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रोगों के चमत्कारिक उपचार

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भगवती पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1669
आईएसबीएन :81-7775-044-5

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घासलेट की मात्र कुछ बूँदें.... और दमा गायब- कैसे -सभी कुछ बहुत कुछ इसी पुस्तक में-

Rogon Ke Chamatkarik Upchar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

दो शब्द

वर्तमान में विभिन्न रोगों के उपचार में ‘एलोपेथी’ का साम्राज्य है। शहरों में ही नहीं गाँवों में भी लोग आधुनिक चिकित्सा पद्धति को दिनों-दिन अपनाते जा रहे हैं। लेकिन फिर भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आज भी लोग अंचल में अनेक लोग भारतीय प्राचीन उपचारों को सम्पन्न कर लाभान्वित होते देखे जा सकते हैं। ये अधिकांश उपचार सरल, निरापद तथा परमप्रभावी होते हैं। मैं कोई वैद्य नहीं हूँ किन्तु समय-समय पर विद्वजनों के माध्यम से अथवा पुराने लोगों के माध्यम से मुझे रोगों के उपचारार्थ अनेक सरल प्रयोगों की जानकारियाँ प्राप्त होती रही हैं और उनमें से सैकड़ों सफलतापूर्वक मैंने अजमाया भी तथा उनके चमत्कारी प्रभावों को देखा, अनुभव किया।

 उसी का परिणाम ये छोटी-सी पुस्तक है। मेरा विश्वास है कि इसमें वर्णित प्रयोगों से अवश्य ही इसके सभी पाठक लाभान्वित होंगे।
मैं उन सभी जानकारों का, विद्वानों का, प्राचीन ग्रन्थों के लेखकों का तथा उन सभी का हृदय से आभारी हूँ जिनके अमूल्य कथनों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उपयोग मैंने इस पुस्तक में किया है। इस पुस्तक को आपके समक्ष लाने हेतु मैं श्री राजीव अग्रवाल जी, भगवती बुक्स, आगरा का भी आभार व्यक्त करता हूँ।

इस पुस्तक में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिये मैं अग्रिम क्षमाप्रार्थी हूँ। आपके सुझावों एवं मार्गदर्शन का मुझे इंतजार रहेगा।

धन्यवाद,
उमेश पाण्डे


मधुमेह (DIABETES)



मधुमेह शरीर में चयापचय के विकृत होने से उत्पन्न बीमारी है जिसमें पेशाब में शर्करा आने लगता है क्योंकि शरीर के खून में शर्करा बढ़ जाती है। यह बीमारी स्त्री एवं पुरुष सभी में समान रूप से पायी जाती।
चरक ने मूत्र एवं शरीर में शर्करा के आधिक्य को मधुमेह कहा है।


मधुमेह के कारण


•    मधुमेह का प्रमुख कारण अग्न्याशय की विकृति है जो आहार-विहार में गड़बड़ी के कारण उत्पन्न होती है।
•    आहार में मधुर, अम्ल एवं लवण रसों के अत्यधिक सेवन से।
•    आराम-तलब जीवन व्यतीत करने से तथा व्यायाम एवं परिश्रम न करने से।
•    अत्यधिक चिन्ता एवं उद्वेग के परिणामस्वरूप।
•    आवश्यकता से अधिक कैलोरी वाले शर्करा एवं स्नेहयुक्त भोजन करने से यह रोग उत्पन्न होता है।
•    आधुनिक वैज्ञानिकों ने इस व्याधि का संबंध वंश-परम्परा से भी माना है। हालाँकि की चरक भी इसका अनुमोदन करते हैं।


मधुमेह के लक्षण


मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों में निम्न लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं-
•    रोगी का मुँह खुश्क रहना तथा अत्यधिक प्यास लगना।
•    भूख अधिक लगना।
•    अधिक भोजन करने पर भी दुर्बल होते जाना।
•    बिना कारण रोगी का भार कम होना, शरीर में थकावट के साथ-साथ मानसिक चिन्तन एवं एकाग्रता में कमी होना।
•    मूत्र बार-बार एवं अधिक मात्रा में होना तथा मूत्र त्यागने के स्थान पर मूत्र की मिठास के कारण चीटियाँ लगना।
•    शरीर में व्रण अथवा फोड़ा होने पर उसका घाव जल्दी न भरना।
•    शरीर पर फोड़े-फुँसियाँ बार-बर निकलना।
•    शरीर में निरन्तर खुजली रहना एवं दूरस्थ अंगों का सुन्न पड़ना।
•    नेत्र की ज्योति बिना किसी कारण के कम होना।
•    पुरुषत्वशक्ति में क्षीणता होना।
•    स्त्रियों में मासिक स्राव में विकृति अथवा उसका बन्द होना।

