लोगों की राय

कहानी संग्रह >> किर्चियाँ

किर्चियाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

3465 पाठक हैं

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


जीवन की तमाम यन्त्रणाओं में एक और यन्त्रणा है यह निष्ठुर सुभाष यन्त्र! है कि नहीं? उसके भीतर से अनाप-शनाप बातें कानों में पड़ रही हैं...''क्या कहा...अब तक नहीं बनी?...बात बन नहीं रही? क्या कह रहे हैं आप? आपने सुबह ही बताया था...क्या पूरी नहीं हो पाएगी?...आपकी तबीयत ठीक नहीं?...बाहर निकल गये थे? ओह...बादल और बारिश के इस हंगामे में आप बाहर निकले ही क्यों?...लेकिन मेरी हालत पर भी तरस खाइए जरा...प्रेस के तगादों ने तो मुझे कहीं का नहीं रख छोड़ा? ऐसा कीजिए...सर...अदरक की गरमा-गरम चाय पीकर बैठ जाइए। अगर सामग्री नहीं मिली तो रेल के पहिये के नीचे मुझे अपनी गर्दन को रख आना पड़ेगा। आप समझ नहीं रहे हैं...सितम्बर की पहली तारीख को विशेषांक नहीं

निकला तो...लिख रहे हैं...। ठीक है....आपने तो मेरी जान बचा ली। तो फिर कल सुबह ही मिल रहा हूँ...। सचमुच....आपने मेरी जान बचा ली।....थैंक्स...।''

सरोजाक्ष घोषाल के पास इतनी क्षमता है कि वह किसी को बचा सकते हैं।....अभी समय है कि अपना वादा निभा सकें।

वह मेज के इस किनारे बैठ गये। देखा....सुबह से खुली पड़ी कलम की निब पर स्याही बुरी तरह सूखकर पत्थर की तरह जम गयी है। उन्होंने कलम में दोबारा ताजी स्याही भरी और अधूरी पड़ी कहानी को सामने खींचकर बैठ गये। हास्य और व्यंग्य से भरपूर कहानी। थोड़ी-सी लिखी जा चुकी है....बड़ी आसानी से और तेजी से आगे बढ़ती चली जाएगी। प्लाँट भी याद आ गया। बड़ी ही मजेदार कहानी है। तय है कि इसे पढ़कर सुधी पाठक-समुदाय के पेट में हँसते-हँसते बल पड़ जाएँगे।

कहानी आगे बढ़ती चली गयी

आखिर जादुई कलम जो ठहरी।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book