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स्त्री-पुरुष संबंध >> हम अमीर लोग

हम अमीर लोग

नयनतारा सहगल

प्रकाशक : साहित्य एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2168
आईएसबीएन :9789391494889

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इसमें एक ओर भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आशाओं,आकांक्षाओं, असफलताओं और अवसादों का ताना-बाना तो दूसरी ओर स्त्रियों की दुर्निवार दुर्दशा का वर्णन है....

Ham Ameer Log

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तुत उपन्यास हम अमीर लोग साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कृति रिच लाइक अस (अंग्रेज़ी) का हिन्दी अनुवाद है। इसमें एक ओर भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आशाओं, आकांक्षाओं, असफलताओं और अवसादों का विविधतापूर्ण ताना-बाना है तो दूसरी ओर उसकी आधी आबादी यानी स्त्रियों की दुर्निवार दुर्दशा का अंकन है। यह उपन्यास अपने समय से सीधा संवाद करता और समकाल में हस्तक्षेप करता एक प्रश्नाकुल आख्यान है। यह स्वतन्त्र और स्वायत्त भारत के आदर्शों और मूल्यों की पड़ताल ही नहीं करता, अप्रिय सवाल भी करता है। आपातकाल की ज़्यादतियों के हवाले से कथालेखिका ने अपने ही कुटुम्ब के उन प्रभावी लोगों का प्रामाणिक चित्रण किया है, जो चाहे-अनचाहे उन स्थितियों के अन्धाधुन्ध दोहन में लगे थे। ऊपरी तौर पर अत्यन्त शान्त, परिष्कृत और रुचिसम्पन्न परिवारों में भी परम्परा और आधुनिकता का द्वन्द्व कई प्रतिकूलताओं को जन्म देता है।

स्त्री की मर्यादा और पुरुष का वर्चस्व एक ऐसी अन्धी लड़ाई को जन्म देते हैं, जिसकी आँच और आग दीख नहीं पड़ती, लेकिन जो सब कुछ खत्म कर देती है। लेखिका ने बहुधा इस बात पर आपत्ति दर्ज की है कि भारतीय राजनीति में हल्की-फुल्की गोलाबारी को भी क्रान्ति का दर्जा दे दिया जाता है और किसी एक गुट द्वारा सत्तारूढ़ गुट को अपदस्थ कर स्वयं को स्थापित करने को ही राजनीतिक परिवर्तन मान लिया जाता है।

हम अमीर लोग
एक


उन दिनों मेज़बान जितना अधिक अमीर होता, ‘डिनर’ उतनी ही देर से लगाया जाता। देर से खाना खाना एक प्रकार से हैसियत की पहचान थी। जैसे देसी ह्विस्की से पाँच गुनी महँगी स्कॉच ह्विस्की पीना और बेहद महँगी विदेशी कार से सफ़र करना। वह होटल से ऐसी ही कार से आया था। यात्रा के आरम्भ में ही उसे समझा दिया गया था कि स्थानीय उच्च वर्ग के लोग अपने लिए बड़ी से बड़ी और नये से नये मॉडल की विदेशी कार की व्यवस्था करना अपनी शान समझते हैं, राष्ट्रपति या सेनाध्यक्ष या चोटी के प्रशासकों की तो बात ही क्या ! और फिर क्यों न हो ? हमें अपने रहन-सहन का तरीक़ा पसन्द है। हम उन पर यह आरोप नहीं लगा सकते कि उनका रहन-सहन हमारी तरह का क्यों नहीं। इसके अलावा, इसी से वे उन सब चीज़ों को ख़रीदने के लिए तैयार हो जाते हैं जो हम उन्हें बेचना चाहते हैं।
‘‘थोड़ी और चलेगी, मि. न्यूमन ?’’ मेज़बान की पत्नी ने पेशकाश की।
‘‘धन्यवाद, अभी मेरी पहले की थोड़ी बची है।’’
‘‘यह स्कॉच है।’’

