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हास्य-व्यंग्य >> बहस बीच में

बहस बीच में

वीरेन्द्र जैन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3133
आईएसबीएन :81-8143-167-7

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व्यंग्य कहानियों का संग्रह

Bahas Beech Mein a hindi book by Virendra Jain - बहस बीच में - वीरेन्द्र जैन

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वीरेन्द्र जैन की व्यंग्य-विधा में अपनी अनुभव बहुलता का लाभ जरुर मिलेगा। आसपास के माहौल की प्रस्तुति करते हुए व्यंग्य-सृष्टि में वीरेन्द्र विषय-दर-विषय बदलते चलते हैं। जिंदगी का सच-झूठ परत-दर-परत खुलता चला जाता है और बीच-बीच में पाठक यह महसूस कर पाता है कि निराशा उसी के इर्द-गिर्द है। अपने व्यंग्यों में प्रजातांत्रिक देश की जनप्रतिनिधियों के घटिया रास्तों को बेनकाब करना ही नहीं, पाठक में यह सोच पैदा करना भी रचनाकार के मंतव्य है जिसके जरिये समूचे देश के मतदाताओं की आँखें खोली जा सकती हैं। वीरेन्द्र जोखिम उठाने से कतराए कहीं नहीं। उनका व्यंग्य गंभीर होने को मजबूर भी करता है।
‘सारिका’ में महेश दर्पण

वीरेन्द्र जैन अपने व्यंग्यों में सामाजिक-राजनैतिक हालातों को परखते, विश्लेषित करते और सच्चाइयों की तलाश करते नजर आते हैं। अपनी ओर से कुछ आरोपित नहीं करते, तटस्थ होकर दृष्टा बने रहते हैं। भाषा के लिए भी अतिरिक्त आग्रह नहीं है। सहज होकर स्वाभाविकता में रचना को चलने देते हैं। शब्दों की तलाश में भटकते नहीं। इसी कारण उनके व्यंग्यों में पैनापन उभरता है, तीखापन नहीं। शिल्प की दृष्टि से ये व्यंग्य कहानी के बहुत करीब हैं, बल्कि अक्सर पूरी कहानी बन जाते हैं।


आई नो, यू आर बिजनेसमैन सर। व्यापार करने के वास्ते इंडिया आया है सर। आने से पहले अपने कंजूमर की भाषा, आई मीन हमारी हिंदी सीखकर आया है सर। पर क्या है कि इधर इंडिया में रहते रहते अपन को इंगलिश में बात करने का हैबिट हो गया है सर। इंगलिश की हैल्प लिए बिना अपन अपनी बात किसी तक नहीं पहुँचाने को सकता सर। वह हमारी रोजमर्रा की भाषा है न सर, सो सॉरी सर, अपन आपको जो कुछ भी बताएगा, बोलेगा, उसमें इंगलिश का वर्ड जरूर आएगा सर।

आई होप सर, आप यह जानकर हैप्पी फील करेगा सर कि अपन आज भी आपकी भाषा और आपसे मिला अपन के देश नाम का इंडिया, दोनों को अपनी आइडेंटिटी का सिंबल मानता है। अपन को इंगलिश बोलने में और इंडियन कहलाने में प्राउडली फील होता सर। सच तो यह है कि सर आपकी भाषा और आप द्वारा दिए नाम को गले लगाए रखने से ही अपन को यह इलहाम हुआ कि आपके बिना अपन की गुजर नहीं सर।


पानी में मीन पियासी



गुड मार्निंग सर। ह्वेल कम इन इंडिया सर।
आई नो, यू आर बिजनेसमैन सर। व्यापार करने के वास्ते इंडिया आया है सर। आने से पहले अपने कंजूमर की भाषा, आई मीन हमारी हिंदी सीखकर आया है सर। पर क्या है कि इधर इंडिया में रहते-रहते अपने को इंगलिश में बात करने की हैबिट हो गया है सर। सर की हैल्प लिए बिना अपन अपनी बात किसी तक नहीं पहुँचाने को सकता सर। वह हमारी रोजमर्रा की भाषा है न सर, सो सॉरी, अपन आपको जो कुछ भी बताएगा, बोलेगा, उसमें इंगलिश का वर्ड जरूर आएगा सर।

