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जीवनी/आत्मकथा >> गुरु नानक देव

गुरु नानक देव

गिरिराजशरण अग्रवाल

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3468
आईएसबीएन :81-288-0376-x

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गुरु नानक देव के जीवन पर आधारित पुस्तक....

Guru Nanak Dev

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


भारतवर्ष में गुरु और शिष्य की परम्परा बहुत प्राचीन है। गुरु का स्थान परमेश्वर से भी ऊंचा माना गया है। गुरु के द्वारा ही व्यक्ति को सांसारिक ज्ञान प्राप्त होता है और गुरु के द्वारा ही उसे इस ज्ञान का बोध होता है कि किस प्रकार परमेश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। संत और भक्ति साहित्य हमारे देश की अमूल धरोहर है। यह साहित्य एक ओर हमारे भविष्य और हमारे जीवन का आधार है तो दूसरी ओर भौतिक जगत् के द्वन्द्वों,संघर्षों, द्वेषों और संतापों के बीच एकता,मित्रता, सहजता और सहिष्णुता का संदेश प्रदाता है। साधना में रत और भक्ति-रस में निमग्न संत एवं भक्त कवि केवल मोक्ष, ब्रह्म, माया, आत्मा और परमात्मा के स्वरूप का ही गायन नहीं करते रहे, उन्होंने जीवन और जगत् के विविध बिन्दुओं का स्पर्श किया मानव को नई संकल्प शक्ति,कर्तव्यनिष्ठा एवं सदमार्ग के अनुगमन का उपदेश भी दिया।

गुरु नानक का जन्म


गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल, सन् 1469 को तलवंडी नगर के प्रधान पटवारी मेहता कालूराय बेदी के यहां हुआ था। मेहता कालूराय बेदी तलवंडी के शासक राम दुलार के प्रधान पटवारी थे। वे उनके बहुत खास विश्वासपात्र लोगों में से थे। इस कारण मेहता कालूराय के घर में किसी तरह का अभाव नहीं था। उनका परिवार एक संपन्न परिवार माना जाता था।
यह युग मुगल बादशाह बाबर का था। बाबर के शासन काल में मुसलमान शासक हिंदू प्रजा पर बड़ा अत्याचार करते थे। उनके जुल्मों से हिंदू जनता त्राहि-त्राहि कर उठी थी। सर्वत्र अज्ञान का अंधकार फैला हुआ था। धार्मिक आस्थाओं को जबरन खंडित किया जा रहा था और हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनने के लिए विवश किया जाता था।
ऐसे समय में जनोद्धार के लिए ही गुरु नानक ने इस धरती पर माता तृप्ता की कोख से जन्म लिया। जिस स्थान पर नानक का जन्म हुआ, उसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। नानक के जन्म पर विद्वान पंडित गोपालदास ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था—‘यह बालक ईश्वर का अवतार है, जो जगत के कल्याण हेतु पृथ्वी पर आया है।

गुरु नानक का लालन-पालन


प्रधान पटवारी मेहता कालूराय बेदी के घर में बालक नानक का लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार से होने लगा। नानक के जन्म से पहले माता तृप्ता ने एक पुत्री को जन्म दिया था। उसका नाम नानकी था। बहन के वजह से ही उसके भाई का नाम नानक पड़ा था। जबकि बहन का नाम उसके ननिहाल में रहने के कारण नानकी पड़ा था। बड़ी बहन नानकी अपने छोटे भाई नानक का बहुत ध्यान रखती थी। दोनों भाई-बहन में बड़ा स्नेह था। खेल-कूद में बड़ी बहन नानकी उन्हें सदैव अपने साथ रखती थी। आस-पास के बच्चे दोनों भाई-बहन के साथ खेलने आ जाते और परस्पर बड़े प्रेम-भाव का व्यवहार करते। बचपन से ही सत-करतार (ईश्वर ही सत्य है) का मधुर वचन नानक के मुख से प्रायः निकला करता था। इसका भाव यही था कि जिस परमात्मा ने हमें जन्म दिया है, वही सच्चा है, बाकी सब झूठ है।

