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ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1910
आईएसबीएन :1234567890123

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ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

आधुनिक भारत के निर्माताओं में लेखक, शिक्षाशास्त्री और समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे उन लोगों में से थे, जिन्होंने सबसे पहले शिक्षा के महत्व को समझा और जनसाधारण में उसके प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने बंगला व्याकरण का आधार देकर बंगाली भाषा को एक दलदल से उबारा था। बंगला वर्तनी और व्याकरण के नियम स्पष्ट करनेवाली उनकी पुस्तकें आज भी स्कूलों में पढ़ायी जाती हैं।

विद्यासागर ने अन्याय, पाखंड और शोषण के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया। नारी के दमन और शोषण को दूर करने का तो उन्होंने बीड़ा ही उठा लिया था। वही थे, जिन्होंने देश में प्रथम बालिका विद्यालय खोला। उन्होंने ही विधवा-विवाह की परम्परा डाली थी।

अपने जीवनकाल में ही ये एक किंवदंती बन गये थे। उनकी निःस्वार्थ लगन, दयालुता, हंसमुख स्वभाव, अदम्य साहस, वैज्ञानिक सूझबूझ और मानवीय दृष्टिकोण जैसी तमाम बातों को लेकर न जाने कितनी कहानियाँ और संस्मरण प्रचलित हैं। माइकेल मधुसूदन दत्त ने उनके बारे में कहा था-"जिस व्यक्ति से मेरी गुजारिश है वह ऋषि-मुनियों जैसी मेधा रखता है, उसका साहस अंग्रेजों जैसा है और उसका दिल एक बंगाली माँ जैसा कोमल है।"

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