आई होप सर, आप यह जानकर हैप्पी फील करेगा सर कि अपन आज भी आपकी भाषा और आपसे मिला अपन के देश का नाम इंडिया दोनों को अपनी आइडेंटिटी का सिंबल मानता है। अपन को इंगलिश बोलने में और इंडियन कहलाने में प्राउडली फील होता सर। सच तो यह है सर कि आपकी भाषा और आप द्वारा दिए नाम को गले लगाए रखने से ही अपन को यह इलहाम हुआ कि आपके बिना अपन की गुजर नहीं सर।

सो, एक बार फिर ह्वेल कम सर।
आई होप, आप लोगों की जर्नी फेंटास्टिक और कंफर्टेबुल रहा होगा। रहना ही हुआ न सर। आप साहबान अपनी ही एयरवेज की फ्लाइट से जो आया है।
हां, अपन की एयरवेज से आया होता तो थोड़ा हार्मफुल, डिफीकल्ट रहा होगा। यू नो, आई प्रामिस सर, हम आपका माफिक सब कुछ करना मांगता सर। करने को सकता सर। वी ट्राई सर। कोशिश जारी है सर। रियली ट्राई सर। अवर गवर्नमेंट आलसो एग्री एंड एनकरेज सर।

आई स्वे, कुछ अर्सा बाद जब आप जैसा जेंटलमैन इधर इंडिया आएगा न सर, तब अपन की एयरवेज में भी आपको कोई प्राब्लम नहीं होने का। अपन की बुहारा एयरवेज ने अभी हाल में स्टार्ट लिया है न सर इंटरनेशनल फ्लाइट का। सब प्राइवेटाइजेशन का कमाल है सर। क्या नायाब और यूजफुल तरीका सिखाया है अपन को आपने सर।
आप के मुल्कों से अपन के मुल्क में प्राइवेटाइजेशनिज्म क्या आया, अपन के देश का तो हर प्राब्लम सोल्ब हो गया। जिस किसी महकमे या इंडस्ट्री का प्राइवेटाइजेशन किया नहीं कि सारे झंझट खल्लास। लेबर प्राब्लम नो प्राब्लम। सरकार की जवाबदेही, नो प्राब्लम। पूंजी निवेश, नो प्राब्लम। लॉ एंड आर्डर, नो प्राब्लम। कोटा परमिट नो प्राब्लम घाटा, नो घाटा। प्रोफिट, प्रोफिट ही प्रोफिट।

कुछ मामलों में तो अपन की सरकार आपकी सोच से भी चार कदम आगे निकल गई सर। अपन के देश में आम शिकायत रहती है कि जन सुविधाएँ न होने से लोग इधर-उधर मल विसर्जन कर देते हैं। प्राइवेटाइजेशनवाद में आकंठ डूबी अपन की सरकार ने ऐलान कर दिया, जन सुविधाओं का प्राइवेटाइजेशन कर दो। अब हर सड़क पर इस देश की नब्बे फीसदी जनता के रिहायशी दड़बे से लाख गुना लकदक करते शौचालय बन गए हैं। टके दो और हल्के हो लो। पे करो और पेट खाली कर लो। जिसकी जेब खाली हो, बट नेचुरल उसका पेट तो पहले से ही खाली होगा, न हो तो, वह पेट चांपे फिरे। प्राइवेटाइजेशन को केवल जरूरतमंदों से नहीं बल्कि गाँठ के धनी जरूरतमंदों से सरोकार है।
तो देखा आपने, प्राइवेटाइजेशन होते ही अपन के देश में मूत्रालय तक पर पूँजी निवेश करनेवाले इनवेस्टर सामने आ गए। इनवेस्टर जानते हैं न सर कि बिना हगे-मूते किसी की गुजर नहीं।
इसी उपलब्धि पर आपका एकबार फिर स्वागत है सर।
ह्वेल कम इन इंडिया सर।