नानक की शिक्षा-दीक्षा


नानक जब पांच वर्ष के हुए तो उनके पिता उन्हें पण्डित गोपालदास पांधे के यहां विद्या प्राप्त करने के लिए भेजा। नानक की योग्यता को परखकर पण्डित गोपालदास को बहुत प्रसन्नता हुई। पण्डित जी बड़े मनोयोग से बालक को पढ़ाने लगे।
एक दिन पण्डित जी ने नानक से ॐ (ओऽम्) शब्द का उच्चारण करने के लिए कहा। नानक ने ॐ शब्द का उच्चारण तो किया, परंतु उसने पंडित जी से इस शब्द का अर्थ भी पूछ लिया।

बालक नानक के मुख से प्रश्न सुनकर पंडित जी सकपका गए। उन्हें हैरानी इस बात से हुई कि इस छोटे से बालक के मन में यह जिज्ञासा क्योंकर हुई ? पण्डितजी ने तत्काल बालक की जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा, ‘‘नानक ! ॐ सर्वरक्षक परमात्मा का नाम है।’’ इस पर नानक ने कहा, ‘‘पण्डितजी ! मेरी मां ने परमात्मा का नाम ‘सत-करतार’ बताया है। वे कहती हैं कि सत करतार ही हमारा सिरजनहार है। वही सच्चा परमात्मा है।’’

पण्डित जी ने कहा, ‘‘नानक ! परमात्मा को हम अनेक नामों से पुकारते हैं। सत करतार और ॐ का अर्थ एक ही है।’’
बालक की कुशाग्र बुद्धि से प्रभावित होकर पण्डित जी ने प्रधान पटवारी से कहा, ‘‘मेहता जी ! आपका पुत्र अत्यधिक मेधावी है और ज्ञानवान है। मेरे पास उसे देने के लिए कोई ज्ञान शेष नहीं है।’’

पण्डित जी की बात सुनकर मेहता कालूराय ने अपने पुत्र नानक को फारसी भाषा की शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक मौलवी साहब के पास भेजा। मौलवी साहब नानक को फारसी पढ़ाने लगे।
एक दिन मौलवी साहब ने नानक से अलिफ शब्द बोलने के लिए कहा। इस पर नानक ने मौलवी साहब से ‘अलिफ’ का अर्थ पूछा। मौलवी कुतुबुद्दीन बालक के प्रश्न से चकरा गए और इधर-उधर देखने लगे।

तब नानक ने फारसी भाषा के माध्यम से ‘अलिफ’ का अर्थ बताते हुए कहा, ‘‘मौलवी साहब ! अलिफ एक ईश्वर को अर्थात् एक करतार को कहते हैं। फारसी में एक अल्लाह या खुदा को अलिफ कहा जाता है।’’
मौलवी साहब उसी दिन मेहता कालूराय के पास गए और बोले, ‘‘मेहता ! तेरा बेटा तो खुदा का रूप है। मैं इसे क्या पढ़ाऊंगा, यह तो सारी दुनिया को पढ़ा सकता है।

यज्ञोपवीत संस्कार का विरोध


इस प्रकार बालक नानक के ज्ञान की चर्चा बचपन में ही चारों ओर फैलने लगी थी। उनके जीवन की कितनी ही विलक्षण और चमत्कारिक घटनाओं ने लोगों को चमत्कृत करना आरंभ कर दिया था। लोगों को विश्वास होने लगा था कि कालूराय मेहता के घर में नानक के रूप में भगवान ने अवतार लिया है।

उन दिनों हिंदू घरों में बालक के यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात शरीर पर जनेऊ धारण करने का प्रचलन बहुत अधिक था। नानक को भी जनेऊ धारण कराया जाना था। कालूराय मेहता ने संस्कार का आयोजन किया और बिरादरी लोगों को न्योता देकर बुला भेजा। परंतु नानक ने जनेऊ पहनने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें जनेऊ के धागों पर विश्वास नहीं है। गले में सूती धागे डालने से मन पवित्र नहीं होता। मन को पवित्र करने के लिए अच्छे आचरणों की जरूरत होती है। उन्हें तो ऐसा यज्ञोपवीत चाहिए, जो दया की कपास, संतोष के सूत, जप की गांठ और सत्य के लक्ष्य से बंटा गया हो।