उपचार


•    जो व्यक्ति कुछ दिनों तक रोजाना 7 बेल की पत्तियों का (एक पत्ती में 3 पत्र होते हैं) तथा एक चम्मच ताजे आँवले का तथा एक चम्मच जामुन के पत्रों का रस आपस में मिलाकर पीता है (केवल सुबह के समय) उसके शरीर में शर्करा का पाचन होने लगता है।

•    बेलपत्र स्वरस एवं निंबपत्र कोपल स्वरस 10-10 मि.ली. प्रात: व शाम लेने से मधुमेह रोग बहुत जल्दी नियंत्रित होता है।
•    मैथी के बीज का चूर्ण 20 ग्राम प्रात: व शाम जल से लेने से लाभ होता है।
•    जामुन के बीज का चूर्ण 20 ग्राम या करेले का रस 20 मि.ली. प्रात: व शाम को लेवें।
•    गुड़मार के पत्तों एवं गूलर के पत्तों का चूर्ण या स्वरस प्रात: व शाम लेना इस रोग में हितकर है।
•    शुद्ध शिलाजीत 1 ग्राम प्रात: व शाम दूध से लेने से भी मधुमेह ठीक होता है।
•    मधुमेह के रोगी को रोजाना सुबह के समय एक चम्मच भर तेजपात का चूर्ण फाँकना परम लाभदायक होता है। इससे शर्करा नियंत्रित रहती है।


मधुमेह पर विशेष उपचार



•    बिल्वपत्र की 7 पत्तियाँ (एक पत्ती=3 पत्तियाँ) एवं 5 काली मिर्च पीसकर सुबह के समय जल से खाली पेट 1 माह तक लेने से मधुमेह काफी सीमा तक दूर हो जाता है।


मधुमेह के रोगी क्या करें



•     चिन्ता, तनाव, व्यग्रता से मुक्त रहें।
•    तीन माह में एक बार रक्त शर्करा की जाँच करावें।
•    भोजन कम करें, भोजन में रेशे युक्त द्रव्य, तरकारी, जौ, चने, गेहूँ, बाजरे की रोटी, हरी सब्जी एवं दही का प्रचुरमात्रा में सेवन करें। चना और गेहूँ मिलाकर उसके आटे की रोटी खाना बेहतर है। चना तथा गेहूँ का अनुपात 1:10 हो।
•    हल्का व्यायाम करें, शारीरिक परिश्रम करें अथवा प्रात: 4-5 कि.मी. घूमें।
•    मधुमेह पीड़ित मनुष्य नियमित एवं संयमित जीवन के लिये विशेष ध्यान रखें।
•    शर्करीय पदार्थों का सेवन बहुत सीमित करें।
•    स्थूल तथा अधिक भार वाले व्यक्ति अपना वजन कम रखने का प्रयत्न करें।
•    चरपरे एवं कषाय रसयुक्त आहार का विशेष सेवन करें।
•    मैथुन यथासंभव कम करें एवं योग्य ब्रह्मचर्य धारण करें।
•    दवाओं का सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही करें।
•    नित्य कुछ समय के लिये प्राणायाम अवश्य करना चाहिये। जहाँ तक संभव हो कुछ समय नंगे पैर जमीन पर अवश्य चलना, यदाकदा स्थान, जलवायु इत्यादि में भी बदलाव करें। शक्कर के स्तर की नियमित जाँच कराते रहें।

नोट- मधुमेह के रोगियों को ‘सूर्य नमस्कार’ करने से बहुत लाभ होता है। इस यौगिक क्रिया की जानकारी किसी भी योग्य जानकार से आसानी से हो जाती है। इसी लेखक और प्रकाशक की पुस्तक ‘सब कुछ विचित्र’ में सूर्य नमस्कार पर भरपूर प्रकाश डाला गया है।


मधुमेह के रोगी क्या न करें



•    अधिक मात्रा में कार्बोजयुक्त, शक्कर, आलू, शकरकन्द, केला, मीठे फल, आनूप देश के पशु व पक्षियों का मांस एवं चावल का सेवन न करें।
•    क्रोध, शोक, चिन्ता, भय, वासनामय उद्वेग, मानसिक तनाव से बचें।
•    गुण विरुद्ध, संयोग विरुद्ध, संस्कार विरुद्ध, काल विरुद्ध आहार-विहार से भी अपने आप को बचायें।
•    आराम-तलबी जीवन व्यतीत न करें।
•    मादक द्रव्यों, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, मदिरा आदि के सेवन से बचें।
•    अत्यधिक परिश्रम न करें।
•    नित्य भ्रमण पर जावें।