पर सर, आगे जाने से पहले आपको थोड़ा सिट करना पड़ेगा। इसी एयरपोर्ट के बाहर सिट करना पड़ेगा सर। बाहर जो बच्चा लोग आपको दिखाई दे रहे हैं न सर, वे आपका ह्लेल कम करेंगे सर। ये सुबह से इसी के वास्ते यहाँ स्टेंडप हैं सर। ये सब आप सबका ह्वेलकम करेंगे। गाना गाकर करेंगे सर।
यह इंडिपेंडेंट के बाद का अपन का नया रिचुअल है सर। यह आपके टाइम में नहीं होता था सर। पंडित नेहरू, यस सर, वही पंडित जे.एल. नेहरू जिसके वास्ते लेडी माउंटबेटन के दिल में कुछ कुछ होता था, उन्हीं पीजेएलएन ने यह रिचुअल स्टार्ट करवाया था सर। जब भी कोई परदेशी मेहमान अपन के मुल्क में आता था, तब वे उसके ह्वेलकम के वास्ते, स्कूलों के बच्चा लोग को सड़कों पर खड़ा करवाते थे। वह बच्चा लोगों को बहुत लाइक करते थे। बच्चा लोग भी उनको बहुत रेसपेक्ट देते थे। सर। उनको चाचा बोलते थे। सर अंकल सेम। तब का बच्चा लोग उनको अब भी याद करते हैं, सर, पर आई डाउट सर कि अब भी वे उन्हें रेस्पेक्टेवुली याद करते होंगे। बहुत शेमफुल बात है सर, पर आपके लिए होप बजाकर, झंडियाँ दिखाकर, गाना गाकर ह्वेलकम करता था। अपन भी जब स्कूल में था, ऐसा करने के वास्ते कई बार सड़क पर घंटों भूखा-प्यासा स्टेंडप हुआ था सर।

तो बच्चा लोग, हमारा गोरा गेस्ट आ गएला है। इनका ह्लेलकम करो। गाना गाकर करो। फूल देकर करो। तालियाँ बजाकर करो। पर खबरदार, झंडी दिखाकर मत करना। गेस्ट लोगों को आकवर्ड फील होने को सकता। अब क्विट इंडिया का जमाना नहीं है। कम इंडिया, होल्ड इंडिया, टेक इंडिया, टिक इंडिया, कैच इंडिया का जमाना है।
हाँ तो बच्चा लोगो, जैसा सिखाया गया था, रिहर्स कराया था, वैसा स्टार्ट लो।
वन टू थ्री...

आज यहाँ श्रीमान पधारे, आनंद अपरंपार,
आओ जी करें हम स्वागत शत-शत बार।
धन्य दिवस ये धन्य घड़ी है, आप यहाँ जो पधारे हैं
दर्शन पाकर हुए कृतारथ, छात्र ये हर्षित सारे हैं
समय सुहाना मिला ये हमको छाई अजब बहार।
आओ जी करें हम, स्वागत, शत शत बार।
आईटी प्रेमी, टेक्नोक्रेटी, दानी आप कहाते हैं
एमएनसी और निजीकरण के भूषण समझे जाते हैं
किस मुख से हम करें प्रशंसा नहीं समय अधिकार
आओ जी करें हम स्वागत शत शत बार।

तालियाँ।
हाँ तो बच्चा लोगो शाबास। गोरा गेस्ट खुश हुआ। अब तुम जाओ। जाकर टीचर जी से रिफ्रेसमेंट पाओ। फिर कोई फारनर गेस्ट आएगा, तो अपन फिर तुमको बुलाएगा।
चलो, हटो, अपन के गोरे गेस्ट लोगों को रास्ता दो। आइए, सर कम-कम, अँग्रेजी वाला कम सर, हिंदी वाला नहीं।
इधर देखिए सर, वह लग्जरी आप लोगों का वेट करती सर। इस बस से अपन आपको आगे के सफर पर ले जाएगा सर। अक्खा हिंदुस्तान, आई मीन इंडिया घुमाएगा सर।
इस बस में आप जैसा गोरा गेस्ट ही ट्रैवल करने को सकता सर। इसमें डर्टी इंडियन सफर नहीं कर सकता सर। इंडियन भला उस टॉयलेट को कैसे यूज करने को सकता सर। उसे तो टॉयलेट को भी स्लीपर क्लास के माफिक यूज करने का हैबिट ठहरा। फिर वह तो टॉयलेट में टॉयलेट की तरह सिट के बाद वाटर भी माँगता सर। इस टॉयलेट में वाटर नहीं होने का सर।

