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मनोरंजक कथाएँ >> लालची गधा

लालची गधा

आनन्द कुमार

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :30
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2949
आईएसबीएन :00000

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इसमें 7 मनोरंजक कहानियाँ प्रस्तुत की गयी हैं .....

Lalchi Gadha-A Hindi Book by Anand Kumar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1. बुद्धिबल और एकता

एक छोटा-सा जंगल था। उनमें न कोई सिंह था, न भेड़िया, न हाथी और न भालू। बहुत-से छोटे-छोटे जानवर औऱ पक्षी उस वन में शान्तिपूर्वक रहते थे और स्वराज्य का सुख भोगते थे।
एक दिन एक हाथी कहीं से वहाँ आ पहुंचा। गरमी का मौसम था और दोपहरी का समय। हाथी प्यास से बेचैन था, वह पानी की खोज में इधर से उधर दौड़ रहा था। आस-पास कोई तालाब न देखकर, धूप से व्याकुल होकर वह एक पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। उस पेड़ पर एक गौरैया घोंसला बनाकर रहती थी। उस घोंसले में उसके अंडे थे। वह बड़े यत्न से उन अंडों की रखवाली कर रही थी। उसको आशा थी कि जल्दी ही उनमें से छोटे-छोटे बच्चे निकलेगें औऱ उसका कुल बढ़ेगा। गरीब गौरैया नहीं जानती थी कि पास ही यमराज का सिपाही—हाथी खड़ा है

हाथी ने सिर उठाकर ऊपर देखा, फिर भी गौरैया डरी नहीं । उसने सोचा कि उससे हाथी का क्या वैर और बिना वैर कोई किसी को क्यों सतायेगा। ! लेकिन यह उसकी भूल थी। हाथी स्वभाव-वश सूँड़ से पेड़ की डालियों को तोड़ने लगा। जब वह कई डालियाँ तोड़ चुका तब गौरैया को भय मालूम हुआ। उसने विनम्रता से कहा —श्रीमान्, इस पास की शाखा को न तोड़िये, इस पर मेरा छोटा-सा घर है, जिसमें मेरे अबोध बच्चे पल रहे हैं; दीनों पर दया कीजिये।

हाथी ने गरज कर कहा—अरी तुच्छ चिड़िया, चुप रह बलवान के सामने तेरे जैसे निर्बल जीव जीभ हिलाने का साहस नहीं करते। मालूम होता है, तुझे अभी हमारे बल का पता नहीं है। देख, अभी मैं इस पेड़ को उखाड़कर फेंक दूँगा। तेरा घर रहे या उजड़े इसकी मुझे चिन्ता नहीं है। हम सबल हैं, इसलिए जो मन में आता है, करते हैं।


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