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विचार क्रान्ति

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3650
आईएसबीएन :00000000

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प्रस्तुत है ओशो की विचार क्रान्ति...

Vichar kranti

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जो पुराना है वह जाएगा। जो मृत है वह गिरेगा। क्योंकि धर्मयुद्ध छेड़ दिया है ओशो ने। और यह धर्मयुद्ध धर्म की जीत तक, धर्म की स्थापना तब चलने वाला है। यह युद्ध कोई दो देशों के बीच का युद्ध नहीं है कि इसमें कोई समझौता हो जाए। यह तो अंत तक चलने वाला है। और अन्ततः धर्म जीतेगा, सत्य जीतेगा, यह सन्यासी योद्धा जीतेगा। यह तय है। इस धर्मयुद्ध को छिड़े करीब बीस वर्ष बीत गये हैं, इस तरह हिसाब लगातें हैं तो कभी-कभी दुश्चिंता होती है कि अब तक तो लगभग आधी मनुष्यता को खबर लग जानी चाहिए थी कि यह सन्यासी योद्धा हमारा शत्रु नहीं है बल्कि परम मित्र है। यह हमारी बेड़ियाँ काटने वाला मुक्तिदाता है। इस खबर न लगने से बड़ा अहित हुआ है। मनुष्य जाति के इस अहित के लिए जिम्मेदार हैं वे लोग जो संचार माध्यमों पर कुंडली मारे बैठे हैं।

विचार क्रान्ति


ओशो ने हमारे देश को विचार की क्रान्ति में ले जाने की कोशिश की है। जो कि इस देश की एकमात्र जरूरत है। उन्होंने हर तरह से चेष्टा करके, वैचारिक शॉक्स दे करके नींद तोड़ने की कोशिश की है, ताकि इस देश का विचार जग सके। उन्होंने एक-एक आदमी की आस्था की जमींन खींच ली। उन्होंने गांधीवादी पर बोलकर गांधीवादियों को आईना दिखा दिया। समाजवाद को जीवन की सही व्याख्या करके राजनैतिक स्वार्थों को नंगा कर दिया-

नहीं, किसी भी तरह का दबाव अहिंसात्मक नही है। सब दबाव वायलेंस जवाब हिंसा है। और इसीलिए गांधी के सत्याग्रह और अनशन का परिणाम भारत के लिए अच्छा नहीं हुआ। सारा देश आज किसी भी टुच्ची बात पर सत्याग्रह करता है, किसी भी बेवकूफी की बात पर अनशन शुरू हो जाते हैं। सारा मुल्क परेशान है। गाँधी जो तत्व दे गये हैं, वह मुल्क को भरमा रहा है और भटका रहा है और कहां डूब जाएगी, किन चट्टानों से टकराकर कहना मुश्किल है।
‘’मेरी अपनी मान्यता यह है कि हिंदुस्तान के सारे महात्माओं ने आदर्श इतने ऊंचे रखे हैं कि सामान्य मनुष्य उन तक उठ नहीं सकता। आदर्श इतने ऊंचे रखे हैं कि सामान्य मनुष्य की तरफ आंखें उठाकर भी नहीं देख सकता। और इसका परिणाम यह हुआ कि हिन्दुस्तान में कुछ थोड़े से लोग, बड़े-बड़े लोग उस तरह पैदा हुए, और बाकी समाज हीन हो ही जाएगा। गांधी के आदर्श भी असंभव की सीमा छूते हैं। और असंभव आदर्श प्रभावित कर सकते हैं, आकर्षित कर सकते हैं लेकिन आचरण में नहीं लाये जा सकते।

28, कालिका निवास, नेहरू रोड़ 
 सांताक्रुज(पूर्व)
बंबई-55

आशाकरण अटल
(हास्य-व्यंग के सुप्रसिद्ध कवि)

ओशो परम कल्याणमित्र हैं, अस्तित्व का माधुर्य हैं।
उनकी करुणा का सहारा पाकर मानवता धन्य हुई है।
ओशो जिनका न कभी जन्म हुआ, न कभी मृत्यु, जो इस पृथ्वी गृह पर 11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 तक केवल एक आगंतुक रहे।
प्रस्तुत प्रवचन सम्मुख-उपस्थित श्रोताओं के प्रति ओशो के सहज प्रतिसंवेदन हैं, जिनका मूल्य शाश्वत व संबंध मानव-मानव से है।

1
प्रेम-विवाह : जातिवाद का अंत


प्रश्र- हमारे यहां चूकि जातिवाद का राजकरण है-जो हिंदू है, वह हिन्दू को वोट देता है, जो मुस्लिम है वह मुस्लिम को वोट देता है। हमारे यहां बहुत कौमें हैं।
आपके खयाल में इसको मिटाने के लिए क्या करना चाहिए ?