आपको क्या है सर, आई नो, आपको तो आफ्टर सिट ओनली पेपर की डिमांड होने का सर। पेपर की इधर में कोई कमी नहीं सर। अपन का तो पूरा कंट्री ही पेपर चल रहा होने का सर। छप्पन साल से बिरोबर चलता चला आ रहा है सर।
फिर अपन के वाटर की क्वालिटी भी तो डाउटफुल है न सर। रिफाइंड क्वालिटी का वाटर फिलहाल अपन के पास बहुत थोड़ा होने का सर। अपन बहुत हिफाजत और कंजूसी से उसको यूज करता है सर। किसी भी सभा काँफ्रेंस में जाकर आप जज कर सकता है सर कि अपन केवल मंचासीन पावरफुल लोगों के वास्ते बोतल बंद पानी मँगाता है सर। लिसनर पब्लिक को तो टेप वाटर भी कभी-कभार पीने को दे पाता है सर। अपन का थ्योरी है सर कि ऊपर वालों का हाजमा जरूर चंगा रहना चाहिए, वरना अपन के देश को इंटरनेशनली भिखमंगा कौन बताने को जाएगा ?
फिर वाटर का फंडा अइसा भी है सर, अपन आपको कांफिडेंसल फैक्ट बताता सर, कि वाटर से अपन को एलर्जी भी है सर। वाटर-वाटर सुनकर अपन का कान पक गएला है सर। जिसे देखो वही पानी-पानी चिल्लाता है।
अल्ला मेघ दे, पानी दे, रबानी दे।
बरसो राम झलाझलिया।

इस चीख पुकारा के बाद भी अपन का भाई लोग न तो किसी अवतार से वाटर पाया, न सरकार को शर्म से पानी-पानी कर पाया। हाँ इस सबके चलते अपन को और अपनी सरकार को वाटर लफ्ज से ही हेट जरूर हो गया। इसीलिए अपन ने और अपन की गवर्नमेंट ने इस शस्य-श्यामला कंट्री में वाटर नाम से बनने वाली फिल्म तक की शूटिंग नहीं होने दिया। अपन को शक था कि यदि वह फिल्म बन गई और जनता ने देख ली तो उसे भी और आप सबको भी वाटरफोमिया हो जाता।
छोटा मुँह बड़ी बात समझिएगा सर, अपन की सरकार, हाँ हाँ आप ही की नुंमाइंदा सरकार, वह तो मिस्टेक में अपन की कह गया सर, सो भी इस करके कि आपकी तरह वह कभी-कभार तो इस देश में विजिट करने को नहीं न आती, यहीं रहती है। दिखाई भले ही न देती हो, पर उसका जलवा, उसका भेजा जलजला तो हर कदम पर महसूस होता है न सर।

पानी की तरह बटोरे और आपके स्विस बैंकों में जमा करवाए उसके करोड़ों नोटों के बारे में भी कभी-कभी न्यूज पेपर के जरिए अपन को भनक लग ही जाती है। तब अपन उसका तो कुछ नहीं बिगाड़ पाते, अलबत्ता उन खबरों से अपन की यह समझ जरूर पुख्ता हो जाती है कि इस देश में कागज की, पेपर की कितनी कीमत है। जहाँ भी चलता है, पेपर चलता है, जो भी चलता है पेपर पर चलता है, पेपर पाने के लिए चलता है। सारी बहारें पेपर पर आती हैं, तमाम क्रांतियाँ पेपर पर लाई जाती हैं।

खैर, जो भी हो, पर इस सबके चलते अपन को कभीकभार ऐसी मिसअंडररस्टेंडिंग हो जाती है कि वह अपन की है। पर डोंट माइंड सर, हम बहुत जल्द अपन की मिस्टेक सुधार लेता है। आपने देखा ही है सर, जितनी बार अपन से यह मिस्टेक हुआ, अपन एब्री टाइम विदिन एक सेकेंड सुधार लिया। अपन की, माफ कीजिएगा फिर मिस्टेक हुआ, आई मीन आपकी सरकार हर समय, हर टीवी चैनल पर, तमाम सुपर स्टारों से यह कहलवा-कहलवा कर जनता जनार्दन को, यहाँ की पब्लिक को, आपके मिलियंस और विलियंस वुडवी कंजूमर्स को सिखा और रटा रही है कि वाटर नहीं माँगने का।

