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शिक्षा तथा लोक व्यवहार

महर्षि दयानन्द सरस्वती

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :68
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3414
आईएसबीएन :9789380631080

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शिक्षा तथा लोक व्यवहार संबंधी पुस्तक....

Shiksha Tatha lok Vyavahar - A Hindi Book by Maharishi Dayanand Saraswati

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भूमिका

मैंने इस संसार में परीक्षा करके निश्चय किया है कि जो धर्मयुक्त व्यवहार में ठीक-ठीक बरतता है उसको सर्वत्र सुख, लाभ और जो विपरीत बरतता है वह सदा दुखी होकर अपनी हानि कर लेता है। देखिए, जब कोई मनुष्य विद्वानों की सभा में वा किसी के पास जाकर अपनी योग्यता के अनुसार नम्रतापूर्वक ‘नमस्ते’ आदि करके बैठके दूसरे की बात ध्यान से सुन, उसका सिद्धांत जान, निरभिमानी होकर युक्त उत्तर-प्रत्युत्तर करता है, तब सज्जन लोग प्रसन्न होकर उसका सत्कार और जो अंडबंड बकता है उसका तिरस्कार करते हैं।

जब मनुष्य धार्मिक होता है, तब उसका विश्वास और मान्य शत्रु भी करते हैं और जब अधर्मी होता है, तब उसका विश्वास और मान्य मित्र भी नहीं करते। इससे जो थोड़ी विद्या वाला भी मनुष्य श्रेष्ठ शिक्षा पाकर सुशील होता है, उसका कोई भी कार्य नहीं बिगड़ता।

इसलिए मैं मनुष्यों को उत्तम शिक्षा के अर्थ सब वेदादिशास्त्र और सत्याचारी विद्वानों की रीति से युक्त इस ग्रंथ को बनाकर प्रकट करता हूँ कि जिसको देख-दिखा, पढ़-पढ़ाकर मनुष्य अपने और अपनी संतान तथा विद्यार्थियों का आचार अत्युत्तम करें, कि जिससे आप और वे सब दिन सुखी रहें।

इस ग्रंथ में कहीं-कहीं प्रमाण के लिए संस्कृत और सुगम भाषा और अनेक उपयुक्त दृष्टांत देकर सुधार का अभिप्राय प्रकाशित किया, जिसको सब कोई सुख से समझ अपना-अपना स्वभाव सुधार, उत्तम व्यवहार को सिद्ध किया करें।

- दयानन्द सरस्वती

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