बालक की दृढ़ता देखकर सभी लोग चकित रह गए और नानक की प्रशंसा करने लगे।
झूठे आडंबरों से चिढ़
नानक को सभी झूठे आडंबरों से चिढ़ थी। वे जान गए थे कि बालक के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक ब्राह्मणों के कितने ही ऐसे कर्मकाण्ड बनाए हुए थे, जिनके द्वारा उनकी स्वार्थपूर्ति होती थी, गरीब लोगों के लिए उनकी मांगें पूरी करना संभव नहीं हो पाता था। अमीर और समृद्ध लोग जरूर उनकी मांगे पूरी कर दिया करते थे। वे सब तरह से उन्हें भयभीत किया करते थे और अपना उल्लू सीधा किया करते थे। निर्धन लोगों पर उन्हें जरा भी दया नहीं आती थी।
ऐसी दशा देखकर नानक का हृदय आहत हो उठा। उन्होंने इस प्रकार के कर्मकाण्डों का विरोध करने का बीड़ा उठा लिया। उन्होंने सभी लोगों को बताया कि ईश्वर एक है, जो सत करतार है। वह सभी को समान भाव से देखता है और सभी का भला करता है। मनुष्य अपने दुष्कर्मों के कारण ही दुख भोगता है। इन कर्मकाण्डों से किसी का भला होने वाला नहीं है। नानक के इस विरोध से ब्राह्मण उनके विरोधी हो गए, लेकिन अनेक लोग उनकी विचारधारा से जुड़ते चले गए।

बचपन का साथी मरदाना


नानक का बचपन का साथी मरदाना मुसलमान था। वह आंखें मूंदकर नानक पर विश्वास करता था और दुख-सुख में हर समय उसके साथ रहता था। उसे रबाब बजाने का बड़ा शौक था। वह नानक के उपदेशों को रबाब के सुरों के साथ गाकर लोगों को सुनाया करता था। भाई मरदाना जीवन भर नानक के साथ रहा। नानक जहां भी जाते, भाई मरदाना उनके साथ जाता था।

बचपन से ही नानक एकांतप्रिय थे। बालक नानक की उदासीनता देखकर उनके पिता ने उन्हें गाय-भैंस चराने के लिए काम पर लगा दिया। नानक अपने मित्र भाई मरदाना के साथ पशुओं को लेकर जंगल में चले जाते। पशुओं को चरने के लिए छोड़कर पेड़ के नीचे जा बैठते और ध्यानमग्न होकर ईश्वर का भजन गाते रहते। भाई मरदाना उनके भजन के साथ रबाब के सुर छेड़ देता। दोनों ने ‘सत करतार’ के रहस्य को प्रकृति के मध्य बैठकर अच्छी तरह से समझा और जाना।
नानक पर सर्प की छाया

एक दिन नानक ‘सत करतार’ के ध्यान में डूबे एक पेड़ के नीचे लेट गए। कुछ देर में ही उन्हें गहरी नींद आ गई। मित्र मरदाना उन्हें सोता देखकर पशुओं को चराने उनसे दूर ले गया। वह नहीं चाहता था कि पशुओं के कारण उनकी नींद में खलल पड़े या उनका ध्यान टूटे।
कुछ देर बाद बालक नानक के चेहरे पर धूप पड़ने लगी। उसी समय एक सफेद रंग का बड़ा सर्प वहां आया और अपना फन इस तरह से फैला कर खड़ा हो गया कि धूप नानक के चेहरे पर न पड़ सके। जब तक धूप पड़ती रही, वह सर्प अपना फन फैलाए इधर-उधर सरकता रहा।

उसी समय नगर का शासक राय बुलार घोड़े पर सवार अपने कारिंदे के साथ उधर से निकला। उस दृश्य को देखकर दोनों ठिठककर खड़े हो गए। बुलार ने अपने कारिंदे से कहा, ‘‘देखो, यह बालक कोई साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर यह बालक या तो सम्राट बनेगा या फिर कोई महान संत।’’
‘‘आप ठीक कहते हैं धनी।’’ कारिंदा बोला।
‘‘पता लगाओ, यह किसका बालक है ?’’ राय बुलार ने कारिंदे को आदेश दिया और घोड़े को एड़ लगाकर वहां से चला गया।
राय बुलार के दरबार में चर्चा