ये दिल माँगे मोर क्या पेप्सी।
ठंडा मतलब कोकाकोला।
हाँ, ठंडा मतलब कोकाकोला।
यू नो, बहुत बेकवर्ड और अनपढ़ पब्लिक है यहाँ की। हालाँकि अपन की सरकार ट्राई कर रही है कि वह इतनी लिट्रेड तो हो ही जाए कि मल्टीनेशनल कंपनीज के कंजूमर आइटमों के नाम पढ़ सके। इसके वास्ते प्राइमरी क्लासेज से ही अँग्रेजी कंपलसरी कर दी गई है। अब अपन के देश का ऐसा है सर कि बहुत-सा गार्जियन तो बच्चा लोगों को प्राइमरी तक भी नहीं। पढ़ाना माँगता, उसके पैदा होते ही उसे पेट पालना सिखाने लगता है। सरकार जान चुकी है कि पढ़ाई पर इतना भारी भरकम बजट खर्च करके भी एमएनसी का हित साधन क्यों नहीं हो पा रहा। इसीलिए सरकार ने अब प्राइमरी तक हर बच्चे की कोशिश और प्राइमरी स्टेंडर्ड से ही इंगलिश को अनिवार्य कर दिया है।

अब आप ही बताइए न सर, आपका यूएनओ, यूनीसेफ एजूकेशन के नाम पर इतना अनुदान, फंड अपन को दे और फिर भी यहाँ के कंजूमर को एमएनसी के प्राडक्ट का नाम तक पढ़ने में डिफीकल्टी हो, इसमें कौन सी तुक और ग्रेसफुल प्लानिंग वाली बात है ?

बुरा मत मानिएगा सर, यहाँ की सरकार की तरह यहाँ की पब्लिक भी थोड़ा देर से समझती है। समझने में थोड़ा एक्स्ट्रा टाइम लेती है। आप लोग जब जहाँ से गोन कर गए, उसके कई साल बाद तक यह यही समझती रही कि अभी भी आप ही यहाँ के राजा बहादुर हैं, लाट साहब हैं, अब, जब आप फिर से कुछ गेन करने यहाँ आ पहुँचे हैं, यहाँ के माई-बाप हो चुके हैं, खुद को अपन का वेलविशर ऐलान कर चुके हैं, तब भी यह पब्लिक अभी भी यही जानती-मानती आ रही है कि यहाँ आज भी उसी का राज है। उसी के वोट से इस देश के रखवाले चुने जाते हैं।
पर डोंट वरी सर, इसे जमीनी हकीकत समझनी होगी। समझेगी भी। यह समझ लेने में ही इसकी समझदारी है।
ओ हो, बातों-बातों में पता ही नहीं चला सर कि अपन के सफर का पहला पड़ाव कब आ गया।


।।दो।।



सर, आप लोग यहाँ अपनी आँखों यह देख सकेंगे कि सरकार सिर्फ विज्ञापनबाजी से अपन लोगों को वाटर माने पेप्सी और वाटर माने कोकाकोला नहीं रटा रही है, बल्कि आपके इन फेटास्टिक कोल्ड ड्रिंक्स को गाँव-गाँव तक, गले-गले तक पहुँचाने के लिए प्राण-पण से जुट चुकी है। सरकार ने तय किया है कि आपके देवलोक के ये शीतल पेय अपन के तमाम नारकीयों के गले में उतारने के लिए वह हर संभव-असंभव कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी। इसके राज में सभी इनका पान करके अपने देवता के समान नीलकंठ हो सकेंगे। नहीं चाहती कि विषपान की हमारी प्राचीन और उपयोगी परंपरा विनष्ट हो। इसके उलट सरकार चाहती है कि इस समतावादी समाज में नीलकंठ बनने का अवसर सबको सुलभ हो। जो अवसर अपन की नदियाँ, कुएँ, अपने वाटर से सुलभ नहीं करा सके, वह पेप्सी, कोकाकोला सुलभ कराए। नीलकंठ होना केवल सवर्णों की, उच्च वर्गों की सनक और बपौती न रहे।

एक्सक्यूजमी सर, मेरी बात पर गौर कीजिएगा सर। ये जो आपके सामने दूर तक पसरा पड़ा है, यह केरल के पालक्काड जिले का प्लाचिमड़ा गाँव है सर।
यह क्या सर ? आपके चेहरे पर स्माइल ? वह भी भेदभरी। खुशी की तो नहीं है सर। खुशी की मुस्कान तो अपन तुरंत पहचान लेता है सर। बहुत रेयरली नजर आती है न सर। बुजुर्ग लोग कहते हैं, वंस अपान एक टाइम, जब आप लोग नया-नया क्विट इंडिया करके गया था, तब हर किसी के चेहरे पर खुशी की मुस्कान देखी गई थी। फिर तो जैसे-जैसे आप लोगों का फिर से कम इन इंडिया हुआ, अपन का देसी लोग चेहरे पर केवल खिसियानी मुस्कान लाने के काबिल रह गया। आप सर लोग भी खुश दिल वाली नहीं, भेदभरी मुस्कान के साथ अपन की कंट्री में फिर से एंट्री लिया। अपन की हर बात पर, हर चीज पर आप जैसा ड्रीमलैंड का वासी जब भी तवज्जो देता नजर आता है, अपनी स्किन पर ससपीसियस स्माइल ला पाता है।