दो तीन बातें करना चाहूँगा। एक तो जातीय दंगे को साधारण मानना शुरू करना चाहिए। उसे जातीय दंगा मानना नहीं चाहिए, साधारण दंगा मानना चाहिए। और जो साधारण दंगे के साथ व्यवहार करते हैं वही व्यवहार उस दंगे के साथ भी करना चाहिए, क्योंकि जातीय दंगा मानने से कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं, इसलिए जातीय दंगा मानने की जरूरत नहीं है। जब एक लड़का एक लड़की को भगाकर ले जाता है, वह मुसलमान हो कि हिन्दू, कि लड़की हिन्दू है कि मुसलमान है-इस लड़के और लड़की के साथ वही व्यवहार किया जाना चाहिए, जो कोई लड़का किसी लड़की को भगा कर ले जाये, और हो। इसको जातीय मानने का कोई कारण नहीं है।
और हम, जो इस मुल्क में जातीय दंगों को खत्म करना चाहते हैं, इतनी ज्यादा जातीयता की बात करते हैं कि हम उसे रिकग्रीशन देना शुरू कर देते हैं। इसलिए पहली बात तो यह है कि जातीयता को राजनीति के द्वारा किसी तरह का रिकग्रीशन नहीं होना चाहिए। राज्य की नजरों में हिन्दू या मुसलमान का कोई फर्क नहीं होना चाहिए।
लेकिन हमारा राज्य खुद गलत बातें करता है। हिन्दू कोड़ बिल बनाया हुआ है, जो कि सिर्फ हिन्दुओं पर लागू होगा, मुसलमान पर लागू नहीं होगा ! यह क्या बदतमीजी की बातें हैं ? कोई भी कोड़ हो तो पूरे नागरिकों पर लागू होना चाहिए। अगर ठीक है तो सब पर लागू होना चाहिए, ठीक नहीं है तो किसी पर लागू नहीं होना चाहिए। लेकिन जब आपका पूरा राज्य भी हिन्दुओं को अलग मानकर चलता है, मुसलमान को अलग मानकर चलता है, तो किस तल पर यह बात खत्म होगी ?

तो पहले तो हिन्दुस्तान की सरकार को साफतौर से तय कर लेना चाहिए कि हमारे लिए नागरिक के अतिरिक्त किसी का अस्तित्व नहीं है। और अगर ऐसा मुसलमान गुंडागिरी करता है तो एक नागरिक गुंडागिरी कर रहा है। जो उसके साथ व्यवहार होना चाहिए, वह होगा। यह मुसलमान का सवाल नहीं है। राज्य की नजरों से हिन्दू और मुसलमान का फासला खत्म होना चाहिए, पहली बात।
दूसरी बात-कि हिन्दू मुसलिम के बीच शांति हो, हिन्दू मुस्लिम का भाई-चारा तय हो, इस तरह की सब कोशिश बंद करनी चाहिए। यह कोशिश खतरनाक है। इसी कोशिश ने हिन्दुस्तान पाकिस्तान को बंटवाया। क्योंकि जितना हम जोर देते हैं कि हिन्दू मुस्लिम एक हों, उतना ही हर बार दिया गया जोर बताता है कि वे एक नहीं हैं। यह हालत वैसी है जैसे कि कोई आदमी किसी को भूलना चाहता हो, और क्योंकि भूलना चाहता है इसलिए भूलने के लिए हर बार याद करता है। और हर बार याद करता है तो उसकी याद मजबूत होती चली जाती है।

प्रश्र- लेकिन एकता होगी कैसे ?

