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कविता संग्रह >> कहती हैं औरतें

कहती हैं औरतें

अनामिका

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16213
आईएसबीएन :9789355180346

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भेदभाव, व्यभिचार, युद्ध, नास्तिकता, विस्थापन जैसे मुद्दों पर जब औरत बोलती है तो उसका स्वाभाविक स्वर चुनौती वाला होता है। औरत होना उसके लिए पक्ष होना है। कहीं भी। कभी भी कविता में। दुनिया के साहित्य से चुनी इस संग्रह की कविताओं में प्रेम, समझ, हक, मैत्री, गन्ध, परिवेश, ख़ौफ़, भूगोल इत्यादि इस तरह गुँथे हुए हैं जैसे मिथक और पॉपकार्न, जैसे इन्द्रधनुष अगिया बैताल।

* मैं हूँ एक स्त्री/ कौन कह सकता है मैं शर-विद्या सीखना चाहती हूँ/मैं उस धूर्त और दयनीय ब्राह्मण/द्रोणाचार्य की मूर्ति भी नहीं बना सकती/क्योंकि वह पर पुरुष है/मैं एकलव्य नहीं बन सकती/मेरा अँगूठा है मेरे पति का /मैं शम्बूक भी नहीं बन सकती/क्योंकि मुझे एक बलात्कारी से गर्भ धारण करना है/एकलव्य और शम्बूक मैं तुम्हारे एकान्त से/ईर्ष्या करती हूँ/क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ और ब्राह्मणों की दुनिया/भंग करना चाहती हूँ।

– शुभा

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