सर, आप लोग ऐसा क्यों करता है ? क्या अपन ने आपसे झूठ बोला कि यह गाँव है ? नो सर, यू विलीव मी सर। यह विलेज ही है सर। रियल इंडियन विलेज।
अपन समझ गएला है सर कि आप लोग किस चीज को देखकर भेदभरी मुस्कान बिखेरा। उस चीज को अपन ने भी देखा सर। उसे देखने के बाद भला कौन कहेगा कि यह एक हिंदुस्तानी गाँव है ? इंडियन विलेज में इतनी सुंदर इमारत का होना नामुनकिन। वह भी वैस्टर्न पैटर्न की ? कतई इमपोशिबल।
यू आर राइट सर, एब्सील्यूटली राइट पर, आलवेज राइट सर। पर वह तो आईलैंड है सर। एक टापू कह सकते हैं और उसको। वह इस गाँव में है तो, पर सर, इस गाँव का हिस्सा नहीं है। हो भी नहीं सकती सर। नेवर। हाँ, एक दिन यह गाँव जरूर इसका फास्ट मूड हो के रहेगा। फिर सर, अपन आपको यही इमारत और इसका जलवा दिखाने के वास्ते तो यहाँ लाया है।

यू नो, आई नो, बोथ अस नो सर कि आप जैसा साहब बहादुरों ने इंडियन गवर्नमेंट को इशारा किया, ताकीद की कि जो भी करो, ऐसा करो, जिसमें यह स्टोरिटी रहे कि जिस पदार्थ का उत्पादन किया जाएगा, वह उत्पादित होगा ही।
अपन की सरकार ने इस नेक सलाह को सिर माथे लिया। आपकी एनएनसियों से गुहार की कि अपन का देश तो कृषि प्रधान देश ठहरा, सो खेती के बारे में तो अपन जानते हैं कि उसका उत्पादन करने पर वह उत्पादित होगी ही, यह तय नहीं रहता। इसलिए खेती तो हम मुनादी करके बंद करवा देंगे। अनाज का क्या है, वह तो सात समुंदर पार से भी मँगाया जा सकता है। उधार में, भीख में। अलबत्ता खेती की जगह ऐसी किसी चीज का उत्पादन किया जाए जो इसी जमीन पर भी हो सके और जिसमें यह गारंटी भी हो कि उसका उत्पादन करने पर हर हाल में वह उत्पादित होगी ही, वह हमें तो पता नहीं, लिहाजा आप ही आओ और उस प्रोडक्ट का प्रोडक्शन शुरू कर दो।
तो सर, यह ऑफर और जिम्मेदारी सिर पर आ पड़ने पर, अपन की सरकार से डील तय हो जाने पर, आपकी एमएनसी ने यहाँ यह प्लांट लगाया।

हाँ तो सर लोगों, यह जो इमारत और प्लांट आपकी नजरों के ऐन सामने है, यह सब मल्टीनेशनल कंपनी कोकाकोला की प्रोपर्टी है। इस गाँव की चालीस एकड़ जमीन घेरकर इन्हें बनाया गया है। इस जमीन पर पहले खेती होती थी। जमीन तो उपजाऊ थी, पर यू नो सर, उस खेती में से कुछ जानवर चर जाते थे, कुछ पंछी-पखेरू चुग जाते थे, कुछ आदमी खा पाता था। कभी-कभी वह होती भी नहीं थी। कभी ज्यादा पानी गिरा तो नहीं हुई, कभी गिरा ही नहीं, तब भी नहीं हुई।
अब सरकार और एमएनसी कोकाकोला के कोलोब्रेशन से यह झंझट सदा-सदा के लिए दूर हो गया। फसल होगी या नहीं होगी, यह अंदाज ने के लिए बादलों की तरफ निहारना पानी बरसाने या न बरसाने के लिए किसी देवता से गुहार करना अब गुजरे जमाने की बात हो गई।