उसने बड़ी विनम्रता से हाथ के इशारे से मना कर दिया।
इस कक्ष की अपनी कोई पहचान नहीं बनती थी। विगत की कहीं कोई गूँज नहीं थी, न ही आगत का कोई एहसास होता था। समूचे कक्ष में बढ़िया क्रिस्टल के गुलदस्ते, ऐशट्रे और कटोरे इतनी अधिक मात्रा में थे कि लगता था जैसे थोक में खरीदे गये हों। क्रिस्टल के गुलदस्तों में अनेक प्रकार के गुलाब सजाए गये थे। उसका मेजबान जो टेलीफोन सुनने कमरे से बाहर चला गया था, अब लौट आया था। वह वक्त से पहले बुढ़ा गया लगता था, लेकिन उसका गोलमटोल चेहरा उस पर फब रहा था। ‘‘एक और ड्रिंक मि. न्यूमन ?’’
‘‘धन्यवाद, अभी नहीं।’’
‘‘यह स्कॉच है।’’
‘‘कुछ देर बाद’’ उसने कहा।

मेज़बान की पत्नी एकहरे बदन की थी और हलकी सूती साड़ी में लिपटी हुई सोफे पर बैठी थी। उसकी कुहनी के पास एक ट्राली पर बहुत से ड्रिंकर और बोतलें रखी हुई थीं। मेहमान के मना करने पर ध्यान न देते हुए उसने अपने पास लगी घण्टी को दबाने के लिए हाथ उठाया। उसकी कलाई पर बँधा चमकीला कंगन लैम्प की रोशनी में चमक रहा था। घण्टी सुनकर एक सफ़ेद यूनीफ़ार्म पहने एक नौकर धीरे-धीरे फ़र्श पार करते हुए मेहमान के पास आया और उसने उसका गिलास भरकर पेश कर दिया।

मेज़बान ने अपनी बात का क्रम ज़ारी रखते हुए कहा, ‘‘तो फिर आप समझिए, कि हमें बस इसी आपात्काल की ज़रूरत थी। शरारती लोग जेल में हैं। हमें विरोध पक्ष की कोई ज़रूरत नहीं है। अब देश सही तरह शासित हो रहा है। एक व्यक्ति आदेश देता है और कोई न तो मन्त्रिमण्डल में और न ही संसद में उसका विरोध कर सकता है। ज़ाहिर है व्यर्थ की देर और ऊहापोह से छुट्टी मिलेगी। हड़तालों पर रोक लग गयी है। व्यापार के लिए यह बहुत अच्छा अवसर है।’’

न्यूमन ने राष्ट्र द्वारा एक महीना पहले लगाये गये आपात्काल की स्वीकृति की उद्घोषणा करते हुए विशालकाय पट्टों और प्रधानमन्त्री के मुस्कानरहित कठोर चेहरेवाले पोस्टरों को शहर में देखा था उसके ऊपर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। चाहे गणतन्त्र में, या राजतन्त्र में या शेख़ो द्वारा शासित देश में, जहाँ भी वह रहा था, उसे अपने ठण्डे वातानुकूलित होटल के बाहर की दीवारों पर गहरे पोस्टर पेण्ट में नियमित रूप से लिखी घोषणाएँ दिखाई पड़ती थीं और ऐसे जश्नों का ऐलान मिलता था जो तख्ता पलटने के या पुराने मसीहा की वापसी या एक नये मसीहा के आविर्भाव के उपलक्ष्य में होता था। किसी भी गोलाबारी को क्रान्ति का दर्जा दिया जाता था चाहे उसमें परिवर्तन केवल एक सत्तारूढ़ गुट को हटाकर दूसरे गुट को स्थापित करना मात्र ही क्यों न हों।

