सांस्कृतिक >> वंश वृक्ष वंश वृक्षभैरप्पा
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जीवनगत निर्णयों के उद्दाम स्त्रोतों से प्रस्फुटित कई जीवन लीलाओं के तटों को निर्धारित और ध्वस्त करती इस कथा में लेखक के द्वंद्वों को स्वर देने का काम उसके नायक करते हैं तथा मानो यह सब घटित होते हैं पाठक के साथ। कृति, कृतिकार और पाठक के त्रिकोण का यह अंतरंग संबंध ‘वंशवृक्ष’ की एक अन्य तथा अन्यतम उपलब्धि है।
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