कब्ज (CONSTIPATION)


पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। कब्ज का त्वरित उपचार आवश्यक है क्योंकि यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। मल का निकास नियमित रूप में न होने के कारण आंतों में जमे मल में जैविक प्रक्रिया होने लगती है जिसके परिणाम स्वरूप पेट में गैस बदहजमी एवं बेचैनी को जन्म देती है। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है।

कब्ज होने के प्रमुख कारण


•    किसी तरह की शारीरिक मेहनत न करना। आलस्य करना।
•    अल्पभोजन ग्रहण करना।
•    शारीरिक के बजाय दिमागी काम ज्यादा करना।
•    चाय, कॉफी बहुत ज्यादा पीना। धूम्रपान करना व शराब पीना।
•    गरिष्ठ पदार्थों का अर्थात् देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन ज्यादा करना।
•    भोजन में फायबर (Fibers) का अभाव।
•    आँत, लिवर और तिल्ली की बीमारी।
•    दु:ख, चिन्ता, डर आदि का होना।
•    सही वक्त पर भोजन न करना।
•    बदहजमी और मंदाग्नि (पाचक अग्नि का धीमा पड़ना)।
•    भोजन खूब चबा-चबाकर न करना अर्थात् जबरदस्ती भोजन ठूँसना। जल्दबाजी में भोजन करना।
•    बगैर भूख के भोजन करना।
•    ज्यादा उपवास करना।
•    भोजन करते वक्त ध्यान भोजन को चबाने पर न होकर कहीं और होना।



प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. मधुमेह (Diabetes)
  2. कब्ज (Constipation)
  3. उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)
  4. लिंग दृढ़ीकरण (Stiffening of Penis)
  5. मोटापा (Obesity)
  6. नाभि विस्थापन (Displacement of Emblicus)
  7. मुखपाक (Stomatitis)
  8. बवासीर (Piles)
  9. मिर्गी रोग (Epilepsy)
  10. खून की कमी (एनीमिया) (Anaemia)
  11. श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)
  12. अत्यार्त्तव (Menorrhoea)
  13. ऋतु स्तम्भन (Ammenorrhoea)
  14. विशिष्ट योनि रोग (Specific Vaginal Disorders)
  15. स्त्रियों में बाँझपन (Sterility in Women)
  16. प्रसव में विलम्ब (Delay in Delivery)
  17. गर्भस्राव एवं गर्भपात (Abortion and Uterine Bleeding)
  18. स्त्री जननांग में खुजली (Pruritis Vulvae)
  19. स्त्रियों में सोमरोग (A Kind of Female Disorder)
  20. स्वप्न दोष (Nocturnal Emmission)
  21. शीघ्रपतन (Premature Ejaculation)
  22. शुक्रमेह (Spermatorrhoea)
  23. हस्तमैथुन (Masturbation)
  24. लिंगोत्थानाभाव (Erectile Dysfunction)
  25. एड्स (Aids)
  26. वाजीकरण (Aphrodiacs)
  27. सुजाक (Gonorrhoea)
  28. सिफलिस या उपदंश (Syphlis)
  29. अपीनस रोग (Ozoena)
  30. दंत रोग (Teeth Problems)
  31. बच्चों के दाँत निकलना (Teething Period)
  32. टॉन्सिल्स (Tonsils)
  33. सफेद दाग (Leukoderma)
  34. दाद (Ringworm)
  35. श्वास रोग (दमा) (Asthma)
  36. आंत्र गुल्म (अपेन्डीसाइटिस) (Appendicitis)
  37. पलित रोग अर्थात् असमय बालों का सफेद होना (Premature Whitening of Hair)
  38. गंजापन अथवा इन्द्रलुप्त (Baldness)
  39. आधासीसी (Migraine)
  40. खाँसी (Cough)
  41. हिचकी (Hiccup)
  42. उदासीनता रोग (Depression)
  43. पीलिया अर्थात् पाण्डुरोग (Jaundice)
  44. मुख दुर्गन्ध (Foul-Breath)
  45. वक्ष सौन्दर्य (Breast Beauty)
  46. चेहरे की झुर्रियाँ एवं दाग धब्बे आदि (Wrinkles and Facial Spots etc.)
  47. जूं के उपचार (Treatments Against Lice)
  48. केश समस्या (Hair Care)
  49. कुछ अन्य रोगों पर उपचार (Miscellaneous Diseases)

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