राय बुलार अपने घर लौटा तो उसने उस अद्भुत दृश्य के बारे में लोगों से बताया। उसकी बात सुनकर लोग आश्चर्य से एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। तभी कारिंदे ने आकर बताया, ‘‘धनी ! आपके वहां से हटते ही उस बालक की नींद टूट गई। उसी समय सर्प वहां से सरककर झाड़ियों में चला गया। मैंने उस बालक का पता लगाया तो पता चला कि वह अपने प्रधान पटवारी मेहता कालूराय बेदी का बेटा है। उसका नाम नानक है और वह चमत्कारी बालक ‘सत-करतार’ का परम भक्त है।’’
‘‘धनी ! ऐसे बालक को तो बुलाकर बात करनी चाहिए।’’ उन दरबारियों में से एक ने कहा।
‘‘तुम ठीक कहते हो।’’ राय बुलार ने कहा-‘‘ऐसे चमत्कारी बालक से मिलकर मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। उचित अवसर पर मैं उसे जरूर बुलाऊंगा।

राम की चिड़िया राम के खेत


एक दिन की बात है कि नानक अपने मित्र मरदाना के साथ पशुओं को चराने जंगल में गए। वहां उन्होंने पशुओं को खुला छोड़ दिया। वे स्वयं मरदाना के साथ एक पेड़ के नीचे बैठ गए। पास में ही किसानों के खेत थे, जिनमें फसलें लहलहा रही थीं। बेलगाम पशु उन किसानों के खेतों में घुस गए और फसलों को नष्ट करने लगे।
बालक नानक ने देखा कि सैकड़ों चिड़ियाएं पकी फसल को चट करने में लगी हैं। उन्हें रोकने वाले किसान भी पास में नहीं हैं। उन्होंने शायद यही समझा कि नानक और मरदाना तो यहां पर बैठे ही हैं, इसलिए वे किसी काम से वहां से चले गए थे।
चिड़ियाओं का चहचहाना देखकर नानक उस अद्भुत् दृश्य में खो गए और बोल पड़े

‘राम की चिड़िया राम के खेत।
खालो चिड़िया भर-भर पेट।।


कुछ देर बाद किसान जब वापस लौटे तो अपने खेतों की हालत देखकर क्रोध में भर गए और पशुओं को लट्ठ मारकर खेतों से भगाने लगे। नानक का हृदय द्रवित हो उठा। वे चिल्लाए, ‘‘मरदाना ! रोको उन्हें। निरीह पशुओं को इस प्रकार मारना ठीक नहीं है।

राय बुलार से नानक की शिकायत


अपने खेतों में खड़ी फसल की बरबादी देखकर किसान पहले तो नानक और मरदाना पर बहुत बिगड़े और उन्हें खूब बुरा-भला कहा। इस पर भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो वे राय बुलार के पास नानक की शिकायत करने जा पहुंचे।
‘‘धनी ! देखिए नानक ने अपने पशुओं से हमारी फसलें चौपट करा दीं हैं। हमारे वहां न रहने पर उसने हमारी सारी फसल चिड़ियों को खिला दी है।’’

उनकी शिकायत सुनकर राय बुलार ने नानक के पिता मेहता कालूराय बेदी को बुलवाया और कहा, ‘‘मेहता ! तुम्हारे पुत्र के कारण इन किसानों का बड़ा भारी नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई तुम्हें करना होगी।’’
उसी समय अपने मित्र मरदाना के साथ नानक भी वहां आ पहुंचे और बोले, ‘‘धनी ! किसानों से कहो अपना खेत काट लें। इन्हें अपने खेतों में जितने अनाज की उम्मीद हो, उससे जितना कम अनाज हो, उसकी भरपाई हम कर देंगे।’’
राय बुलार ने किसानों को समझा-बुझाकर भेज दिया।


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