 राजनैतिक उथल-पुथल से उसे अरुचि थी और राजनैतिक बयानबाजियों से उसे चिढ़ थी। मेज़बान देश में किसी प्रकार के विवाद से बचने में उसे कोई कठिनाई नहीं मालूम पड़ती थी। उसे केवल यही याद था कि नौकरशाही से काम कराने में सुभीता मिलना चाहिए, चाहे जिस प्रकार का शासनतन्त्र हो। और उसके मेज़बान ने उसे बताया कि ऐसा प्रबन्ध कर दिया गया है। न्यूमन एक यात्री था जो अल्प समय के लिए आता था, उसे अपना प्रवास बढ़ाने की इच्छा नहीं रहती थी। हाँ, कभी-कभी उसे प्राचीन काल के स्मृति चिह्नों के प्रति उत्सुकता अवश्य रहती थी, जैसे कोई अद्भुत भग्न प्रस्तर खण्ड, किसी मन्दिर का रत्न, पत्थर पर कारीगरी आदि ये ऐसे पारखी जनों की अभिरुचि वाली वस्तुएँ थीं जिनके पास समय रहता है और जो पेशेवर नहीं हैं। इतिहास और पुरातत्त्व का उसका ज्ञान जिसके लिए कभी उसे प्रचुर आकर्षण था, काफी समय से प्रयोग में न लाने के कारण अब धुँधला पड़ गया था। यह उसी तरह का था जैसे बहुत से अन्यविषयों में उसकी अभिरुचि अब पीछे छूट गयी थी, क्योंकि उनमें अब सुख का आर्थिक आधार नहीं मिल रहा था। अब चूँकि उसका यहाँ कार्य समाप्त हो गया था, वह वापस जाना चाहता था। कल प्रातःकाल उद्योग मन्त्रालय में हाल ही में तय किए गए द्विपक्षीय सहयोग की पुष्टि करने के लिए मीटिंग थी, जिसमें दस मिनट से अधिक नहीं लगना था। इस प्रकार वह कल रात की ओर प्रस्थान कर सकता था। भारत के मामलों के एक विशेषज्ञ ने उसे बताया था कि पहले विदेशी फर्मों का स्वागत करने का उत्साह नहीं था। और यह कि भारत में अपने संसाधनों और द्विपक्षीय सहयोग की शर्तों के प्रति बहुत संवेदनशीलता है और प्रस्तावों की मंजूरी में बहुत विलम्ब होता है।

यही बात संयुक्त निवेश के मामलों में भी थी। लेकिन आपातकाल लगने के बाद से बहुत आसानी हो गयी है। और इस परविर्तन से जो भी अभिप्राय समझा जाता हो, जहाँ तक हमारा सम्बन्ध है, यहाँ इनका भारतीय नियन्त्रण एवं स्वामित्व के प्रति रूख अब वैसा कठिन नहीं रहा। यद्यपि साझेदारी की शर्तें हम जैसी चाहते हैं वैसी नहीं हैं, फिर भी पहले की अपेक्षा अब प्रगति की गुंजाइश है। ऐसा कह सकते हैं कि बहुत विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यदि सौ में दो भी भारतीय हमारे उत्पादों का प्रयोग करें, तो एक मध्यम आकार से योरोपीय देश से बहुत बड़ा बाज़ार हमें मिल जाएगा।
तभी बिना बाँह की छींट के ड्रेस में एक महिला, जिसके बाल लाल रंग में रँगे थे, बड़ी शालीनता से कमरे में दाखिल हुई। ‘‘मि. न्यूमन, यह मेरी सास है,’’ मेज़बान की पत्नी से कहा।
वह उनका अभिवादन करने के लिए उठा और फिर बैठ गया।
‘‘मैं ऊपर अपने पति के साथ थी।’’ वह कठिनाई से अपने भारी शरीर को एक कुर्सी पर रखते हुए बोलीं।

