लोगों की राय

उपन्यास >> तृन धरि ओट

तृन धरि ओट

अनामिका

प्रकाशक : वैभव प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16403
आईएसबीएन :9789355183910

Like this Hindi book 0

अनामिका का यह उपन्यास सीता के व्यक्तित्व के गहनतम पक्षों का उद्घाटन एक ऐसी भाषा में करता है जिसमें शताब्दियों की अन्तर्ध्वनियाँ हैं। यह इतनी व्यंजक, सरस और ठाठदार है जितनी भामती, भारती, लखिमा देवी की परम्परा की मैथिल स्त्री की भाषा होनी ही चाहिए। सीता तर्क करती हैं पर मधुरिमा खोए बिना, “सिया मुस्काये बोलत मृदु बानी” वाली लोकछवि धूमिल किये बिना, एक क्षण को भी सन्तुलन खोए बिना वे सबसे राय-विचार करती हैं-माँ-बाबा से, बहनों से, बालसखाओं से, सब महाविद्याओं से, वनदेवियों, आदिवासी स्त्रियों से, वाल्मीकि से, राम से, लक्ष्मण से, लव-कुश से, केवट-वधू से, अग्नि से, शम्बूक बाबा और शूर्पणखा से, स्वयं से और वैद्यराज के अनुगत रूप में रुद्रवीणा सीखने आये रावण से भी। वे एक सहज प्रसन्न सीता हैं जिन्होंने एकल अभिभावक के सब दायित्व हँसमुख ढंग से निभाये हैं। वाल्मीकि के आश्रम में आये ऋषि-मुनियों से, आश्रम के एक-एक पेड़-पौधे, जीव-जन्तु से उनका सहज संवाद का नाता है। वे वैद्य के रूप में एक पर्यावरणसजग सीता हैं और उन्हें पारिस्थितकीय स्त्री-दृष्टि के आलोक में भी पढ़ा-समझा जा सकता है। राम से भी उनका पत्राचार बना हुआ है-पति-पत्नी राय करके ही अलग हुए हैं।

सीता जंगल में राक्षस सन्ततियों के लिए एक पाठशाला चलाती हैं क्योंकि उनका दृढ़ मत है कि प्रकृति और संस्कृति के बीच के द्वन्द्व में आदिवासी/राक्षस संस्कृति का हिंसक शमन उन्हें हमेशा प्रतिक्रियावादी ही बनाये रखेगा। युद्ध नहीं, सरस शिक्षा है असल समाधान। मर्यादा पुरुषोत्तम यहाँ सीता के हर निर्णय का आदर करते हैं पर युगीन धर्मशास्त्र राम को हृदय की बात मानने से रोकता है। कई तरह की ऊहापोह के बाद क्या निर्णय लेते हैं दोनों मिलकर-यह तो आप उपन्यास में ही पढ़ें।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book