शॉफ्ट ड्रिंक अपन के गले में उतारकर हाई कैश आपके गले में बटोरने वाली इस एमएनसी ने सरकार को भरोसा दिलाया था कि कोकाकोला का उत्पादन करने पर कोकाकोला शर्तिया उत्पादित होगी। यह एक जरूरी और सबके उपभोग का पेय पदार्थ ठहरा। खेती का तो सिर्फ ऐसा ही नहीं कि हुई तो हुई, न हुई तो न हुई, बल्कि ऐसी भी है कि जरूरत हुई गेहूँ की, हो गया चावल। डिमांड हुई चने की, खेत ने उगल दी उड़द। अब गेहूँ भोजी चावल का क्या करे, और भात भोजी के लिए गेहूँ का होना न होना यूजलैस।

और कोकाकोला। वह तो सबकी है, सबके लिए है, मल्टीपरपज है। इतनी ताजा पवित्र और पावन कि चाहो तो मरणासन्न के मुँह में गंगा जल की जगह दो बूँद डाल दो। बहुत मुमकिन है कोक मिल जाने पर वह अपना मरना मुल्तवी कर दे।
हर मौके पर रंग, कोकाकोला के संग।
हाँ भई, जरा ठंडा देना। ठंडा-मतलब कोकाकोला।

जब से प्लांट लगा है, तभी से कहता दिख रहा है हमारा वह सुपर स्टार, जो हमें लगान के बहाने नकली क्रिकेट मैच दिखाकर आस्कर दिलाने चला था। नहीं दिला सका, कोई गम नहीं। वैसे कितने फख्र की बात होती, अगर अपन के पास भी एक आस्कर होता। पेप्सी, कोकाकोला और आस्कर। अहा। कैसी मनोहारी त्रिमूर्ति होती। खैर जी, आस्कर पर डालो मिट्टी, जब हम जैसे करोड़ो दर्शकों की जरूरत पेश आएगी तब आपके हालीवुडियों को झख मारकर हमें आस्कर देना ही पड़ेगा। जैसे अपने कास्मैटिक्सों की सेल परमोट करने के लिए हमारी हाफ वजन सुकुमारियों को मिस वर्ल्ड, मिस यूनिवर्स, मिस अर्थ के मुकुट पहनाए। हाल-फिलहाल यह भी तो कोई कम बड़ी एचीवमेंट नहीं कि इसी बहाने अपन का सुपर स्टार अपन की जुबान में, अपन के ही लिबास में, पर्दे पर बार-बार आ-आ कर अपन को, अपन के पूरे मुल्क को, अपन की पूरी जनता को, आप के तमाम संभावित उपभोक्ताओं को रात-दिन यह रटाता दिखाई देने लगा है कि ठंडा-मतलब कोकाकोला। बोल तेरे कितने बाप जी पाँच। काश वह यह भी खुलासा कर देता कि पाँच कौन ब्रिटेन, अमेरिका, फ्राँस, जर्मनी, इटली या कोई और ?

तो जैंटलमैन, हम इस समय केरल के जिला शहर पाल्लकाड से राउंड अवाउट थर्टी किलोमीटर अंदर खड़े हैं, यह जो कोकाकोला का हैली और ह्यूज प्लांट आप देख रहे हैं, इस प्लांट में सत्तर स्थायी और डेढ़ सौ अस्थायी कर्मचारी रोजगार पाए हुए हैं। भला, भारत के किसी गाँव में इतने लोग बारोजगार हो सकते हैं ? नहीं, नहीं, नहीं। जब तक किसी एमएनसी के कदम वहाँ न पड़ें, तब तक कतई नहीं।

इस हिसाब से गाँवों के लिए एमएनसी का आना तो शुभ ही हुआ न। पर ये गाँव वाले ठहरे नामसझ। न ये बदलाव को आसानी से पचा पाते हैं, न अपने हितू को पहचान पाते हैं।
जिन लोगों को इस प्लांट के आसपास देखकर आप लोग मुँह बिचका रहे हैं न सर, ये सब उसी किस्म के लोग हैं। पर आप इनकी परवाह कतई न करें। ये थोड़े ही दिन के मेहमान हैं। अगली बार जब आप यहाँ विजिट, करेंगे, तब इनमें से एक भी नामुराद चेहरा आपकी ग्लोबल आँखों के सामने नहीं आने का।



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