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नारी विमर्श >> अकेला पलाश

अकेला पलाश

मेहरुन्निसा परवेज

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3064
आईएसबीएन :00-0000-00-0

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...पलाश लाख सुन्दर हो, सुन्दर फूल हों, पर उसमें सुगन्ध नहीं न ! उसे जूड़े में सजाया नहीं जा सकता, वह किसी भी गुलदस्ते की शोभा नहीं बन पाता, पलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और उसी पर मुरझाकर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। कितना कड़वा सत्य है, जिसे उसने आज जाना, अभी..इसी क्षण !!

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