शराब पेश करने का दौर फिर शुरू हुआ, लेकिन इस बार पुराने नौकर ने कई मिनट तक महिला के कान में सिर झुकाकर कुछ कहा जिससे यह लगा कि औपचारिक रूप से डिनर कब लगाया जाए इसकी बात नहीं हो रही है। वैसे भी वह गृहस्वामिनी नहीं थी; वह तो सोफे पर बैठी छरहरे बदन वाली महिला थी और स्वाभाविक रूप से अभी डिनर में घण्टों की देर थी। इसी बीच मेज़बान ने इस कानाफूसी को समाप्त कराते हुए नौकर को और बर्फ़ लाने का आदेश दे दिया।
‘‘मि. न्यूमन, मेरे पति ऊपर बीमार पड़े हैं।’’ उसकी ओर परेशान-सी नज़र डालते हुए सास ने कहा, ‘‘फालिज़ मारने के बाद से वह एकदम निश्चेष्ट हो गये हैं। डॉक्टर का कहना है कि राम या तो ठीक हो जाएँगे या शेष जीवन भर ऐसे ही रहेंगे।’’
न्यूमन को अंग्रेज़ी भाषा की विभिन्न विधाओं की जानकारी नहीं थी, लेकिन इस महिला के उच्चारण से उसे लगा कि वह अंग्रेज़ी की कॉकनी बोली थी। महिला ने गिलास से शराब का एक बड़ा घूँट पिया और एक सिगरेट जलाई।
मेज़बान ने गला साफ़ करते हुए कहा, ‘‘हम लोगों ने अब समझ लिया है कि व्यापार व्यापार है। प्रधानमन्त्री का बेटा ख़ुद कारोबार में है।’’
‘‘वह जनता के लायक कार बना रहा है’’, सोफ़े पर बैठी महिला ने कहा।
और अब जब आप मन्त्री जी से मिल चुके हैं, तो हमारी योजना बहुत शीघ्र आरम्भ हो जाएगी। कल मन्त्रालय में आपकी मीटिंग औपचारिकता मात्र है।’’

‘‘तो आप यहाँ व्यापार के सिलसिले में हैं, मि. न्यूमन ?’’ सास ने पूछा।
‘जी हाँ।’’
‘‘अरे कौन कहता है व्यापार केवल व्यापार है ! ऐसा कभी नहीं था। वह व्यापार के अलावा और भी बहुत कुछ है। आप समझ रहे हैं न ?’’
शान्ति और युद्ध के अन्तर का अब प्रश्न नहीं था, न ही दूरस्थ महाद्वीपों में साम्राज्य का झण्डा गाड़ने का प्रश्न था-अब यह अन्य प्रकार के आधिपत्य का मामला था। और अब ज़मीन पर कब्जा न करके समुद्री व्यापार पर कब्जा करने का प्रश्न था। लेकिन सास के दिमाग़ में सम्भवतः कुछ और था।
‘‘मेरे पति को व्यापार की समझ थी। उन्होंने दो बार शून्य से व्यापार आरम्भ किया-एक बार जब वह नौजवान थे, लेकिन वह बँटवारे के समय नष्ट हो गया।’’

‘‘इनका अभिप्राय 1947 के देश के बँटवारे से है।’’ मेज़बान ने स्पष्ट किया।
और फिर उन्होंने एक नया व्यापार आरम्भ किया। विश्वास मानिए, इसमें काफी परेशानी उठानी पड़ी। उनके पिता ने खच्चरों के कारवाँ का व्यापार शुरू किया। अपने गिलास में ध्यानस्थ-सा होते हुए उन्होंने कहा। आप सोच में पड़ गये न ? खच्चरों पर नकम लाद कर वह सीमा तक ले जाते थे, बदले में ऊन लाते थे। इसमें महीनों लग जाते थे। लेकिन इस व्यापार के रुपये से वह व्यापार में जम गये। उसी धन ने मेरे पति की शिक्षा-दीक्षा कराई, अपना स्वयं का व्यापार आरम्भ करने में सहायता दी; वह इंग्लैण्ड आये और मुझे मिले और..’’
‘‘माँजी, वह तिब्बत की सीमा थी। और यह बहुत पहले की बात है। तब से हम खच्चरों के काल से बहुत आगे बढ़ गये हैं।’’ बीच में बोलते हुए मेज़बान ने कहा।