मेरा मानना यह है, एकता की कोई जरूरत नहीं है। कठिनाई क्या है-एकता होनी ही चाहिए, इस भ्रांति से भी हम बड़े परेशान हैं। एकता की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए वह कभी नहीं होगी, जब तक आप एकता करते रहेंगे। असल में एकता करने की बात नहीं है। एकता का होना न होना एक फैक्ट की बात है, और फैक्ट किन्ही और चीजों पर जीता है।
अब जैसे-यदि हम लड़के और लड़कियों को प्रेम की सुविधा दे दें, और बिना प्रेम के विवाह बंद करें तो आपको एकता-एकता चिल्लानी नहीं पड़ेगी, एकता हो जायेगी। कोई आपको समझाना नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रेम करते वक्त कोई नहीं देखता कि कौन मुसलमान है, कौन हिन्दू है; विवाह करते वक्त देखता है। कौन मुसलमान है, कौन हिन्दू है, कौन गुजराती कोई नहीं देखता है प्रेम करते वक्त। तो एक तो हमें बिना प्रेम के मुल्क में विवाह को समाप्त कर देना चाहिए, अगर भविष्य में हमें कोई भी ऐसी स्थिति चाहिए जहां कि अनेकता न हो। और मेरा जोर भिन्न है, मैं एकता पर जोर देना ही नहीं चाहता। मैं यह जानता हूँ अनेकता के कारण क्या है, वे नहीं होने चाहिए।

पहला अनेकता का कारण जो मुझे दिखता है, कि इस मुल्क में विवाह की जो व्यवस्था है, वह अनेकता का आधारभूत कारण है। यह मिटा दिया जाना चाहिए। अगर हिन्दुस्तान में हिन्दू-मुसलमान के बीच शादी चलती होती तो पाकिस्तान बंट नहीं सकता था और अहमदाबाद में दंगा भी नहीं हो सकता था। अगर हिन्दू लड़कियां मुसलमान घरों में हों, मुसलमान लड़कियां हिन्दू घरों में हों तो कौन, किसको काटने जायेगा; तब न तो मुसलमान को अलग करना आसान है, न हिन्दू को अलग करना आसान है। इसके बिना पालिटिकल लेवल पर एकता नहीं हो सकती।

प्रश्न-तो हिन्दू-मुस्लिम के बीच रोटी-बेटी का व्यवहार होना चाहिए ?

बिलकुल ही, हिन्दू-मुस्लिम के बीच नहीं, सबके बीच होना ही चाहिए। असल में जिनके बीच रोटी-बेटी का व्यवहार नहीं, उनके बीच एकता हो ही नहीं सकती।
रोटी-बेटी का व्यवहार रोकने की जो तरकीब है, वह अनेकता पैदा करने की मूल व्यवस्था है।

प्रश्न- यूरोप में बहुत ऐसे नेशंस हैं, जहां रोटी-बेटी का व्यवहार है, लेकिन यूरोप ने जितने युद्ध मानवता पर लादे हैं, उतने शायद किसी ने नहीं लादे हैं।

उनके युद्धों के कारण बहुत भिन्न हैं। दंगे और युद्ध में बहुत फर्क है। और जिन मुल्कों में दो जातीयों के बीच रोटी-बेटी का व्यवहार चलता है, उन मुल्कों में जातीय दंगा नहीं हो सकता है। जैसे चीन है-चीन में आप जातीय दंगा नहीं करवा सकते। कोई उपाय नहीं है। और कोई दंगे नहीं कर रहा ! जातीय दंगे नहीं करवा सकते चीन में। उसका कारण है कि कभी-कभी एक-एक घर में पांच-पांच रिलिजन के लोग हैं। दंगा करवाइए किससे, भड़काइएगा किसको ? बाप कंफ्यूशियस को मानता है, पत्नी, उसकी मां जो है, लाओत्से को मानती है, बेटा मुहम्मद को मानता है कोई बुद्धिस्ट है घर में, एक लड़की है-बहू जो है वह। तो चीन में एक-एक घर में कभी-कभी पांच-पांच धर्म के आदमी भी हैं। इसकी वजह से कंवर्शन नहीं होता। अगर लड़का हिन्दू है और स्त्री मुसलमान है, तो पत्नी मुसलमान होना जारी नहीं रख सकती। मेरा मतलब समझे न आप ? जब एक घर में पांच धर्मों के लोग हों, तो आप अलग करवाइगा कैसे ? किसके साथ दंगा करवाइगा ? डिमार्केशन मुश्किल हो जाता है। हिन्दुस्तान में डिमार्केशन आसान है-यह हिन्दू है, यह मुसलमान है, यह साफ मामला है। मुसलमान अगर मरता है तो मेरी न तो पत्नी मरती है, न मेरी बहन मरती है, कोई नहीं मरता है, मुसलमान मरता है।

 

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