थी किं कमला सूरदास के प्रति प्रेम की भावना रखती है। तिलक लगाने के उपरान्त सूरदास ने कह दिया था कि तिलक तो सगाई अथवा विवाह के अतिरिक्त भी लगाये जाते हैं भैया दूज के दिन बहनें भाईयों को तिलक लगाती हैं। उसके उपरान्त घर में यह चर्चा शांत हो गयी थी और सूरदास के प्राय: घर से बाहर रहने घर तथा कमला के दिन भर कार्यालय में रहने पर दोनों में भेट के अवसर कम हो गये थे। परन्तु आज फिर कमला के निश्चयात्यक कथन को सुन वह घर में भारी विवाद की आशंका करने लगी थी। उसने कुछ विचार कर कहा, "पर कमला। मन से विवाह नहीं होता। मन से तो प्रेम होता है और प्रेम के कई रूप हैं। स्नेह, वात्सल्यता प्रणय, ये परिवार सम्बन्धी प्रेम के रूप हैं। फिर देश प्रेम है, विचार प्रेम, स्थान प्रेम है, जातीय प्रेम और मानव प्रेम भी हैं।

"विवाह तो शरीर से होता है। यह तो तुम्हारा नहीं हुआ। इसके होने से पहले कई बातों का निर्णय होना होता है। वे बातें पंच महायज्ञ कहती हैं। इस विषय में शास्त्र चर्चा के समय तुमसे कई बार बात भी हो चुकी है।"

''बहनजी! मैं समझती हूँ कि जब मैंने उनको तिलक दिया और उनके चरण छुए तो शरीर से भी मैं उनकी हो गयी। रही बात पंच महा यज्ञों की, उसके लिये मैं यत्न कर रही हूं। अभी उनके लिये सुविधाजनक प्रबन्ध नहीं है। पिताजी उनके लिये मकान बनवा रहे हैं। मैं यत्न कर रही हूँ कि मकान तैयार होने पर पिताजी उनके नाम वह सकंल्प कर दे। निर्वाह के लियें मैं पिताजी के कार्यालय में काम करने लगी हूं। यदि तो पिताजी ने उनके साथ उनके घर में जाकर रहने की स्वीकृति न दी तो फिर निर्वाह के लिये कहीं अन्यत्र प्रबन्ध करना होगा। कदाचित् इसमें कई वर्ष लग जायेंगे; परन्तु बहनजी, यह निश्चय जानो, कि यह होगा।"

''परन्तु मैं पिता तथा माताजी के मानने की बात नहीं कह रही। मैं तो उनके अन्धकार से आवर्त्त जीवन की बात कर रही हूं। इस अन्धकार-युक्त जीवन में तुम अपने पांचों यज्ञ सुचारू रूप से कर सकोगी क्या?"

कमला ने अपना विचारित मत बता दिया। उसने कहा, "मैं इस विषय पर पिछले दो वर्ष से। विचार कर रही हूं। मैं समझ रही हूँ कि उनका जीवन कुछ अधिक अन्धकारपूर्ण नहीं। दूसरों की तुलना में तो उनका जीवन अधिक प्रकाशमय दिखायी देता है। आंखों का अभाव सुन्दरदास पूरा कर रहा है। अन्य इंद्रियों की सहायता से तो वह आखों के अभाव को पार कर अनेकों से आगे निकल चुके हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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