‘‘मेरी बात मत काटो। आज जिसे तुम उद्यमिता या जो भी कहते हो, वह यही है न कि एक क्षण कोई कुछ नहीं हो और दूसरे क्षण एक उद्यमी और करोड़पति बन जाए ? एकाएक इतना धन कहाँ से आता है ? बल्कि महाराजा लोग अच्छे थे।’’
‘‘लेकिन माँजी, इन दोनों में क्या सम्बन्ध है ?’’
‘‘यह कि महाराजाओं की समृद्धि का रहस्य क्या था यह सर्विदित था।’’ अपनी बात पर आते हुए महिला ने कहा, ‘‘लेकिन व्यापार केवल व्यापार नहीं है। लाहौर में अपने पति की दुकान की तिजोरी के पास जाने से ही मुझे अन्दाज हो गया था। कि वह शून्य से भी अपना व्यापार जमा लेंगे...।’’

न्यूमन को बातचीत के शेष अंश की सुधि नहीं रही। वह कल्पना में खो गया कि इस महिला का गोरारंग, बाल की लाली और उसके वेश का नीलापन मिलकर यूनियन जैक जैसा चित्र उपस्थित कर रहे होते। लाहौर की स्मृति से महिला की आँखों में चमक आ गयी और होठों पर मुस्कान दौड़ गयी। न्यूमन को अचानक वह दृश्य नज़र आने लगा जब वह महिला कोमल और जवान रही होगी और यह अजीब लग रहा होगा कि वह एक ऐसे व्यापार को विज्ञापित कर रही है, जिसका स्रोत तिब्बत के सड़कों रहित घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर खच्चरों के कारवाँ में रहा हो।
सोफ़े पर बैठी महिला के कॉकनी अंग्रेजी से आतंकित होते हुए उसने कहा, ‘‘मम्मी ठीक कह रही हैं वह जन सम्पर्क और उसके महत्त्व की बात कर रही हैं।’’
‘‘नहीं मैं जन सम्पर्क की बात नहीं कर रही हूँ। मैं मनुष्यमात्र की बात कर रही हूँ। आप समझ रहे हैं न मि. ..
‘‘न्यूमन,’’ उसने जोड़ा।

‘‘मनुष्यमात्र। जो अब लगता है कि रहे ही नहीं।’ उसने उन दो को ग़ौर से देखते हुए कहा जो उसके परिवार थे और वह पुरानी स्मृतियों में खो गयी। अब मेरे ससुर जी को ही लो। उन्होंने अपने जीवन में कोई ठेका नहीं देखा। अँग्रेज़ी का एक शब्द भी नहीं बोल सकते थे। मकान के अपने भाग में कुर्सी मेज़ भी नहीं रखते थे। वह एक देहाती थे और जीवनभर वैसे ही रहे। जो भी उनसे व्यापार करना चाहता था। उसके साथ फर्श पर बैठता था-अंग्रेज़ी भी और उन्हीं के अनुसार चलता था। वे जानते थे कि वे किससे सौदा कर रहे हैं-ऐसे जो सही अर्थों में व्यापारी था और जो अपने व्यापार के संबन्ध में जो कुछ भी जानने योग्य था, जानता था। आज की तरह नहीं कि आपका व्यापार अपने आप हो रहा है और आप स्वयं उसके अनुचित लाभ का आनन्द उठा रहे हैं। और फिर कुछ व्यापार ऐसे हैं जो जादू की छड़ी जैसे हैं। आपने इतना कहा नहीं कि कौन प्रभावशाली व्यक्ति आपका अपना है, व्यापार आपके हाथ में होता है।’’


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