कहानी संग्रह >> दो अँगूठियाँ दो अँगूठियाँबंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
|
364 पाठक हैं |
मंडप की तरह छाई हुई लता से एक फूल तोड़कर उसे छिन्न-भिन्न करते हुए पुरंदर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें दुबारा नहीं बुलाऊँगा। मैं दूर देश जा रहा हूँ, इसीलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है।’’
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book