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कहानी संग्रह >> दो अँगूठियाँ

दो अँगूठियाँ

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : सुरभि प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3288
आईएसबीएन :978-81-905547-6

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मंडप की तरह छाई हुई लता से एक फूल तोड़कर उसे छिन्न-भिन्न करते हुए पुरंदर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें दुबारा नहीं बुलाऊँगा। मैं दूर देश जा रहा हूँ, इसीलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है।’’

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