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अंग्रेजी-हिन्दी अनुवाद व्याकरण

सूरजभान सिंह

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :310
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2648
आईएसबीएन :81-7315-444-9

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यह पुस्तक अंग्रेजी और हिंदी संरचनाओं का एक तुलनात्मक व्याकरण है जो व्यतिरेकी विश्लेषण (contrastive analysis) पद्धति पर आधारित है।

Angregi Hindi Anuvad Vyakaran -A Hindi Book by Surajbhan Singh - अंग्रेजी-हिन्दी अनुवाद व्याकरण - सूरजभान सिंह

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भूमिका

यह पुस्तक अंग्रेजी और हिंदी संरचनाओं का एक तुलनात्मक व्याकरण है जो व्यतिरेकी विश्लेषण (contrastive analysis) पद्धति पर आधारित है। इसका मूल उद्देश्य अनुवादकों के लिए अंग्रेजी और हिंदी की संरचनाओं का ऐसा सरल और सर्वांगीण व्याकरण प्रस्तुत करना है जिससे वे दोनों भाषाओं की सहज अभिव्यक्तियों, मुहावरों, संरचना-नियमों और भाषा-व्यवहार के वास्तविक रूपों को समझ सकें और अनुवाद करते समय सही विकल्पों का चयन कर सकें। इस प्रकार यह पुस्तक दोनों प्रकार के अनुवादकों के लिए उपयोगी है-

वे जो अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करना चाहते हैं और दूसरे वे, जो हिन्दी से अंग्रेजी में अनुवाद करना चाहते है।
यह पुस्तक उन सामान्य छात्रों, अनुवाद प्रशिक्षार्थियों, अध्यापकों, पत्रकारों और भाषाकर्मियों आदि के लिए भी उतना ही उपयोगी है–जो हिन्दी का तो एक स्तर तक ज्ञान रखते हैं, लेकिन जिनकी पकड़ अंग्रेजी व्याकरण और मुहावरों पर बहुत कम है और जो अपने व्यावसायिक कार्यों के लिए अंग्रेजी के अपने ज्ञान को बढ़ाना या पुष्ट करना चाहते हैं। इस पुस्तक में दिए व्यतिरेकी विश्लेषण के निष्कर्षों के आधार पर द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी या हिन्दी पढ़ाने वाले अध्यापक या सामग्री लेखक भी इस पुस्तक की सामग्री का भरपूर उपयोग कर सकते है।

इस पुस्तक की अभिकल्पना एक अनुवाद व्याकरण (या ट्रान्सफर ग्रामर) के रूप में की गई है। अनुवाद व्याकरण से तात्पर्य एक ऐसे खास व्याकरण से है जो दो भाषाओं के व्याकरणों के साथ लेकर चलता है, उनके बीच समान और असमान संरचना की पहचान करता है, उनका तुलनात्मक विश्लेषण करता है और असमान्य संरचनाओं की पहचान करता है, उनका तुलनात्मक विश्लेषण करता है और उनके संभावित अनुवाद पर्याय तथा विकल्प सुलभ कराता है। इसलिए पुस्तक में भाषा अंगों को लेकर अंग्रेजी और हिन्दी की संरचनाओं का तुलनात्मक और व्यतिरेकी विश्लेषण किया गया है, जैसे-ध्वनि, लिपि, संज्ञा, सर्वनाम, विश्लेषण, क्रिया, पुरुष, वाच्य आदि।

व्यातिरेकी विश्लेषण (contrastive analysis) दोनों भाषाओं की समान संरचनाओं के बजाय उन संरचनाओं पर खास बल दिया जाता है जो एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, क्योंकि ये भिन्न और असमान तत्त्व ही अनुवाद कार्य या भाषा सीखने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं। इस विश्लेषण का उद्देश्य दो भाषाओं की समकक्ष संरचनाओं के बीच व्यतिरेक (contrast) स्पष्ट करना होता है।
हर अध्याय में सबसे पहले विवेच्य विषय की संकल्पना और उसका स्वरूप स्पष्ट किया गया है।

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